सौतेली मां हिन्दी कहानी, लेखक- राजहंस कुमार: Sautili Ma Hindi story by Rajhans, Hindi kahaniyan, marmik kahaniyan. नमस्कार दोस्तों एजुकेशन पोर्टल में बहुत-बहुत स्वागत है। आज हम आपके बीच एक कहानी लेकर हाजिर हैं। कहानी के रचनाकार राजहंस कुमार है। इस कहानी के पात्र और घटनाएं काल्पनिक है। सौतेली मां ( हिंदी कहानी) को अंत तक पढ़े। आशा है यह हमारे समाज में सकारात्मक सोच पैदा करेगी।
सौतेली मां हिन्दी कहानी, लेखक- राजहंस कुमार
शिवनगर गांव में हरिदयाल नामक एक व्यक्ति रहता था। उनका स्वभाव बहुत अच्छा था और परिवार बहुत हीं साधारण था ।घर में एक वृद्ध पिता और एक बूढ़ी मां रहती थी। अब हरिदयाल 20 वर्ष का हो गया था माता इतनी वृद्ध हो चली थी कि वह घर का कार्य करने में भी असमर्थ थी। पिताजी हमेशा बीमार ही रहा करते थे ।
घर का सारा कार्यभार हरिदयाल पर ही था ।वह घर चलाने के लिए दिनभर खेत में काम किया करता और शाम को घर लौटने के बाद मां बाप की सेवा करता। फिर रात को अपने हाथों से खाना बनाकर तीनों एक साथ बैठकर खाना खाता मां को यह सब देखी नहीं जाती। वह हरिदयाल से रोज कहती थी अब तुम शादी कर लो जिससे तुम्हें भी थोड़ा आराम मिलेगा और मुझे भी ।
कुछ दिन तो हरिदयाल बात को टालता रहा ,लेकिन आज वह मां की बात को नहीं टाल सका और शादी के लिए हांमी भर दी। फिर क्या था माता-पिता एक सुंदर सुशील लड़की देख कर उनका विवाह कर दिया जिनका नाम था राधा ।जैसा नाम वैसा काम ,हरिदयाल को पत्नी भी ऐसी मिली जो आते ही अपने सास-ससुर की आंखों का तारा बन गई ।वह सास को घर का कोई काम न करने देती उन्हें आदर पूर्वक सेवा करती ,ससुर का आज्ञा पालन कर घर का काम सावधानीपूर्वक किया करती, जिससे घर का कुछ नुकसान ना हो पति भी अपनी पत्नी से बहुत खुश थे ।
दिनभर खेत में काम करने के बाद जब हरिदयाल घर लौटते तो उनकी पत्नी राधा घर के दरवाजे पर खड़ी मिलती ।वह अपने पति को स्नेह पूर्वक दरवाजे के अंदर ले जाती इसी तरह दिन गुजरते गए कि अचानक पिताजी इस दुनिया से चल बसे ।घर में मातम छा गया ,परिवार गहरी शोक में डूब गया ।लेकिन राधा बड़ी साहस से काम लिया और पारिवारिक स्थिति को सामान्य करने का प्रयत्न करने लगी ।
अभी पिताजी का मृत्यु का शोक थोड़ा कम भी ना हुई थी कि माताजी स्वर्ग सिधार गए ।अब तो मानो हरिदयाल और राधा के जीवन का सितारा ही टूट गया, वे दोनों असहाय हो गया। कभी हरिदयाल राधा को समझाता तो कभी राधा हरिदयाल को लेकिन माता-पिता का शोक दोनों को अंदर से कमजोर बना दिया था ।
