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मैथिली कविता, कहानी आ गीत | रचनाकार- संतोषी कुमार संतोषी

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Maithili poem मैथिली कविता, कहानी आ गीत, रचनाकार– संतोष कुमार संतोषी : नमस्कार पाठक बृंद हम अपने लोकेन के समक्ष संतोष कुमार संतोषी (गीतकार सह गायक) द्वारा रचित मैथिली कविता, कहानी वा गीत लऽ के हाजिर छी।  पोस्ट केर शुरू सं अंत धारि पढ़ू आ आनंद उठाओ।

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मैथिली कविता, कहानी आ गीत, रचनाकार– संतोष कुमार संतोषी 

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DNNS के विषय में

DNNS के बात चलेलौं त अपन बात हमरहु राखै परत…
Dnns के राजनितिक विचारधारा सँ नै देखल जेबाक चाही…
गामक युवा लोकनिक प्रयास सँ गामक विकास लेल उठल एकटा डेग मात्र छी dnns..

सबहक सहयोग आ सबहक विचार सँ कोनों भी कार्य होईत आबि रहलै…
संपूर्ण पारदर्शिता छैह…
बचलै टोल मोहल्ला के बात त बेर बेर dnns अपना संग में सबगोटे के समाहित करबाक प्रयास करैत आबि रहल..

आ सहयोग आ सहयोगी के हिसाब सँ काज सेहो होईत आबि रहलै…
अहूँ कोनों बंधन में नै छी…
Dnns के मूल नारा छैह
समाजक लोक
समाजक हित में –

अहूँ समाजक लोक छी आ अहूँ समाजक हित क सकैत छी…
जौं से करबैह त अहूँ dnnsछी…
Dnnsकोनों नेता अभिनेता या समाजसेवी के नाम नै छियैह..
Dnnsएकटा सोच छी…
समाजक प्रति अपन दायित्व अपन जिम्मेदारी के निर्वहन छी..
एकटा एहेन प्लेटफार्म छी dnnsजै सँ जुड़ि क समाज हित में अपन डेग बढ़ा सकैत छी…

सवाल पुछै वाला जगह पर कियो नै पुछैत छी…
Dnns त स्वयं सवाल करै बला मंच छी..
सवाल करै बला मंच पर सवाल उठेनाई उचित नै…
धन्यवाद….

सर्टिफिकेट……..!

maithili poem Santosh Kumar santoshi
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

लाखक लगानी —
परिवार, समाज आ स्वयं के आशा, सपना, भरोसा……. सर्टिफिकेट.!

ताहि सर्टिफिकेट के पुरान सन एकटा झोरी में राईख, काँख में लटकेने ,दिन भैरि सहरक कार्यालय सब में दौरैत- दौरैत अफसियाँत भेल ओ….
मात्र शरिरहि टा सँ नहिं, मोन सँ सेहो थकित-चकित भेल रहय.

समाजक संस्कार आ प्रवृति देखि के हतोत्साहित भेल रहय…

घर अबिते,

दूबर पातर खिपटी सन भेल शरीर के, सर्टिफिकेटक भारी बोझ सँ मुक्त करैत, स्वयं के टुटलाहा खाटक अधिन करबा में कनिको देरी नहिं लगौलक ओ…

आँखि के मुननहिं, सर्टक सबटा बुटम खोलि, छाती के शीतलता देबाक कोशिस करैत ओ धिक्कारय लागल…

अपन नालायकीपन, कलुषित कार्यालय सबहक चाकरी आ भ्रष्ट आचार विचारक ऐहि समाजिक संस्कार के!

जाहि सर्टिफिकेटक लेल ओ राईत दिन एक क देने रहय.
..
जाहि सर्टिफिकेटक लेल मायक गहना सब एखनहु गिरवी लागल अई…

ताहि सर्टिफिकेटक मोल..
कागजक रद्दी आ ट्वालेट पेपरो के बराबर नहिं देखि,
कथित शिक्छा आ शैक्छिक योग्यताक प्रमाणपत्र प्रति घोर आक्रोशक भावना जागि रहलै ओकरा मोन में….

मुदा….

बेअर्थक……. बेमतलबक…

कारण,
काईल्ह पुण:ओ पत्रिका में भेकेन्सी बला कालम देखि, विभिन्न प्राईवेट आफिस सब में दौरय लागत….

अपन प्रमाणपत्र के बोझ उठेने!

होईत रहत अपमानित,
स्वयं के अप्रमानित करैत प्रमाणपत्रक संग..

और कोनहु विकल्पो त नहिं छै ओकरा संग..

चित्त के स्थिर करैत, अझुका दिनुक लेखा जोखा करय लागल ओ….

न्यू रोड में अवस्थित एकटा आफिस में कर्मचारी के आवस्यकता छै, से समाचार पत्रिका में पैढि, फोन पर लोकेशन मांगि.. आफिस धैरि पहुँचल..

जानकारी भेलै जे फारम जम्मा करबाक संगहि तीन सय टका सेहो जम्मा करय परतै ओकरा!

साौरी सर…
एक्चुअली पर्स घर पर हि छोर आया हूँ..

बहाना बना के बाहर निकलल ओ..

डेढ किलोमीटर पैदल रस्ता पार केलाक बाद साँई जेनरल स्टोर पहुँचल ,जेकर मालिक ओकर कका के लरका छलैह.!

सबटा जानकारी दैत, तीन सय टका के मांग केलक ओ अपना पितिऔत भाई सँ…

मुदा,
कहाँ पतियेलकै ऐकरा बात के ओ..

कोना पतियैतै…

एक हजार टका एक साल पहिने नेने रहै से त द नै सकलै एखन तक..

भैया, अखन त बोहनीयो बट्टा नै भेलैये दोकान में…
बहाना बना के साफे मुकैर गेलै ओकर छोट भाई…

दोकान सँ बहराईते, बस भारा लेल राखने छुट्टा पैसा सँ एकटा सिगरेट किनके, फुँकय लागल ओ…

पुण: किछु सोचिके सहीद गेट तरफ विदाह भ गेल..

हँ, सहीद गेट में ओकरा मामा के किताबक बरका दोकान छै,

हथपैंची के रूप में कतेको बेर सहयोगो भेटल छै ओकरा मामा सँ…

ओ बात अलग छै जे मामा सँ लेल रूपैया में एकहु टा आपस नै क सकल ओ एखन धैरि…

तहन..
एकटा आशा..एकटा विस्वाश..

ओकर डेग अनवरत बढल जा रहलै मामाक दोकान दिश…

जेठक दुपहरिया में हँफुआईत, अफसियाँत भेल, अपन सहोदर भागिनक दुर्दसा देखि जेना पसिज गेलै मामाक हृदय….

ऐना में, जिनगी कोना चलतौह बौआ..

छोट -पैघ, नीक -बेजाय कोनो भी, केहनो भी एकटा नोकरी त करहै परतौ..

गाम में ओझहा के सेहो कोनो आम्दनी के स्रोत त छैन्ह नहिं. ।
बड्ड बेसी दुख छैन ओझहा के ।
खास तोरा ल के सब चिंतित अई.

पढले लिखले सँ त नै भ जाई छै..
. आखिर कतेक दिन ऐना चलतौह ।
सब दिन तु ऐतबी कहैत रहलें जे पैढि लिखि के किछु खास करब..

की खास क रहल छेँ तू…

तोहरा संगहि एस एल सी देनिहार तोहर संगी सब लाखो में खेलाईत अई..

आ तू..

नोकरी के फारम भरबाक लेल तीन सय टका मंगने घुरैत छें…

तीन सय नहिं.. पाँच सय देबौ तोरा.

मुदा बाऊ,

नोकरी करहै परतौह….

मामाक देल सल्लाह सुझाबक भारी बोझक संगहि पाँच सय टका नेने….

न्यू रोड बला आफिस में जा क सबटा कागज पत्तर आ तीन सय टका जम्मा कराौलक.

अकलबेराक रौद में दौरैत दौरैत हारल थाकल ओ एक छन आराम करबा खातिर

शांति पार्क में आबि,

सर्टिफिकेट के सिरहाना में राईख एकटा गाछक छाहैरि में पैरि रहल….

मामाक कहल बात… बेर बेर प्रहार क रहलै ओकरा मोन मस्तिष्क में…

बातो त सत्ते रहैक…

ओकर संगतुरिया सब दिल्ली सन बरका बरका सहर सब में अप्पन घर दुआरि तक बना नेने अई ।

मनमाना पैसा कमा रहल सब के सब ।
ऐहेन त कियो अईहे नै जेकरा अप्पन मोटर साईकिल नहिं होई….

मुदा ओ….

पैसा के मात्र प्रगति बुझै बला ऐहि समाज में सब तरहेँ तिरस्कृत भेल अई.

ओकर पढाई लिखाई, बौद्धिकता ओकर छमता के कहाँ कियो देखि रहल….

ई समाज… पैसा के मात्र पुजनिहार.

केहेन बिडम्बना….

जेकरा सब के ओ कहियो ट्वीशन पढौने रहय,

से सब आई ओकरा सँ बोलचाल तक सँ परहेज क रहल अई.

फोन पर तक सीधा मुँह बात करय नहिं चाहैछ.

हँ, एतेक जरूर कहैछ सबगोटे…

पैसा कमाऊ भैया… पैसा.

संगी साथी, नाता रिस्ता, सर समाज, अप्पन आन सबठाम घृणा के पात्र बनल अई ओ..
.
से मात्र पैसा नहिं रहलाक कारणें.

सोचक वेग..
भुखक ज्वाला..

शांति पार्क में शांति सँ कहाँ रहय देलकै ओकरा…

भाहर आबि, फुटपाथ पर ठारहि ठार एक प्लेट छोला भठूरा दनकौलक……

पत्रिका में देखलाहा भेकेन्सी सब में ..एक दू ठाम औरो जाके कागज सब जम्मा करौलक…

आ हारल थाकल आबि गेल अपन डेरा में..

सोचक बादल छैंटि गेल रहैअ…

ओह..
जुत्ता पहिरने सुईत रहल छलय ओ…

दीर्घ नि:स्वाशक संग उठि के जुत्ता खोलय लागल..