एक बुद्धिमान और साहसी स्त्री होने के कारण वह अपने आप को संभाल ली और फिर अपने पति को दु:ख के सागर से बाहर लाने की प्रयत्न करने लगी । स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होने लगी इस बीच राधा को एक पुत्र हुआ जिसका नाम राघव रखा ।पुत्र प्राप्ति के बाद वह दोनों अपने बच्चे में व्यस्त रहने लगे जिससे माता-पिता का शोक लगभग मिट गई। दोनों सुख पूर्वक जीवन यापन करने लगे ।लेकिन शायद हरिदयाल के तकदीर में सुख बहुत थोड़ी थी, राघव करीब 1 वर्ष का हुआ होगा कि उनसे उनका मां का प्यार छिन गया यानी उनकी पत्नी का देहांत हो गया।
अब तो हरिदयाल का कमर ही टूट गयी ।दिन-रात चिंता में अब राघव को पालना मुश्किल हो रहा था इतने छोटे बच्चे को छोड़कर बाहर भी नहीं जा सकता था ।एक भयानक समस्या आन पड़ी थी अब उनके सुख दुख बांटने वाला कोई नहीं था ।आसपास के लोग जब उनका दुख देखा तो दूसरी शादी कर लेने का सलाह दिया । कुछ दिन तक तो बात को टालता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि बिना दूसरा विवाह किए हम राघव को नहीं पाएंगे एक शीला नाम की लड़की से शादी कर लिया।
जब से घर में शीला आई उनका व्यवहार कुछ अच्छी दिख रही थी ,इसीलिए जल्दी ही हरिदयाल घर का सारा कार्य शीला को सौंप दिया ।शीला भी खुश होकर घर चलाने लगी समय को बदलते देर नहीं लगती राघव लगभग 7 साल का होगा तब भगवान की कृपा से शीला को दो पुत्र की प्राप्ति हुआ ।
जिसका नाम शीत और बसंत रखा ।फिर शीला को राघव के प्रति प्यार धीरे-धीरे खत्म होने लगा अपना अधिक से अधिक समय अपने पुत्र शीत और बसंत को देने लगी ।लेकिन इस बात का आभास अपने पति हरिदयाल को वह नहीं होने देती। क्योंकि जब भी उनका पति हरिदयाल घर पर होते तो शीला राघव को बहुत प्यार किया करते। इतना ही नहीं राघव को ही प्यारा बेटा कह कर पुकारते ।समय बीतता गया राघव लगभग 12 वर्ष का हो गया और शीत बसंत 5 वर्ष का ।
परिवार में हर वक्त खुशी की वर्षा होती।हरिदयाल खाना खाते तो अपने तीनों पुत्र के साथ एक पंक्ति में बैठकर ही खाते ।एक -एक दिन बड़े आनंद पूर्वक कट रहे था। अचानक शीला के मन में एक दिन अपने सौतेले पुत्र राघव के प्रति घृणा पैदा हो गया ।उस दिन से शीला राघव को मारने का षड्यंत्र रचने लगा ।आज 1 जनवरी का दिन था सुबह से ही तरह-तरह की व्यंजन बन रही थी।
संयोगसे हरिदयाल भी आज घर पर ही था जब खाना बनकर तैयार हो गया तो शीला अंदर से अपने पति दोनों पुत्र और सौतेले पुत्र राघव को मुंह हाथ धोकर खाने की मेज पर बैठने को कहा ।सभी बच्चे आज बेहद खुश थे ।तीनों भाई जल्दी से मुंह हाथ धोकर खाने को बैठ गया। हरिदयाल को थोड़ी देर हो गई इस बीच शीला चार अलग-अलग थाली में खाना परोस रही थी। अचानक हरिदयाल का नजर रसोई घर में खाना परोस रही शीला पर पड़ा तो वहां का दृश्य देखकर मन ही मन ठिठक गया ।क्योंकि शीला तीन थाली को छोड़ चौथी थाली में जहर मिला रही थी ।
उस थाली को हरिदयाल बड़े गौर से देखा फिर उस समय बिना कुछ बोले खाना के मेज पर जा बैठा ।जैसे वह कुछ नहीं जानता हो,शीला की पति यह सब देख लिया इस बात से वह बेखबर थी । शीला अंदर से चार थालियां लाई और सबसे पहले राघव के पास जहर वाली थाली फिर अपने पुत्र शीत बसंत और अंत में पति हरदयाल के सामने वह थाली रखी जिसमें जहर नहीं था । जैसे ही हरिदयाल जहर वाली थाली राघव के पास देखा उनका दिल टुकड़ा टुकड़ा हो गया ।
वह झटके से राघव का थाली अपने पास खींचा और अपना थाली उसे बढ़ा दिया । इतना देखते ही शीला आग बबूला हो गई ,वह दौड़ती हुई आई और पति के सामने रखी हुई जहर वाली थाली सड़क पर फेंक दिया ।लेकिन यह क्या जैसे ही भोजन सड़क पर गिरा उसी समय उधर से एक बिल्ली गुजर रही थी ।वह उस भोजन को खाने लगी और कुछ ही पल में बेहोश होकर मर गयी ।इस घटना से राघव का मन विचलित हो गया और आशंका से भर गया ,कि मैं इस घर में कभी भी मौत के मुंह में जा सकता हूं ।
लेकिन उनका पिता का व्यवहार उसे काफी प्रभावित किया वह उसी समय अपने पिता को अपने हृदय में देवता की तरह स्थापित कर घर छोड़ दिया । पिताजी आज उसे नहीं रोका शायद वह भी उनको जीवित देखना चाहता था । अपने हृदय को थाम कर भगवान से प्रार्थना करते हुए मन ही मन कहा हे भगवान मेरे पुत्र की रक्षा करना । उधर राघव ठोकर खाता हुआ रेलगाड़ी में अपना दुखड़ा सुनाता हुआ दिल्ली पहुंच गया ।स्टेशन पर भीख मांग कर जो पैसे मिलते उसमें से कुछ से खाना खाता और कुछ बचा कर ले जाता ।
उसके पास जब कुछ पैसा इकट्ठा हो गया तो वह सोचने लगा कि भीख मांगना छोड़ कर कुछ काम करूं ,लेकिन समस्या यह थी कि वह उस शहर में अकेला और अनजान था ।ऊपर से उम्र भी कम थी जिसके कारण कोई काम पर रखेगा नहीं इसी सोच में डूबे भीख मांगते हुए आज वह आगे बढ़ा जा रहा था कि अचानक एक समाचार पत्र बांटने वाला व्यक्ति आगे से गुजरा, शायद वह राघव को एक संदेश दे रहा था कि बेटा दुनिया में बहुत से ऐसे काम है जो तुम कर सकते हो फिर क्या था उसी समय एक मैगजीन सेंटर पर पहुंचकर वह कुछ अखबार खरीदा और स्टेशन पर आकर बेचने लगा ।
अब उसे लोगों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता था ।अपनी मेहनत से पैसा कमाता और खुश रहता था ।आज जब वह समाचार पत्र लेकर निकला और ज्योंही स्टेशन पर पहुंचा तो एक कोर्ट धारी व्यक्ति जो किसी विदेशी कंपनी का मालिक था उनके सामने आकर खड़ा हो गया ,और बोला बेटा एक समाचार पत्र देना ।और 5रूपये का नोट उसके हाथ में रख दिया ।राघव बोला बाबूजी इस अखबार की कीमत सिर्फ ₹3 है ।मेरे पास भी 5 रूपये का छुट्टा नहीं है। यह पैसे आप रख लिजिए कल दे दीजिएगा।
आप अपने आवास का पता मुझे दे दीजिए मैं रोज सुबह अखबार वहां पहुंचा दिया करूंगा ।वह व्यक्ति बोला नहीं बेटे तुम रोज वहां अखबार जरूर पहुंचाना लेकिन यह 5रू○ का नोट तुम अभी रख लो छुट्टा हो जाने पर मुझे दे देना ।फिर वह अपना आवास का पता देकर चला गया ।राघव जब अखबार बेचकर निश्चिंत हो गया तो वह सबसे पहले उस सज्जन व्यक्ति के आवास पर पहुंचा और वे सीधे उस व्यक्ति के पास जाकर ₹2 का सिक्का बढ़ाया ।