गन्हाईत फटलाहा मौजा सँ तीन टा आंगुर बाहर देखा पैरि रहलै…

ठेहुन लग रफ्फू करावल जिन्स पेन्ट आ आयरन बिना घोंकचल पालिस्टर के सर्ट संगहि चेथरी भेल गंजी खोलैत काल यथार्थक दर्शन भ रहलै ओकरा…

सर्टिफिकेट के कपरा सिला के नहिं पहिरल जा सकैछ
सेहो बुझना में आबि रहलै ओकरा…

कुल मिला क सत्तैरि टा टका जम्मा पुँजि बचल छै ओकरा लग…

बहुत काल धैरि गुमसुम भेल बैसल..
कदाचित्.. ओ सत्तैरि टा टका आ सर्टिफिकेट में तुलना क रहल..

कोनो सटीक निर्नय लैत.. झटपट पेंट पहिर के सर्टक बूटम लगैबिते डेरा सँ बाहर निकैल परल ओ….

देसी सराब की दुकान…

बरका बोर्ड दुरहि स देखा पैरि गेलै ओकरा.

पचास टका के देसी सराब में भरपूर आनन्द आबि जाईत छै,

से बात कतेको बेर सुनने रहय ओ पियक्कर सबहक मुँहें ।

अभ्यस्त लोक सबके कतेको बेर पिबी के सनकैत देखने रहय ओ..

दारू.. सराब त एकटा भ्रम मात्र छी.

ओ सेहो बुझि रहल अई.

त कि हेतै…
भ्रमे सही.

सुख दुख, अपन आन, सबटा त भ्रमे छी..

एहि सब तरहक बात त ओ अपने बड बुझैत रहय…

ओ ईहो बुईझ रहल अई..
मामाक नसीहत, आबै बला कौल्हुका अभाव, सत्तैरि टा टका आ सर्टिफिकेट चैन सँ कहाँ रहय देतै ओकरा…

एकहि छन लेल सही..
ओ सबटा बिसैरि के नशा में मातय चाहि रहल…

आनन्द लेबय चाहि रहल…

ओह…
विवषता में बान्हल आनन्द..
अभाव में जकरल आनन्द..

अप्रमानित करैत, प्रमाणपत्र के सर्वस्व स्वाहा करबाक आनन्द…

चट्ट सँ देसी सराब सँ भरल गिलास उठा क तेना पीबय लागल जेना पूर्ण अभ्यस्त हुअय ओ….

सर्टिफिकेट, पैसा आ अपन अपनत्वक त्रिपछिय द्वंद में दारू खतम क के डेरा तरफ विदाह भ गेल ओ…..

आई पहिल बेर ओ स्वयं के गुलामी के जंजीर सँ मुक्त भेल बुझि रहल…

आजाद परिंदा सन लहराईत एम्हर लहराईत ओम्हर अपन आशियाना धैरि पहुँचि गेल केहुना….

घर में प्रवेश कैरिते ओकर नजैरि, सर्टिफिकेट पर पैरि गेलै…

किछु छन एकाग्रचित भेल देखैत रहल सर्टिफिकेट के…
.
मानु जेना ओकर कोनो दीर्घ कालीन शत्रुता होई सर्टिफिकेट के संग….

ओकरा आँखि में आश्चर्यजनक भाव आ, मुँह पर पृथक मुस्कान देखा पैरि रहलै…

ओ सर्टिफिकेट पर आ सर्टिफिकेट ओकरा पर अपन अपन छमता अनुशारे व्यंग करय लागल….

शीतयुद्ध चरम उत्कर्ष पर पहुँच गेलै..

आक्रोषक ज्वाला धधकय लगलै ओकरा हृदय में..

अन्तत:

स्टोभ पर राखल सलाई उठा क अग्नि प्रज्वलित करबा में बेसी देरी नै लगौलक ओ…

धह धह जरैत सर्टिफिकेटक ज्वाला में ओकरा अपन हृदय के ज्वाला शांत होईत बुझना गेलै…

ओकर….अथक परिश्रम, प्रयास, आशा, सपना, स्वाभिमान सबटा एकहि छन में जैरि के राख भ गेल रहय….

समुच्चा देह जेना काँपय लगलै ओकर..

आँखि जेना बन्द होमय लगलै…

एक छनक लेल
असंख्य पीऱा के अनुभव भ रहलै ओकरा…

दुनू हाथे जोर सँ छाती के दबा लेलक ओ…

आ,
चेतना हीन भ….. जैरि के राख भेल सर्टिफिकेट के बगल में धम्म सँ खैसि परल ओ….

घोर निद्रा में रैहितो,
जेना विजय मुस्कान देखा पैरि रहलै ओकरा मुँह पर…..

दुख, चिंता, विवषता, अपमान, घृणा आ उलहन उपरागे टा सँ नहिं…

ऐहि समाज सँ सेहो मुक्ति पाबि चुकल छल ओ………
सर्टिफिकेट….संतोषी.

शिक्षक….. आ कि संचालक… !!

maithili poem Santosh Kumar santoshi
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

धन्यवादक पात्र छी अपने सब….
चुकि,
जाहि तरहें अहाँ सब सरकारी स्कूल के शिक्षक रैहितो अपन संपूर्ण समय प्राइवेट स्कूल के संचालन पाछु खरैच रहलौं…. . से सत्ते पैघ बात अई.

हहह… की करबै.. समाज में रैहितो जौं समाज के काज नै आबी त कथी के मनुख भेलौं… से क रहल छी समाज सेवा…

हँ हँ… किएक नहिं…समाज सेवा के संग संग डबल आम्दनी सेहो किने…
मुदा.. श्री मान,
समय के कोना मिलाबैत छी अपने सब … मतलब सरकारी स्कूल स कोना आ कतेक समय भेटैत अई जे अपन निजी स्कूल के सेहो भरपूर समय द पबैत छी अहाँ सब….

हहह.. भ जाईत छै जेना तेना.. चुकि समाज में हमहूँ छी आ समाज के खातिर नीक सोच राखने छी से मैनेज भ जाईत छै…

ऐहि मैनेज के कारण… चाह पानक दोकान जेना जत्र तत्र पसरल अई प्राईवेट स्कूलक संजाल..
जाहि में सरकारी स्कूल के शिक्षक सब सेहो संचालक बैनि, घरे घर जा क अभिभावक सब के झूठ फुसक पाठ पढा के अपन निजी स्कुलक खातिर जैहि तरहें विद्यार्थी जम्मा करबाक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा क रहल अई… देखि के घिन्न सन लागत…..
विद्यालय में स्टेशनरी —जुत्ता जुराब. टाई बेल्ट. वा कोनो भी समान बेचबाक कोनो भी प्रावधान नै रैहितो में
..सब तरहें सब सामग्री मनमाना दाम में बेचि रहल ई निजी स्कूल के संचालक सब..
..
गुण स्तर बिना के टाई बेल्ट वा अन्य सामग्री स्कूल के नाम आ लोगो के संग मनमाना दाम पर खरीद करबाक लेल बाध्य बनल अई विद्यार्थी सब.
..बाहर के समान बिना स्कूल के निर्देश सँ नहिं खरीद क सकैछ कियो….
कोनो भी नियम कानुनक दायरा सँ दूर… अपन निजी स्कूल के निजी नियमानुसार चैलि रहल अई प्राइवेट स्कूल सब पर कोनो अंकुश कियाक नहिं….

निजी स्कूल के संचालक सब अपन स्कूलक वकालत करैत सरकारी आ प्राइवेट स्कूल के नकारात्मक आ सकारात्मक विषय पर सेहो बैढि चैढि के चर्चा परिचर्चा करैत अई…
खास क के सरकारी स्कूल के अपेक्षा प्राइवेट स्कूल के रिजल्ट पर बेसी जोर.मारैत अई ई संचालक.महोदय सब

बच्चा सबहक उज्ज्वल भविष्य के वास्ता दैत सरकारी स्कूल के शिक्षक सब प्राईवेट स्कूल के संचालक बैनिअभिभावक सब सँ मनमाना शुल्क असुल क के कहबैका कहबा रहल…..

करोरों रूपैया के लगानी में बनल सरकारी स्कूल के दशा दयनिय बनल अई… विद्यार्थी के उपस्थिति न्युन अई… रिजल्ट नहिं के बराबर….

किएक नै. .
स्कुल के शिक्षक सब त शिक्षा के दलाली तरफ लागि परल अई….
आ,
समाज….

हहह…
अरे, सरकारी स्कूल में त गरीब गोईर के बच्चा सब पढैत छै… से अवधारण बनल छै समाज में…

एक दोसराक देखा सुनी में…. जकर आर्थिक स्थिति कमजोर छै सेहो समाज सँ अवहेलित हेबाक डरे जेना तेना अपना बच्चाक पढाई प्राईवेट स्कूल में करबा रहल…
मुदा
सरकारी स्कूल के शिक्षक प्रति कोनों आक्रोश नै समाज में…

जेकर मुख्य उद्देश्य पैसा कमेबाक छै.

घरे घर जा क विद्यार्थी जम्मा क के पैसा कमेनाई मात्र अपन उद्देश्य बुझनिहार ऐहि संचालक सब के समाज कियाक नै कहैछ जे…
शैक्षिक छेत्र में सुधारक संग संग विद्यालय के वातावरण आ भौतिक संरचना पर सेहो ध्यान दी….
विद्यार्थी के छमता अभि वृद्धि के ध्यान राखी…

शिक्षक…
भौतिक पुर्वाधार..
आ राजनीतिकरण के कारण सरकारी स्कूल के रिजल्ट आ व्यवस्था कमजोर भ गेल अई….
संगहि,
सरकारी स्कूल के व्यवस्था कमजोर करबाक पाछु सरकारी स्कूल के शिक्षक सबहक बेसी हाथ अई जे अपन निजी स्कूल के खातिर सब तरहें सरकारी स्कूल के शिक्षा व्यवस्था खराब करबाक पाछु परल अई…

दुखद जे समाज ऐहि प्रति मौन बनल अई…

शिक्षा मंत्रालय आ कानुन व्यवस्था के कमजोरी के कारण ऐहि तरहक कृयाकलाप दिनोदिन फलिभुत भ रहल….

समाजआ सरकार के अपन आँखि खोलक चाही.

अन्यथा… समाज त ठकाईते रहत… संग संग,,
सरकारी स्कूल..
शिक्षक सबहक तलब तनख़्वाह आ संकीर्ण राजनिति करबाक अड्डा बैनि के रैहि जाएत..संतोषी.