वह सज्जन व्यक्ति हैरान होकर एक टक राघव को देखने लगा और फिर बोला इतना भी क्या जल्दी था बेटा यह पैसे मुझे तुम कल भी दे सकता था ।राघव मुस्कुराते हुए बोला नहीं बाबूजी इस जिंदगी का कोई ठीक नहीं कब कौन किस समय संसार को छोड़कर चला जाए इसलिए आप इसे स्वीकार करें। इस बात से वह सज्जन व्यक्ति बहुत प्रभावित हुआ। फिर उस लड़का को गले से लगाकर बिफर पड़ा और बोला बेटा आज से तुम यह काम नहीं करोगे तुम्हारी इमानदारी मुझे तुमको बेटा कहने पर विवश कर दिया ।
आज से तुम मेरा पुत्र हो तुम अब यही मेरे पास रहोगे राघव की आंखे भी छलक गया ।उस दिन के बाद राघव की जिंदगी ही बदल गयी अब दोनों साथ रहते, वह सज्जन व्यक्ति उसे पुत्र के जैसा मानता और राघव भी उसे पिता की तरह आदर करता जब राघव थोड़ा बड़ा हो गया तो उसे वह व्यक्ति अपने कंपनी का देखभाल का भार सौंपा और प्रतिमाह ₹20, 000 देने का फैसला किया ।
राघव को इस बात का पता चला तो उसे खुशी के साथ-साथ बहुत दुख भी हुआ ।वह दौड़ता हुआ उस सज्जन व्यक्ति के कार्यालय पहुंचा ।खुशी से उनका और उन पर जो दायित्व दिया गया है उसे मन क्रम वचन से निभाने का प्रण किया जिससे उस सज्जन व्यक्ति को बड़ा हर्ष हुआ । लेकिन थोड़ी देर बाद राघव फूट-फूट कर रोने लगा जिससे वह सज्जन व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया और रोने का कारण पूछने लगा ।कुछ देर चुप रहकर बोला बाबूजी आप मुझे पिता की तरह प्यार दिया इसीलिए मैं काम के बदले पैसे नहीं लूंगा ।
इस पर वह व्यक्ति बोला बेटा यह सब ठीक है कि मैं तुम्हें पिता की तरह पाला लेकिन तेरा परिवार तो होगा ? यह बात मैं तुमसे पहले इसलिए नहीं पूछा कि यदि कुछ ऐसी दुखदायी बात होगा तो तुम्हें कष्ट होगा ।परंतु आज तुम्हारे पास सब कुछ है आज मैं सब कुछ जानना चाहता हूं जो तुम्हें सड़क पर भटकने पर मजबूर किया ।राघव के आँखों से अश्रु धार बहने लगी ।
फिर वह उस सज्जन व्यक्ति को अपने जीवन में घटी सारी घटना विस्तार से बताया ।फिर वह सज्जन व्यक्ति राघव को अपने हृदय से लगाकर उनके माथे को सहलाया और समझाया कि माता-पिता बाहर से कितना भी बुरा क्यों न हो वह अंदर से अपने संतान से बहुत प्यार करते है और संतान के लिए सदा पूज्य होता है। इसीलिए तुम्हें उनका सम्मान करना चाहिए ।और वहां तुम्हारे पिताजी भी तो हैं जो तुम्हें दिल से चाहते थे । राघव की आंखें खुल गई उसे जीवन का एक महत्वपूर्ण बात समझ में आ गया ,उनके सामने ध्रुव की वह कहानी चलचित्र की भांति चलने लगी ।और वह सोचने लगा कि ध्रुव को मां की एक कटु वचन भगवान से मिला दिया और राघव को सौतेली मां की एक घृणित व्यवहार एक आदर्श मानव बना दिया ।