महाभुकम्प……. पिरीत.

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 04

माय गै….. सरकार के जाड़ नै होईछै..!!…. (डेकसी )
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

मंगनू :- माई गै बड जाड़ होईये….!

माय.: – आऊ बाबू …घुसैक आऊ एम्हर..

(फाटल पुरान सन तौनी ,अपना देह सँ उतारि अपन आठ बरखक बेटा मँगनू के ओढ़ा देलक धनमाया दाई )

बज्जर खसौ ऐहि जार के… दिनेदिन बैढ़िते जाई छै..

(माईटिक बनावल चुल्ही में जारैन द क सलाई खररय लागल धनमाया… ठिठूरल हाथे.. सिमसल सलाई पर बेर बेर काठी रगरलाक बाद कहुना आईग धैरि पजैर गेल चुल्ही में. )

आऊ बाबू.. और घुसैक आऊ एम्हर… आईग तापू…!

मंगनू; -माई गै.. पहिने सनक निकहा घर में कहिया स रहबै अपना सब…??

(हठात बेटाक ऐहि प्रश्न पर अलमला गेली धनमाया..)

कि जानै गेलियै बाबू..! सरकार त बेर बेर कहै छै,भुकम्प में जकरा सबहक घर खैस परलै ,सबके नबका घर बना के देल जेतै ..
कम्बल ,सिरक,चौर ,गहूम सबटा सुबिधा भेटतै भुकम्प पिरीत सबके…”

मंगनू:-माय गै…बाबू कहिया गाम ऐतै…??

(सन्न रैहि गेल धनमाया ..एक्कहि टा झूठ कतेक बेरि बाजत..कंठ जेना अवरूद्ध भ गेलै..मोन के सम्हारैत,पाछु घुमि हाथ स नोर पोछैत एकबेर फेर सँ झुठ बाजि गेल धनमाया..)

जल्दिये ऐथुन तोहर बाबूजी. ..!

मंगनू: -(मायक आँईख में नोर देखि )की भेलौ माय… ??

माय: -नै किछु बाबू… कहाँ किछु…ओ ,आँईख में धूँआ लागि गेल… !!

मंगनु: -माय गै.. हम फेर कहिया स अपन स्कूल जेबै… ??

माय: -ओ स्कूल बड दूर भ जाई छलय अहाँके ,तैं अहाँके बाबूजी कहलक, आब बौआ गामें के सरकारी स्कूल में पढ़तै.. !
आ सरकारो कहै छै जे सरकारी स्कूल के पढ़ाई लिखाई आब नीक हेतै.. बच्चा सबके लत्ता कपरा, जुत्ता मोजा, साईकिल खेनाई पीनाई सबटा स्कूले देतै… आ फीसो नै लगतै…

(भीतर उफनैत समुन्दर के शांत करबाक नीके प्रयास क रहल छल धनमाया )

मंगनू: -माय गै… भुख लागल.. खेनाई नै बनेबिही आई.. ??

माय:-हँ बाबू… हईया अही चुल्ही पर भात चढ़ा दै छियै… कने सोझ भ के बैस न बौआ, हईया हम चाऊर धोने आबै छी..

(बाहर निकैल के चाऊर धोई के चुल्ही पर चढाबैत चढाबैत जार सँ काँपय लागली धनमाया.. )

(फटलाहा सुजनी के टाटक दोघ में कोंचैत …)

जरलाहा ऐहि दोघ स कतेक हवा अबै छै.. भगवानो के शक्ति नै रहलै… दुखे पर दुख…

(बर्दाश्तक बान्ह टुटि गेल.. गंगा यमुना बहय लागल धनमाया के आँईख सँ.. )

मँगनू: -माय गै.. तोरो जार होई छौ न… ??

माय: -हँ बाबू.. जार त सबके होईछै..

(चाऊर सेहो सदहै पर आबि गेलै,आगुक दिन कोना कटतै से सोचैत पिछुलका दिन मोन पैरि गेल धनमाया दाई के.. )
(घरबला काठमाण्डू में दैनिक मजदूरी क के ऐतेक कमा लैत छलै जाहि सँ नीक जँका जीवन यापन क रहल छल धनमाया.. एकटा मात्र बेटा के गाम स बाहर प्राईभेट स्कूल में पढा रहल छल.. चारि पाँच साल में किछु पैसा जोगेलक त घर सेहो बैनि गेलै गाम में… पछिला बेर काठमाण्डू जाईत काल मंगनू के बाबू कैह गेल रहै, जे आब आएब त घर में टीबी लगाएब.. मँगनू त स्कूल स गाम धैरि सब दोस्त के कैह देने छै ,जे हमर बाबू टीबी अनतै ऐहि बेर ..
मुदा,,
दैबक लाठी… महाभुकम्प में गामक घर त खैसिये परलै…
काठमांडू में जे कोनो तिमंजिला मकान खसलै ….ओहि तर में पैरि मंगनू के बाबूजीक अंत भ गेलै…घरबला के
मरलो मुँह कहाँ देखि पेलक धनमाया..
ओ त संग में काज करै बला सब समाद कहलकै तखन बुझि सकल धनमाया..
धिरे धिरे चारू तरफ सँ दुखक बिहैर घेर लेलकै धनमाया के… आठ बरखक अबोध नेना के एखनहु धैरि नै कैहि सकल जे, तोहर बाप मोईर गेलौ आ तू बपटुगर भ गेलेँ…
कोना कहत ओहि नेना के जे रोज अपन बाबू के गाम ऐबाक बाट जोहि रहल..
साल भैरि त बिति गेल ओ दानव दिन…
बेरि बेरि सरकारक आश्वासन भेटि रहलै कतेको धनमाया के..
मात्र आश्वासन.

पुरना मुदा मोटगर सनक एकटा कम्बल धैरि बाँचल छै घर में, जाहि में दुनू माई पूत के जाड़ कैटि रहलै..

माय: -(कम्बल उठाबैत )उँ.. रौ बौआ तू नै त पैन तैन हेरा देलही.. देखही त ईहो कम्बल ऐकटा छलौ सेहो आधा भिजी गेलौ.. आब कि ओढ़बेँ राईत में…

मंगनू: -नै गै माय.. हम नै भिजेलियौ..(डेराईत )माय गै… तहन त राईत में बड जाड़ हेतै न… ??

माय: -नै हेतै… तू सुखलाहा दिसन सँ ओढि लिहेँ…

मंगनू: -आ तू…????

हमरा भअ जेतै जेना तेना…

(किछु नै बाजल मंगनू.. सायद मायक बात पुरा तरहेँ नै बुझि सकल बच्चाक बुईध.. सुखलाहा दिसन बेटा के ओढाबैय आ भिजलाहा दिसन सँ अपने ओढै के बीच मायक ममता. त्यागक त एकटा छोट सन उदाहरण मात्र सोझाँ आयल… मायक ममता त्यागक परिभाषा त मानव कोन स्वयं भगवानों संपूर्णताक संग देबा में असमर्थ छैथि… )

मंगनू: -(अपन पूरना घर मोन पारैत )माय गै.. ई भुकम्प किया होई छै.. ??

माय: -कि जानै गेलियै… बाबू अहाँ पढब लिखब, नमहर होएब त अपने सबटा बुझि जाएब…

मंगनू: -कहिया स पढबै हम…???

माय: -जल्दिये… आब सरकारी स्कूल में पढब अहाँ…

मंगनू: -उँ.. गामक सरकारी स्कूल त टूटल फूटल छै… टूटलाहा दबाल दिसन स बरखो क पैन आईब जाई छै.. माय गै……….
जार बड हेतै न सरकारी स्कूल में…
एकटा जैकेट किन दे न हमरा…

माय: -(कोंढ जेना फाईट गेलै धनमाया के )तोरा त स्वीटर छौहे न बौआ…

मंगनू: -उँ… ओएह.. एक्केटा. सेहो फाटल…

माय: -आईग नै कोरही… चुपचाप बैस न… देखही न आब सरकार कहै छै सबके सीरक, कंम्बल, अन पैन सबटा बँटतै…
कि पता तोरा एकटा जैकेटे द दौ…

मंगनू: -माय गै… ई सरकार के होई छै.. ??

माय: -देश के बरका लोक सब सरकार होई छै…

मंगनू: -(कँपकपाईत )ऊऊऊ…स्ससस ………..
जार बड होई छै….
माई गै…

माय: –की…??

मंगनू: -सरकार के… जाड़ नै होई छै.??

(नि:शब्द )
(जबाब चाही… मंगनू के )संतोषी.

देवलख सँ द्वालख धैरि……

Santosh Kumar santoshi maithili poem 6
किछु अंश……
सन् 1939–1951
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

प्रबल वेग मेें बहय बाली ,अपन धारा परिवर्तन करबा में माहिर कोसी नदी लगभग बारह साल धैरि ऐहि छेत्र में उत्पात मचाबैत रहल…
साल में नौ महिना अपन तीव्र वहाव सँ बहैत कोसी, ऐहि ठामक जनजीवन अस्त व्यस्त करबा में कोनहु टा कसैर नै छोरलक…
अन्न उपजा के कोनो नाम निशान नै रैहि गेलै, भुखमरी के नौबत आबि गेल रहै… फलस्वरूप गाम गाम सँ खास क के पुरूष वर्गक पलायन सुरू भ गेलै.. लोक सब मोरंग, कलकत्ता में जा क मजदुरी करय लागल..
ओहि मजदुरी के पैसा स बकौर -बराही दिस स खाद्यानक किन बेसाह करय लागल… गाम घर में मात्र महिला रैह गेली. …
हैजा बीमारी सँ घरक घर आ वंशक वंश उजैर उपैट गेल.. दु टा मुर्दा जाबत जरा के गाम आबय ताबत चारि टा मुर्दा और परल भेटै… ओह कतेक भयावह दृश्य हेतै ओ…. सुनैत में जेना देह सिहैर उठै अई…
चिकित्सा के कोनो व्यवस्था नै.. सुपौल या फेर मधेपुर में ब्रम्हाचरण घोष नामक बंगाली डॉ. छलाह मुदा समुचित व्यवस्था नै के बराबर…
समाचार प्रसारण के लेल दौराहा व्यवस्था रहै…सब गाम में एकटा मुस्डंड सनक लोक, जेकरा हाथ में एकटा भाला आ काँख में एकटा झोरी रहैत रहै… एक गामक दौराहा दौर के दोसर गामक दौराहा के समाचार कहलक आ ओ दौराहा तेसर गामक दौराहा के कहलक.
..ऐहि तरहें लोक एक दोसर गामक समाचार बुझय….
द्वालख में पहला स तिसरा क्लासक एकटा स्कूल रहै जाहि में गोरखा गामक भोला झा शिक्छक छलाह.
.कोसी बाढि के कारण ओ स्कूल कहियो ककरो दरबज्जा पर आ कहियो लछ्मी नारायण मंदिर पर चलावल जाईत रहय…

एहेन विकट परिस्थिति रैहितो लोक में आपसी मेल जोल खुब रहै…
वर्तमान में सुख सुबिधा रैहितो लोक में आपसी मेल जोल में कमी सहजहि देखना जाईछ.
..कारण जे भी होऊ…संतोषी.