राघव उस सज्जन व्यक्ति के सामने अपनी गलती स्वीकार कर उसी समय अपने पिता को ₹20,000 और साथ में एक पत्र भेजा। पत्र में वह अपनी तरक्की कि बात के साथ-साथ मां को 100 बार प्रणाम और धन्यवाद लिखा ।जिसके कारण वह इस मुकाम को हासिल किया ।फिर वह मां से आग्रह किया कि वह शीत,बसंत को खूब पढ़ाएं ,पैसा की चिंता ना करें ।जब भी किसी प्रकार की समस्या हो मुझे लिखना पिताजी का ख्याल रखना ।
मां मै जल्द ही घर आऊंगा। आपका प्यारा पुत्र राघव । इधर राघव के जाने के बाद हरिदयाल की पारिवारिक और आर्थिक स्थिति दोनों कमजोर हो गया था। किसी तरह जीवन यापन चलता था लेकिन जैसे ही राघव का पत्र हरिदयाल को हाथ लगा तो खुशी से पागल हो गया । और दौड़ता हुआ शीला के पास जाकर बैठ गया और बोल उठा देखो शीला राघव का पत्र आया है। और साथ में मनीआर्डर भी है शीला मुंह चिढ़ा कर बोली इससे मेरा क्या । और दूसरी तरफ मुंह करके बैठ गई ।
हरिदयाल पत्र जोर से पढ़ना शुरू किया शीला ध्यानपूर्वक सुन रही थी,कि आखिर पत्र में क्या लिखा हो सकता है। पत्र समाप्त होते हीं शीला फूट-फूट कर रोने लगी और अपने आप को कोसने लगी ।फिर कहने लगी एक राघव है जिसके दिल में अभी भी मेरे लिए कितना प्यार है, और एक मैं हूं जो उसे पराया जानकर अपने प्यार से वंचित कर दिया जहां तक कि उसे जान से मारने का प्रयत्न भी किया।
हरिदयाल की आंखें भर आई ।वह शिला उठाया और समझाने का प्रयत्न करने लगा। लेकिन शीला के जुबान पर एक ही वाक्य था मुझे राघव चाहिए ।मुझे पैसे नहीं राघव को देखना है।मै उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया ।मै अपराधी हूँ, मै पापिन हूँ । मैं उनका पौव पकड़ कर अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहती हूँ ।
हरिदयाल शिला को ढाढस बंधाते हुए कहा,अरे पगली राघव तो तुम्हें दोषी मानता ही नहीं ।यदि वे तुझे दोषी मानता तो ऐसा लिखता ही क्यों । शिला भाव विह्वल हो गई । और इतना बोल कर बेहोश हो गई ,बेटा यदि तुम आ गया तो मैं तुम्हें अपने पास से कहीं नहीं जाने दूंगी…….कहीं नही जाने……….
लेखक– राजहंस कुमार ?
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Aap ek honhar lekhak hai.bas likhate jayiye.
Very good.
[…] सौतेली मां — हिंदी कहानी […]
Fantastic
Gajv sir
बहुत निक लागल ।
हम प्रयास करब ।
धन्यवाद
सर मैथिली में कहानी लिखू।आउर बढ़िया होयत।
Kahani lambi hai.lekin Dil ko Choo Lene Wali rochak kahani.
बेटा हो तो ऐसा ।जो सौतेली मां को भी अपना समझे ।बहुत अच्छी कहानी।
कर्म सबसे महान है ।कर्म से बड़ों बड़ों को झुका सकते हैं।
राजहंस जी आहा केर ।हिंदी कहानी सौतेली मां हमरा बड सुंदर लागल। अहां स विनती अछि जे मैथिली में अहां कहानी लिखी त और सुंदर होयत।
बहुत निक लागल आहां केर धन्यवाद।
Very good sir.
आधुनिक समय का एक सार्थक कहानी सौतेली मां।
बहुत अच्छा। इस कहानी को पढ़ते वक्त मैं अपना आंसू नहीं रोक पाया । यह एक ह्रदय विदारक कहानी है। बहुत खूब।