पंचायती चुनाव

maithili poem Santosh Kumar santoshi
———–
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

कनियाँ हाथ स चाहक कप पकरनै रही कि ….हुलहुलाएल एकटा महिला बिच्चहि आँगन में आबि ठार भ दूनू हाथ जोड़ि के खूब जोर स हमरा पर फेकलैनि ….. ओ अपन परनाम…।

अकबका गेलहुँ हम ….।

=> पाछु स कनियाँ कहलनि …. ई ठार छथिन ।

=> अरे, ठार छथिन त बैसय लेल कहियौन नेs…

=> कनियाँ हँसैत बजलीह – इलेक्सन में ठार छथिन ….

=> ओ ……….
कोन पद सँ ठार छियै अहाँ….

=> ओ…. किदैन त कहै छै ….. उ…… देखथुन त … बिसैरियो जाई छियै … अथी …

=> अछ्ः … चुनाव चिन्ह् कि छी अहाँ के …….

=> ओ ….. अथी …. कि कहै छै ओकरा ….. हईया….. पतंग छाप…..

तावत एकता बच्चा पाछु स बाजि उठल …. भक् …. अहाँके तS खटिया छाप छी ।

=> देखथुन …. हैईया …. ई बच्चा ठीके कहलकैन…. हमर खटिया छाप छै । ओ बच्चा सब पतंग – पतंग करैत छलै न से सएह मुँह म आबि गेलै । कनि ध्यान रैखथिन – – हमरो खटिया पर ।

=> अछह् … जाऊ अहाँके हाजिरी भ गेल ।

मुखिया चुनावक संगहि ढेर रास औरो पद सबहक चुनाव होईत छै । के कोन पद स आ कोन चुनाव चिन्ह् स लैरि रहल अई, से स्व्यं कतेको प्रत्यासी के हारला या जितला के बादो नै पता चैल पबैत छै । कारण …….
मुखिया प्रत्यासी सब अपना- अपना हिसाबे लोक सब के विभिन्न पद में ठार क दैत छै, जाहि स जितलाक बाद सब किछु अपना पकर में रहय । किछु कठिपिंगल लोक सब विभिन्न तरहक पेंच लगेबाक खातिर जबरदस्ती अपन किछु गोटे के किछु पद पर चुनाव् लरबाक लेल सेहो ठार क दैत अई ।
सब स बेसी समस्या में परैत अई वोटर ……
कारण एक्कहिटा पंचायत , एक्कहिटा गाम आ एक्कहिटा वार्ड स कतेको गोटे चुनाव लैरि रहल अई …..
आखिर वोट देवै ककरा ।
कक्का के कि भैया के , काकी के कि भौजी के , बेटा के कि भातिज के ।

चौक – चौराहा सS ल के कोनटा – फरका तक , कनफुसकी आ बुईधबिचरी बूझू गन्हेंने रहैछ बातावरण के । आ ताहि गन्हाएल पर गधकिच्चन करबाक लेल बरका – बरका कनफरूआ साउण्ड संग घरै – घर घुमैत विभिन्न प्रत्यासी के प्रचारक सब पान आ गुटखा के पीक सँ गामक बाट सडक के सहजहिं रंगाई – पुताई क दैछ ।

प्रसिद्ध गायक – गवैया संगहिं नवतुरिया गीतहार सब के सेहो प्रचारक कैसेट में गाबि- बाजि के किछु आय अर्जन करबाक मौका भेटिये जाईछ ।
मैथिल सभ्यता – संस्कृति स् जुरल गीत – नाद जेना सोहर , समदाउन , डहकन , बटगबनी , जट जटीन , अल्हा…आदि सबहक धुन स तैयार कएल प्रचारक कैसेट बजला सँ माहौल कनेक रमणगर आ सोहावन सेहों भ जाईछ । ओ बात अलग छै जे ठहाठही दुपहरिया में पराती के धुन सहजहिं सुनवा में आबि जाईछ लोक सब के………

मंदिर आ मस्जिद सेहो बाँचल नै रहैछ….. खासम खास त ऐहि ठाम सँ सब खेल बेल खेलाएल जाईत अई…. चुकि आस्था बड पैघ चीज छै… कदाचित् तैं भगवान में अपन आस्था रखनिहार सब भगवानक घर के राजनितिक अखाड़ा बना लैछ …खास पंचायती चुनाव में मंदिर मस्जिद पर सँ बड्ड बेसी लाभ भेटैछ प्रत्यासी सब के…..

चुनावक दिन त बुझू कोनो मेला स कम नैS………. रंगबिरहा गप सब ईसारे – ईसारा में भ जाईत अई । कतहु – कतहु त हास्य – व्यंग , तामस – तेख , लाठी – ठेंगा स ल के गोली – बारूद के नौबत तक आबि जाईत छैक । आ ओहु दिन तक ककरा बैसाबी आ ककरा उठाबि तकरा लेल खास प्रक्रिया सब अपनायल जाइत छै । एम्हर महिला सबहक त बुझू भैरि दिन जीह टंगलै रहैत छै , जे कखन साँझ परत आ पुरूख पात घर आओत ।

थाकल झमारल राईत में निन्न धैरि बढ़िया होईत छै सब के ।

भोरे होईत धियापुता स बुढ- सुढ़ धैरि सब गोटे अपन – अपन आंकलन स हार जीतक फैसला करय लगैछ ।

=> हौ भरत भाई , देखियहक हम जे कहने रहियह सेएह हेतह ।

(आब पाँच गोटे ओहि ताक में लागि परैछ जे आखिर ई कहने कि रहथिन भरत भाई क)

=> अरे , ओकरा त जमानतो नै हैतै । हँ , चुन्नु बाबू मुखिया भ गेल बुझु पंचायतक ।

=> धुर बुरि , 14 नम्बर वार्ड में कएक टा वोंट छेै ओकरा सेहो बुझैत छिही कि अनठेकानीये दहैं के दहैं मारै छिही ।

=> हे यौ श्याम कक्का ….. हमरा सब के सबटा वोट गानल अई । कोन वार्ड स ककरा कतेक वोट भेलै से एक – एक टा गना देब हम सब ।

=> हँ… हँ… बुझहै छियौ राै बच्चा …….. छोैरा सबहक कुदने वोट नै होई छै। से होईतै त भोलबा के बाप तोहरे सबहक तरफदारी में वोट दितौ कि नै …..

=> से नै कहियौ भाई सेहाब …… अहि बेर छाैरा सबहक पुरा जोर छलहि । आ हे एकरा सब हक एकजुटता त बुझु देखिते बनै छल ।

=> धूर जी ….. ई सब कि जाने गेलै राजनिति , एकटा बात जानै छियै न ,जे एकरा सबहक मुखिया जितियो जेतै तS सबटा वार्ड सदस्य ककरा मुठ्ठी म छै ।

=> धू: ……. तै सब स कि हेतै ……

=> कि हेतै …… एकोटा काजे नै होमय दतै …..

=> अरे , समाजक , गामक , पंचायतक विकास में कियो किया रुकावट बनतै………

=> से दखैत रहियौ ने , ओना हमरा त सबटा वोट गानले अई , के मुखिया बनतै से त हम जैनते छियै ।
एहि तरहें सब गोटे अपन – अपन आकलन स गरमेने धैरि रहैछ माहौल के ।

हार – जीतक फैसला संगहि एक तरफ खुशी … जस्न…आ दोसर तरफ शोक …. क्रोधाग्नि के लहैरि …..

=> मुखिया जी …… आब विकास तरफ सेहो ध्यान देल जाऊं …… चूँकी बरका-बरका वादा सब केने छियै समाज सँ ।

=> अरे , त हम कि समाज स बाहर छियै । मुदा बुझाई नै अई जे ई सब कोनो काज हुअS देत ।

=> से किएक यौ……. के सब नै होमय देत यौ…..

=> अरे, 14 टा वार्ड सदस्य में आठो टा कम स कम अपना पकर में हेबाक चाही, आ से अछि नै…… सब विरोधी छी ….. ओ सब कोनो काजे नै होमय देत …..

=> ऐह , मुखिया जी ओहो सब गोटे एही समाजक लोक छैथ, आ ईयेह समाज हुनको सब के जितेने छैन…… विकास के नै चाहै छै यौ । ओ सब रुकावट नहीं करता……..

=> अरे, कतय छी अहाँ सब एकहु टा काज ओ सब नै होमय देत…… तहन देखियौ छोड़बै त हमहूँ नै ……. काज तS करबे करबै मुदा 12 नम्बर वार्ड में कोनो काज नै हेतै से हम पहिने कैह दैत छी…….

=> से कि मुखिया जी- ओहु वार्ड सॅ वोट त अएबे कएल अहाँक…… एतबा न -जे किछु कम आयल……..

=> अरे से बात नै छै….. ओहि वार्डक, वार्ड सदस्य के अहाँ सब कोनों नै चीन्है छियै……
खैर एखन जाई जौ….. हम कईल्ह पटना जा रहल छी……. किछु काज अछि हमरा…… फेर गामे आबै छी हेतै भेंट घाँट……..

(कनफुसकी)……..

=> हँ बैजू भाई , मुखिया पगला त नै गेलह……

=> अरे, सत्रह लाख रुपैया कहाँदैन खर्चने छै इलेक्सन में ।से जावत असुली नै हेतै तावत होश में कोना एतै………

=> हाँ से बात त सत्ते ……. मुदा हौ एहि वार्ड सदस्य सब से त एकरा केहेन बढ़िया गप सप् देखै छियै…….. परसुओ साँझ में संगे बैसल देखलियै आ फोनो पर हरदम बतियाईते रहे छै ….. से ई कोना कहैये जे विरोधी छी …. बुझलियै नै…….

=> अरे, कि बुझबहक .. अर्जुन भाई… सबटा राजनीति छियै……. ई सब अपना में मिलले रहतै….. आ लोकक सोझा एहिना नाटक करैत रहतै ……

=> फाईदा की………

=> अरे नै बुझलहक.,…. ई कहतै जे ओ सब काज नै करय दैत अई … आ ओ सब कहतै जे ओ अपने नै करैत अई….. एहिना में समय विति जेतै… सब मिल बैंटि के खेतै आ हगतै…………

=> ओ……. आ हौ बैजू भाई ई छौड़ा सब कि करतै जे भैरि – भैरि दिन एकर पाछु -पाछु घुमल फिरै छलै …. विकाश होगा….. विकाश होगा……

=> कि हेतै….. ओहो सब माथा फोईर क बैसत……

=> भने… सार सब के बुधियारी बहार हेतैन …. अपना के सबटा पढ़ल लिखल होसियार बूझै छै न…… सबटा होसियारी किदैन में चैल जेतै… जनैम के ठार भेल आ राजनीति करय चलल।जनै त छै नै जे सगरो दुनियाँ में राजनीति केनाई आसान , मुदा गाम में……

=> हाँ अर्जुन भाई,मुदा एकटा बात औरो बुईझ लहक….. हम तू सब जे राजनिति करैत एलहुँ ताहि से बहुत बेसी उपर छै ई सब …।अपना सब त जाइत पाईत में ओझरा के राखलियै सब के सब दिन …..आ ई सब जाईत – पाईत , छोट – पैघ , गरीब – धनीक सब के एक ठाम एक जुट क के एकटा संगठन ठार केने छै ,,, युवा संगठन ।
आ हे…
एकरा सब के लोभ लालच नै छै , मात्र विकाश चाहै छै ई सब ,आ हे ई सब बहुत किछु सोचिये के ककरहु सपोर्ट में आगु आएल हेतै….. एकरा सबहक सपोर्ट त देखबे केलहक जौं बिद्रोह पर उतैर जेतह , त बुझहक सबटा खच्चहरवा सबके खच्चरैहि बाहर भ S जेतह…….
हौ देखै नै छहक बरका बोर्ड में की लिखके टंगने छै……..
पंचायती चुनाब सँ आयल सब
पदोभारी के हार्दिक सुभ कामना
युवा संघ ।

=> एकर की मतलब………???

=> मतलब…पुछै छ …ह ह ह मतलब ई जे आगू बिकासक लेल सुभ कामना….
.अन्यथा ,सबहक खच्चरैहि बहार करतह …यूवा संघ

=> बुझलौं….दुनु हाथ उठा के कहय परतै…हरदा ।
संतोषी.

सुगरमारा काण्ड... ..

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 43
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

हँ,
से तो कहबे करते हैं कि बहुते बरका गलती कर दिये हैं हम सब.. .
और अपने धरम करम, अपने ईज्जत प्रतिष्ठा की हिफाजत करना गलत है तो ई गलती हम सब बेर बेर करते हि रहेंगे…
चाहे ईसके खातिर हम सभी को जेले काहे न जाना परे…

तामस सँ लह लहाईत मिंन्टू बाबू के बात पर समुच्चा गामक लोक अपन अपन हाथ उपर उठा के स्वीकृति देमय लागल…

बरा बाबू (दरौगा)संगहि संपूर्ण थाना स्टाफ बुझू उठि कए आबि गेल रहै गामक छोटका स्कूल पर..
संगहि गाम भैरिक लोकक उपस्थिति, गामक एकता के निक्कहि दर्शा रहल…..

गामक एकजुटता देखि बरा बाबू सेहो जेना…………..
ऐसा बोलने से नहिं ना होगा जी,
जानते हैं उ सब का केश कितना खराब होता है..
अरे,उ लोग सब परानी हुँवाँ थाना पर जाकर पेटकुनियाँ दिया हुआ है,..
बात उपर तक पहुँच गया है… अरे कुछो भी हो ईस तरह से नहिं ना करना चाहिए,,
सब फँस जाईयेगा…
जानते हैं प्रशासन को भी उ सब का हि साथ देना परेगा….

फुफकाईर उठलाह मिंटू बाबू….
ईसका मतलब उ सब मनमानी करेगा और हमलोग चुपचाप देखते रहेंगे..
कानुन प्रशासन सब के है न साहेब…
ईतना जान लिजिए.. कि अपने धरम करम कि रक्छा के लिए आज सत्रह ठो मारे हैं कल सत्ताईस ठो मारेंगे…
भले हि प्रशासन हमलोगों को फाँसीये पर काहे न चढा दे…

अरे क्या पगलपनी जैसन बात करते हैं…
आखिर कुनौं नियम कानून है कि नहिं..
बार बार कह रहे हैं न फँस जाईयेगा आप लोग, तो समझते काहे नहिं हैं.. क्या बुझते हैं, आपलोग ईस तरह से मार ते रहेंगे और पुलिस प्रशासन चुपचाप बैठकर तमाशा देखेगा..

नहिं साहेब, हम सब को लाईन में ठार करके एक तरफ से गोली दाग दिजीए…
काहे कि बरका अपराधी हैं न हम सब

आखिर भेलै की.. …

अरे नै बुझलियै…

लोक के अपन निजी संस्कारक बात होऊ आकि छैठ परमेश्वरी के पुजा अर्चना…
आदि काल सँ डोम जातिक विसेष पहल होईते आबि रहल अई…
आ सुरूअहि सँ डोम जातिक लोक मवेसी पालन के रूप में सुगर (सुअर)पालन करैत आबि रहल अई…
तहन पहिने के अपेक्छा वर्तमानक परिवेष में सुगर पालन में सेहो अंतर आबि गेल अई….
पहिने हेंजक हेंज सुगरक संग दू तीन टा सुगर चरबाह सेहो रहैत रहै,
जे भैरि दिन सुगर चराबय आ गाम घर में घुमि फिरी के बाँसक बनल छिट्टा सूप फुलडाली आ कतेको समान बेचि क अपन आय अर्जन करैत साँझू पहर में सबटा सुगर के हाँकने अपन गन्तव्य जगह पर ल के चैल जाईत रहय…..
गाम घर पर सुगर प्रवेश निषेध मानल जाईत रहैक….
आब….
नवका रिति रिवाजक संग नव ढ़ंगे सुगर पालन कएल जाईत अई…
सुगरक संग चरबाहक कोनों आवस्यकता नहिं,
हेंजक हेंज सुगर के अनेरूआ छोरि देल जाईत छै…
जे राईत दिन सदिखन बारी झारी सँ ल के आँगन घर तक में सहजहिं देखा पैरि जाईछ….
खेत खरिहानक फसल सँ ल के बारी झारी में लागल साग सब्जी तक के नष्ट करबा में कोनो टा कसैर नै छोरैछ ई अनेरूआ सुगरक हुजूम…….
सुगरक मालिक (डोम)अपना जरूरतक हिसाबे कहियो काल आबि क दु चारि टा के पकैर के ल गेल …..
लोक कतबहु किछु कहौक ऐकरा लेल धैन सन…..

भरत बाबू के दरबज्जा पर राईतुक समय कियो पुरूख पात नै रहै छै, तकर पूर्ण लाभ उठाबैत परसुकी राईत एकटा सुगराही ऐहि दरबज्जा के अपन सोईरी घर बना लेलक आ छ: टा बच्चा के जनम द अपन परसौती के कर्तव्य निर्वाहन करय लागल ओहि ठाम…
भोरे भोर हंगामा लोक जमा भ गेलै, नैंर पुरैन लागले ओहि छबो टा जनमासू चिलका के दखै लेल….

बाप रे….

बाप रै, करै छी….

ओतबहि नै…

पंडितजी कका हाथ में अछिंजल आ फुलडाली नेने गोसाउनिक पुजा लेल भगवती घर प्रवेस केलैन की ऐकटा मोटे सन सुगर के बिच्चहि घर में भिसिन्ड भेल परल देखलखिन…..
चुकि भगवतीक घर पुजा पाठक समय मात्रे खुजैत छलै.. राईत विराईत केखनो पाछु के टाट तोरि के ओ सुगर गोसाउनिक घर में प्रवेश क गेल रहय…
समुच्चा घर के कोईर काईर के बुझू एकबट्ट क देने रहैक…
केबार खोलिते, पंडीतजी कका के देहे पर सँ फाईन क ओ सुगर बाहर परा गेलै…
पंडीतजी कका त बुझू अवाके रैहि गेलाह..
तीन चाईर दिन धैरि अन्न जल त्यागि देने रहथिन,
गंगा स्नानक बाद कतेको पुजा पाठ होम जाप सब सँ मोन चित स्थिर केलाह पंडीतजी कका….

तखन…

तखन की….
सुगरक त्रास सँ नाकोदम भेल गौवाँ सब एकजुट भेल… दोसर कोनों उपाय नै रैहि गेलै लोक सब लग….
फलस्वरूप……
सुगरमारा काण्ड..

ओ…तैं दु दिन सँ गाम घर पर सुगरक उपद्रब नै भ रहलै….

हेतै कोना… सुगरमारा काण्ड में निपत्ता भ गेल सबटा…..

आब…….?

आब त देखबे करै छियै…..
बाहुल्य…….
बहुमत……..

ईति सुगरमारा काण्ड प्रथमोध्याय समाप्तम् ………….
संतोषी.

बाबा के सनेश….

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 1002
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

बाबा किछुओ त दियौ…. एना छुछ्छे हाथ कोना जेबै ….मईयाँ की कहथिन…

से की करबिही…तेहेन संजोगे तू गाम के लेल विदाह भेलें जे चाहियो के किछु नै द सकबौ.

से कोना हेतै बाबा… किछुओ त देमहै परत…

अरे हम आईये गाम स कलकता एलौंह आ तू आईये कलकता स गाम जा रहलें… आबिते आबैत की देबौ गाम ल जाई लेल..
बस जो कहिहैन कुसल मंगल स बाबा पहुँचि गेलाह…

से नै हम मानब… गाड़ी राईत में धरबै न हम,ताबत समान सब ओरियान करियौ…. हम आबै छी हईया कनेकबा काल में…

एसगरे बाबा गुईन धुईन करय लगलाह….
सहर सँ गाम जेबा काल कहाँ एना कियो कहै छै ककरहु…. आब त मुँहों स कहल समाद ल जेबाक लेल तैयार नै होईछै कियो… तहन त जोखना के सिनेह, श्रद्धा आ अपन अपनत्वक भावना छै हमरा प्रति… तैं त ऐहि तरहें कैहि रहल….
छुछ हाथ आ छुछ जेबी… की देबै एकरा गाम ल जाई लेल…
मुदा एकर सिनेह खातिर किछु नै किछु त देबहै परत..
अन्यथा कहिं एकर हृदय चोटिल नै भ जाई…

एकाएक किछु निर्नय लैत मुस्किया देलखिन बाबा…

नथ्थी कएल झोड़ा उठाबैत –विहुँसैत बाजल जोखना…बाबा कहै छलियै समाने नै देबौ.. झोरा त भैरगर भ गेल…हहह..

आब तू जिद्द रोपने छलही… त थोरबे थोरबे बेसी भ गेलौ…

से नीके न भेलै बाबा… तीने महिना हम कलकता खटै छियै, बाकि नौ महिना त अहींके खेत पथार, हर बरद स गुजर बसर होईछै हमरो बाल बच्चा के.. कहियो अहाँ की.मईयाँ हमरा जोन हरबाह बुझलियै…

अछ:गाड़ी के बेर भेल जाईछौ… जो आब..नीक स जाईहें…पैसा कौड़ी ठेकैन के राखिहें… जो.. जय गणेश..जय गणेश…

बाबा के पैर छुबि विदाह भेल जोखना….
रस्ता भैर अपना स बेसी ध्यान बाबा के समान पर रहै….

गाम पहुँचिते समानक झोड़ा नेने बाबाक अंगना दौरल गेल…
गोर लगै छी मईयाँ…

के जोखन.. कहिया एलियै गाम… नीके छी न्…

हँ मईयाँ… बस एखने एलियै… कहलियै पहिने मईयाँ के गोर लगने आबै छीयै तब किछो हेतै…

बैसू न…

नै मईयाँ अखन बैसबै नै.. हईया ई समान य… एह बाबा त दैते नै छलखिन.. जबरदस्ती हम बुझू कहलियैन देबाक लेल… आ हईया ई चिट्ठी सेहो बाबा देने छैथ… ईहो लिय….हम फेर आएबै छी मईयाँ.

जोखना चैलि गेल…

एम्हर…
झोरा खोलिते….गै माई….
एना कोना भेलै…
घरक समुच्चा लोक जम्मा भेल… सब अवाक…
चिट्ठी कहाँ अई…हँ हँ चिट्ठी त परहू….

श्रीं…
छोट सब के हमर सिनेह.. आशिर्वाद..
हम कुशल पूर्वक कलकता पहुँचि गेलौंह…
सब बात त जैनिते छियै सबगोटे….
तहन जोखना बड जिद्द केलक जे बाबा किछुओ दियौ गाम लेल….. ओकरा निराश करब उचित नै बुझि परल से…..

चारि टा ईंटा पठा रहल छी… कोठी के गोरा तअर में द देबै…… ईति ….संतोषी.

चिकनगुनिया…….कनियाँ

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 025
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

अकश्मात…
हाथ पएर जेना झुनझुनाए लगलै ओकर….
देहक संपूर्ण जोर जेना तोर मारय लगलै….
समुच्चा देह तेना काँपय लगलै जेना बुझना जाई कोनो जाने नै रैहि गेलै ओकरा में…

.35के स्पीड में चलैत मोटरसाईकिल धैरि कहुना रोकि लेलक ओ….
मुदा स्टेण्ड पर ठार नै क सकलै आ मोटरसाईकिल संगहि धम्म सँ खैसि परल जमीन पर ओ…….

दू चारि टा बटोही सब दौरि के केहुना उठा क ठार क देलकै ओकरा…

भाई चोट तो नहीं लगा ना…… (एक गोटे पुछलकै )

नहीं.. .ठीक हूँ.. मैं..
कहुना ओकरा मुँह स निकैल सकलै….

साला ..पी के बाईक चलाता है… मरेगा किसी दिन…

बगल स कहैत एक गोटे आगू निकैल गेलै…

दस मिनट सुस्तेलक आ कहुना कहुना घर पर धैरि पहुँचल….

पापा आ गये… पापा आ गये… दुनू बेटा घरक बाहरे ओकर दुनू कन्हा पकैर के झूलय लगलै…

एक मोन त भेलै जे दुनू छौंरा के झमैर क फेंक दियै केम्हरो…

मुदा किछु तेहेन सन करबाक लेल ओ असमर्थ अई…
आय ओकरा पछताबा सेहो भ रहलै, जे किया दुनू टा छौंरा के देह पोसै खातिर केरा दुध ठूसाबैत रहैत अई ओ….

बड जीबटगर भ गेलै दुनू टा छौरा…
डेग नै ससरय देलकै ओकर….

आन दिन त दुनू के काँख में उठेने उठेने कतय स कतय घुमि अबैत छल ओ…

मुदा आय….
घरक गेट पार नै क सकलै …
आ …
धप्प सँ बैसि गेल ओ ओहि ठाम…
मुँह स आबाजो नै निकैल सकलै…

चिचीया उठलै दुनू छौरा…
मम्मी… मम्मी…

दौरली कनियाँ घर सँ…. .
की भेलै……

लाल बुझक्कैरि आबिते जेना सबटा बुईझ गेलखिन…..

जो… तू दुनू.. भीतर जो…

दुनू बच्चाक प्रस्थान संगहि,
भरल पूरल कनियाँ फूईट परलीह….

सबटा बुझहै छी अहाँक नाटक हम…
फेर कतौह ढ़ारने होएब… छुछुन्नर बला चाईल नै नै छुटत अहाँके….
सोधनमा सोईध लेतै सबटा…
उठू न आब….
की एत्तहि गैर जाएब माईट में….

आय एकरा सेहेन्ता भ रहलै जे धेल्ले चाट कनियाँ के कनपट्टी में ध दियै….
आ खूब जोर सँ चीचीया क एक्कहि टा शब्द कहियैक. …
चू………प…..

मुदा नहिं…
एकर सरीर आ एकर जुवान आय एकर सेहेन्ता पूरा नै क सकलै…

समुच्चा देह फुल सन हल्लूक… हवा में उरैत बुझना जाई एकरा…

गीट्ठह…गीट्ठह… दुखि रहलै एकर……

घींच तीर के कनियाँ भीतर धैरि ल गेलै एकरा……

ओछ्यान पर पेटकुनिया द बेसुध सन पैरि रहल ओ. ..

कतेको बेर कनियाँ आबेस करैत कहलकै जे उठि के चलू बाथरूम…
साबून स रगैड़ के नहा दैत छी….
भक टूटत ..

कनियाँक आवेसक प्रत्युत्तर देबाक स्थिति में कहाँ छल ओ…
बस कातर नजैरि सँ निहारि रहल कनियाँ के……..

अपना दिसन एतेक वेकलता सँ ताकैत देखि कनियाँक कोमल हृदय पसीज गेलै जेना….

अछ: नै नहाएब त नै नहाउ….
कनि काल सुईत रहू अनठा क….

ओह…बचलौंह…

तेहेने आभास भेलै ओकरा…
दुनू आँखि बन्द क आब निश्चिंत स पैरि रहल ओ…….

सुतली राईत एकर पएर जाँतैत कनियाँ के मोन में बरका उदवेग उठि रहलै…..
कतेक काल बिति गेल पएर जाँतैत… आई किएक नै सब दिनुके सन ई घींच के ओछ्यान पर खसा लेलक हमरा….
नै कोनो उकटा पैंची…
नै कोनो लट्टा पट्टी… आखिर आई की भेलै एहेन…. पीलाक बाद एहि मामला में औरो बेसी झंझटिया लोक आई एना किएक घत लाधने अई…..

कहीं…… हँ ओएह बात छियै… पक्का ओएह बात छियैह…

नै जानि,,
की फुरा गेलै कनियाँ के… झकझोरि के उठाबय लगलै ओकरा….

यौ… यौ….

उँ…
.एतबा कैहि सकल ओ..

आकि…
फुईज गेलै लाऊडस्पीकर….

सबटा बुझहै छी अहाँके नाटक हम…..
. अहाँ एतेक खेल बेल दोसर के जानत दुनियाँ में…… जहिया स ओ मौगी अहाँक औफिस जा लागल तहिया स. सबटा रंग ढ़ंग बदैल गेल अहाँके..
.. कोन कोदैर पारैत रहियै आफिस मे अहाँ जे डाँरो पीठ नै उठैये…..
हमरा कोनो हाट बजार स कीन के नै आनने छी..
चिनहै छियै न हमरा भाई बाप के..
. की करत सेहो बुझहै छियै न….
क्रमश:…..

एम्हर…
एकर माथ जेना फाटय लगलै…

मोन होई जे धूह धूह धधकैत आगि में कुईद परी…..

आ कि ऐहि मौगी के……

मुदा नहिं….
. नि:सब्द भेल परल रहल ओ…
दुनू आँखि सँ विवशताक नोर बैहि रहलै ओकरा…

तेहेन में…

संतोष कुमार संतोषी केर लिखल एकटा गीत सहजहि मोन पैरि रहलै ओकरा…

कनियाँ कनियें होई छै बौआ, बेसी नै बुझिह…

पहिने त बड़ मीठगर लगथुन, एथुन पएर दबेथुन..
बाद में ओ मनमानी करथुन, अप्पन पएर बढ़ेथुन…
पुरूषार्थ के रक्छा खातिर पएर नै ओकर दबबिह…

कनियाँ कनियें होई छै बौआ, बेसी नै बुझिह…..

सब दिने कनियाँ के बेसी बुझैत आबि रहल ओ..
जकर पूर्ण फल प्राप्त भ रहलै ओकरा …

भोर होईते बरका भैया के फोन क के बजौलक…
हास्पीटल जा क चेक जाँच करौलक…

चिकनगुनिया रोग स ग्रसित भेल छल ओ…

डाक्टरक सुझाव संग घर आबि गेल रहय ओ…
बरका भैया सेहो बुझा सुझा क हिदायत सब द क. चैलि गेल रहैथि…

बड़ प्रेम स कनियाँ पुछलकै ओकरा…
की सब कहलक डाक्टर… किछु खएबाक मोन नै होईये… राइतो नै खेलौं…..

ऐं….ओ…. चिकन…. गु……..

एतबहि में लोईक लेलकै कनियाँ….

यौ लाजो नै होईये कोनो गत्तर में अहाँ के….
राईत स ऐहेन हालत य… एखने डाक्टर के देखा क एलौं हन…
. आ चिकन खाई के मोन भ गेल….
किया नै ..
कहियौ न ककरहु..
जे चिकन संग संग एकटा बरका बोतलो औरो आनि देत जे ढ़ारि लेब बैस के…
जरलाहा एहेन लोक नै देखलियै कत्तहु..
. जकर एहेन हालत रहतै से चिकन के बात करतै….
जाऊ न औफिस ओतय त राखले य एकटा चिकन चमेली… ठूसब खूब….

बर्दास्तक बान्ह जेना टुईट गेलै ओकर…
खूब जोर सँ चीचीया उठल ओ….

चू……प………

..(हँ एहि बेर त आवाजो संग देलकै ओकर)

संपूर्ण ताकत लगा क एक्कहि साँस में चारि लाईन बाजि गेल ओ.. …

चिकनगुनिया नामक बिमारी भ गेल अई हमरा…
डाक्टर कहलक तीन महिना तक ई रोग एहिना रहतौ…
मुदा…
तू…
तू त… तीने दिन में हमरा खतम क देमें गै मौगी…..

तू कनियाँ नै.. चिकनगुनिया छियैं गै………

(एहि बेर ओकरा स पहिने कनियाँ बेचारी धप्प सँ बैसि रहली जमीन पर.. )संतोषी

ईनारक पैनि……अछूत.

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 51047
✍️ संतोष कुमार संतोषी.
——————-
पैनि सँ भरल लोटा उठाके मुँह लग लैते जेना केहेन दैन मँहक स्ट्ट सँ पैसि गेलै प्यासल जोखनाक नाक में…

गै गंगीया,,,
प्यास सँ कठ सुखायत घड़ी में ई कोन सड़ल गन्हाएल पैनि पीबय लेल देलें हमरा…

रोज साँझ भिनसर त पैनि भरै छीयै…
आय भोर में नै जा सकलियै ईनार पर, अखने सँझूकी पहर त भैर के आनलियै हन, कि जानै गेलियै….

लोटा उठा क नाक लग लैते जेना सिहैरि उठल…. गंगीया!
पक्का कोनो जानवर खैस के मोईर गेल हेतै ईनार में….
चिंताक रेखा गंगीयाक कपार पर सहजैहि देखा पैरि रहलै….
आब जाबत ईनारक साफ सफाई नै हेतै ताबत गंगीया आ ओकरा सनक लोक सब कतय सँ पैनि भैरि के आनत ….
विमार जोखना त चारि दिन सँ घरे धेने छै…
ठाकुरक दूनूह ईनार पर त ओ पएरो नै राखि सकैछ…
ई एकटा ईनार गामक बाहर छै जाहि ठाम सँ गंगीया आ ओकर जाति विरादरी के लोक सबहक लेल पैनि भरबाक छूट छै…
बाकि दुनूह ईनार पर त……

गै गंगीया. .. ला.. ला ईयेह पैनि पिबी के कंठक त्रास मेटबय दे..

नै.. नै…बेमार में ई पैनि त औरो बेमार बना देतह.. थमहह ने कने… देखै छियै हम…. ठाकुरक ईनार..

गै गंगीया, मोन के किया पतियाबै छैं… कतय सँ आनबे एखन तू पैनि.. कि बुझै छिही… ठाकुरक ईनार में भिरहौ देतौह तोरा…
बरू हाथ पएर तोरिके एकबट्ट कए देतहू… आ कियो किछु नै क सकतै… एक के पाँच नेनिहार ओ सब पैनि देतैन्ह हिनका… गै, घर में हम तू मरल परल रहबें त कियो केबार खटखटबै बला नै एतहु.. आ तू कन्हा देबाक बात करै छैं… गरीबक दुख के बुझहै छै…

जोखनाक तीत शब्द यथार्थ के दर्शन करा रहलै गंगीया के…

अल्पबुद्धि ईहो त नै बुझि रहलै जे ओही पैनि के आगि पर खदका क सरेलाक बाद पीबल जा सकै छै…
*****
राईतुक नौ बाजि गेल रहै ……
थाकल झमारल मर मजदूर सब सुईत रहल रहैक…
गंगीया हाथ में डोरी बाल्टी उठेने समधल डेग दैत बढ़ल जा रहल अई ठाकुरक ईनार तरफ…
ठाकूरक दलान पर बैसल पाँच सात टा गप्पकर सब गफबाजी में लागल अई…
मैदानी बहादूरी त नहिंये तहन कानुनी बहादूरी के गप्प करैत रहय ओ सब….
जे कतेक चलाकी सँ पुलिस के घूस खुआ क ठाकुर साहेब निर्दोश भ गेल ओहि फूदनमा बला केश में…

हँ रै.. आ ओहि बला में….

कोन बला में रै…

बुईझ जाही न…. ओही बला काण्ड में…

हँ हँ….. रै पैसो दै लेल तैयार भेलखिन ठाकूर बाबा… मुदा नै न मानलकै…

अरे नै मानलकै तकर नतिजा देखलिही की नै…
पैसो गेलै आ…..

ओकरा सब के बात में लागल देखि, गंगीया धिरहि धिरहि ईनारक तरफ बढ़य लागल….
ईनारक दुनू कात दू टा मोटका मोटका आमक गाछक कारणें अन्हार सन रहै ओहि ठाम जकर फायदा गंगीया के भेटि रहलै…
गंगीया अपन हाथक डोरी के सरियाबैत, बाल्टी के धिरहि सँ ईनार में……
कि तखनहिं,,
गंगीया के एकटा आहट सन बुझा परलै…
हृदयक ढ़ूकढ़ूकी बैढ़ि गेलै ओकर…जौं कियो देख लेतै ओकरा.. ..मोन पैरि गेलै गंगीया के जे कोना एक बाल्टी पैन भरबाक अपराध में मगहू के कोना पटैक पटैक के मारने रहै ई सब… महिना भैरि बेचारा खूनक उल्टी करैत करैत आखिर कार मोरिये गेलै…
की जानै कहिया दया एतै एकरा सबके लोकक प्रति…

दू टा महिला ईनार पर पैनि भरय आबि गेलै जेकर आहट सुनिते गंगीया झट सँ गाछक दोघ में स्वयं के नुका नेने रहय….
ओ दूनू महिला उच्च (पैघ)घरक लोक बेद छलै जेकरा ओहि ईनार सँ पैनि भरबाक पूर्ण आजादी रहैक….
दूनू महिला पैनि भरबाक क्रम में खुसूर प फूसर सेहो क रहलै…

सब के खुआ पीया क अपनहिं दू कअर भात ल के बैसलौंह की हूकूम भ गेलै……ताजा पैनि चाही…
मौगी मेहैरि त एक छन जे कतौ बैसल की जलन जेना भए जाई छै पुरूख पात के…

से सत्ते….. पैनि भरबाक गप नै छै… पैनि त राखले छै भरल… बस हुकूम चलबाक चाही… नोकरहु सँ बत्तर हमरा सबहक जीवन….

यै नोकर नै त की छियै अपना सब… भैरि देह वस्तर आ भैरि पेट भातक बदला जीवन भैरि नोकरीये त करै छी अपना सब…..

धौर…बाजैत अपनहु लाज होईत अई… की सब कहब आ की नहिं कहब… ऐहि पुरूखक देल धौजन सब…..

निश्बद्ध गंगीया सेहो सोचि रहल जे मौगी के जीवन सगरहु समाने अई…
ई सब त बरका घरक लोक बेद छियै….
कथीके बरका…. सोचक वेग जेना तेज भ गेलैह गंगीया के….
ऐहि ठाम त एक स बैढ़ि क एक ठगी केनिहार सब अई..
ईयेह ठाकूरक बेटा दियार बाली के खस्सी माईर के खा गेलै….
ईयेह पंडीत जी के दलान पर भैरि दिन ताश आ जुआ के खेल खेलल जाई छै..
ईयेह दोकान बला मालिक बाबू धी में तेल फेंटि क बेचैत छै….
चोर जालसाज रैहितो उल्टे मुद्दा चलेनिहार सब बरका आ
भाग तकदीर सँ ठकाएल गंगीया सन लोक छोटका….
हँ,
ओ बात अलग छै जे बरकहु में सब एक्कहि रंग नै अई, किछु भलमानुष सब सेहो छै मुदा बाहुवली के ऐहि पाखण्डक बीच ओकरा सबहक माइने कोन…..

गंगीयाक ऐहि गुईन धुईनिक बीच ओ दुनू महिला पैनि तैनि भैरि क चैल गेल रहैक….
अन्तत: भगवान के सुमिरैत गंगीया बहराएल गाछक दोघ सँ,
आ जी जान के मजबूत करैत धिरहि धिरही डोरी में बान्हल बाल्टी के ईनार में खसबय लागल….
बाल्टी में पैनि भैरिते, तावर तोर डोरी के खींचय लागल ….
ऐतेक जल्दी त कोनो पहलमानो नै उपर आनि सकैछ पैनि सँ भरल बाल्टी…
जूगता क ईनारक मुह तक आयल बाल्टी के हाथ सँ पकैर लेलक ओ…
कि……
अचानक
ठाकुरक घरक .केवार खुललै ,संगहि
सिंह सन गर्जैत ठाकुर बहराएल घर
सँ….
के छी उम्हर…..

गंगीयाक हाथक बाल्टी…. डोरी सहित छुटि के खैसि परलै ईनार में….
छपाक…

उल्टहि पएर अन्हारे अन्हार भागल जा रहल गंगीया…….
कतेको काँट कूश गरलै… सोनित सँ समुच्चा पएर भीजि गेलै ओकर, मुदा ओ भागैत रहल…. भागैत रहल…. घर में धुसिते भीतर सँ फटकी बन्द क लेलक ओ….
सौझाँ में… देखलकै…

बिमार जोखना ओ गन्हाईत पैनि गट गट पीने जा रहल छल….

.. संतोषी.

गधकिच्चन….(कविता) Maithili poem

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 1105
✍️संतोष कुमार संतोषी.
————-
सरबे हौ…… भन्नहि भेल्लह. !!

सहर नगर जे जतय छी ऐहिबेर,
चलै चलू सब गाम !

अपना मोनक मुखिया चुनबै,
करबै जनहित कल्याण !!

अपना करम के धुनलह –
मुखिया त मोनहि के चुनलह !

आब की…. ठूठूआ नै लेल्लह..
सरबे हौ… भन्नहि भेल्लह !!

एकजुटता दर्शाबैत तहूँ, खूब कमेलह अप्पन नाम!

सेहो नाम डूबैत नै देरी, उल्टे आब भेलह बदनाम !

बुझाई छह हित केलह तू…
रै उल्टे चीत्त भेलह तू..

आब की …सुथनी नै पेल्लह…

सरबे हौ…. भन्नहि भेल्लह !!

देखैत न रहियौ, हेबे करतै –
कतेक गेबह तू गेलहे गाण…

मधुरक पाछू ऐँठचट्टा सब,
खाय थूकरै फोकट के पान…

कहै छह बिकाश होगा.. जतय अई घर घर मौगा…

आब की… उलटन नै केल्लह..

सरबे हौ… भन्नहि भेल्लह !!

मुखिया सँ उप मुखिया भारी,
वार्डक अलगहि शान…

मुँहलगुआ पछलगुआ भल हो,
पाबि रहल तरघुसकी दान…

जतय भैरि गामे अन्हरा..
ततय की हेतै रै बनरा…

आब की.. दूनू हाथे नै खेल्लह. ..
सरबे हौ…भन्नहि भेल्लह… !!

पीट रहल अभिमानी जाहि ठाम,
नीज अभिमानक डंका..

जनमासुए उनचास हाथ ,
से नगर हेतै न लंका..

पढल सब फुईसक पोथी..
चलाबै अपनहि थोथी…

आब की… कल्याण नै केल्लह…
सरबे हौ… भन्नहि भेल्लह.. !!

घंटी बजबय, सब ढोलहा पीटय…
बाबा के छल हाथी…

निज मोनक मंशा कत फाँसब..
ईत उत बनसी पाथी…

लाजो देखि लजाईये…
मुदा के बाज आबैये…

आब की. .अप्पन बस नाक कटेल्लह…

सरबे हौ… भन्नहि भेल्लह. !!

मुखिया जी छैथि ध्यान में लागल,
बना रहला अप्पन पहिचान.. .

मंदिर महजिद दौर लगा क –
देखा रहला अप्पन सतकाम…

से मंदिर बनल अखारा..
चलय दिन राईत भभारा…
आब की.. फूबकी नै बहरेल्लह….
सरबे हौ….भन्नहि भेल्लह… !!

चोरबा मोन जत खेतहि उपजय,
हगबासहु लागल ताला…

जे बेईमानिक रंग रंगायल, तकरा लेल कोन केबाला…

बुझत के हँसी ठट्ठा…
जतय घरही बपजेट्ठा…

आब की.. सोच हरेल्लह…
सरबे हौ.. भन्नहि भेल्लह !!

कुम्भकरणी निंद्रा सँ जहिया, जगतै लोक आ बनतै बिचार….

लाठी ठेंगा कलमक जोरे, छीन लेतहि सब निज अधिकार…

चलबाजक चाईल नै चलतै..
दगबाजक दाईल नै गलतै…

आब की… अपन डेगो नै बढेल्लह…
सरबे हौ.. भन्नहि भेल्लह. !!

गन्हाएल सन राजनीति, गन्हकाबि रहल भैरि गाम…

आगू आबि बाजत के योद्धा,
दिन केकर छै बाम…

लिखल ई पैंति बड चिक्कन. ..
.बुझलहुँ.. हेत्तहि गधकिच्चन …

आब की… आँगूर फेरिओकरहि धेल्लह..
..
सरबे हौ… भन्नहि भेल्लह !!संतोषी.

नशा मुक्त अभियान…

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 51124
✍️ संतोष कुमार संतोषी.
—————-
हौ बच्चा,
कने बुझा के कहअ ने…

आब कतेक बुझा क कहब बाबा …
अरे सब सरकारी नोकर सब छियैक .आ उपर सँ फरमान जारी भेलैइये…जे एना करहै परतौ से सब गोटई क रहलैई,
नसा मुक्त बिहार अभियान.

ओ….

बाबा ,
गामहि गाम,चौक चौराहा सब ठाम नुका चोरा क दारू सराब त भेटिये रहल छैई..कनी महग में .
आ .
की बुझाइये जन प्रतिनिधि ,मुखिया .उपमुखिया.वार्ड.पंच.सरपंच आ एहि मास्टर सब के कोनो नै पता छैई ,
सब के सब बातक जानकारी छैई.
मुदा बाजत के.
सब बस अपन नोकरी क रहलैई…

हौ ,से त बूझलियैइ,
मुदा एकरा सभक नोकरी में धिया पुता के सेहो बड धौजैन.छैई…
मास्टर सब बच्चा सब के ल गेलैई ,
एक एक टा समोसा खुआ देल्कैई ,
आ हिदायत की जे छह रुपैया के समोसा छैइ ,भैर दिन चिकरैह परतौ,

हँ बाबा .,
आब की करबै .,
गारजीयन सब सुतल रहतई त धिया पुता के आगू आबहै न परतै.
जदि,
सब गामक मुखिया आ समाज तैयार भ जाय त एकहि दिन में फैसला भ जेतए,
मुदा से के करत ..

बुझ्लिये,
डीबीया के पेनी अन्हार..
संतोषी….

लाज

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 144
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

उँहूँ… दोस रै…
हँ रै,, गज्जब …..
ओह्… मानय परतौह…
बैंहि, देखही देखही….

देह में सट्टल –जिंन्सक पेंट आ तहिना उपरकहु बूसट …
फहराईत फूजल केश आ आँखि में करिकवा चश्मा ….
गरदैन में टाँगल बेग… आ काँख तर दबेने किछु कागज पत्तर सन…
अपना सँ आगू आगू लहराईत चैल जा रहल ऐहि बचिया के देखि ,
दुनू छौरा बेमत सन बात चीत करय लगलै…
रै,
आगू किया बढ़ल जाई छीही.. एकरा स पाछुए रह न…
भाई मानय परतौ…
ओह्….. सत्ते.
हबहिं,,
जोर स नै बाजही,
त की हेतै… ओ कोनो अपना सबहक भाषा बुझतौ…
ठीके रै..
ई फायदा जरूर छौ दिल्ली में…
सार ककरो किछु कैह दिही… अप्पन भाषा कियो नै बुझतौ..
हहह… हहह…
रै..
बैंहि, अपना सब एकरा पाछू पाछू कतेक आगू आबि गेलियै रै.. अपना सबके त ओम्हर जेबाक छलै न…
हँ रै… से त सत्ते…
लेकिन भाई.. ओह्… मज्जा आबि गेलै.. मानय परतौ..

हहहह. हहह..

(अचानक) …
ओ बचिया पाछु मुरलै….आ
धिरहि धिरहि एकरा सबहक लग आबि ठार भ गेलै…
कोयली सन मधुर स्वर…
…लाज नै आबैये..
हमहूँ मिथले सँ छी..
मिथिला मैथिल के नाम खूब उजागर क रहलौं अहाँ सब…
यौ..
चुरूक में पैनि ल के ओहि में डुबि मरब से नैहि…..
लाज …
ग्लानि …
ओह्
..
दुनूह दोस्तक हृदय में एक्कहि टा चित्कार उठि रहलै…
हे धरती.. फाटू.. हम समायब…. संतोषी.

रौंग नम्बर……

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk 1200

✍️ संतोष कुमार संतोषी.
———–
केहेन घनघोर घटा, छा गेलै गे बहिना…
पुरबा वयार बहै, सनन -सनन तहिना …
बिजूरी बरा तरतराबय….
अंग अंग मोर सिहराबय..
सनन.. सनन… सनन… सनन…

हालहि में,
संतोषी के लिखल ई गीत बाहर एलैए…

पंडीत जी भैया के मोबाइल पर केकरहु फोन आएल. ….
की जोर जोर सँ ई गीत बाजय लगै छै…

नाम गुणे पंडित जी भैया सब गुण आगर…
दुधहा वैष्णव..
बड बेसी सुविचारक लोक..
..
एखनहिं हिनका मोबाइल पर ई गीत बजलैन्ह..

मतलब.. केकरहु फोन एलै…

फोन उठा क स्पीकर आन क देलखिन…

बिनु स्पीकर अॉन केने पंडित जी भैया ककरहु स बात नै करै छथिन..

कहैत त छथिन जे हम कोनो नुकाएल बात करै छी ककरहु से जे हमरा तकर डर रहत…
मुदा भौजी चुटकी लैत कहैत छथिन… कम सुनै छथिन से नै न कहता.. हहहह..

हँ त…
फोन अबिते पंडित जी भैया स्पीकर अॉन करैत…
हल्ललो…..
उम्हर सँ एकटा महिला के आवाज…
हौ ठकहरबे….. ईयेह होईछै…

की… क्क.. के बजै छी अहाँ..

पंडित जी भैया सन लोक सेहो अलमला गेलाह..

उम्हर सँ फेरो आवाज एलै…

हँ हँ.. ऐहिना चिन्ह के अनठाबह न… केहेन छी अहाँ यौ… कि कहने रहियै …राईत में पक्का आएब… ठैक लेलियै न हमरा… हैँ…

अरे के बजै छी अहाँ….
(धिया पुता स भरल अँगना पंडित जी भैया त बुझू ….)

उम्हर सँ फेरो आवाज एलै…

हेsss फेर हमही छियै. ……बुईझ लियौ… माछ बना क राखने राखने… ऐघारह बजे सुतलौंह हम अहाँ दुआरे…
पहिने न कैह दितौंह हम नै आएब…
ठकहर नैहिं तन….

आब त भौजी के सेहो कान ठार भ गेलैन….

अरे पागल… के बजै छी ककरा फोन केलियै अहाँ…

(पंडित जी भैया आर्तनाद करैत बजलाह)

उँ… बेसी नै न छाँटू… की कहने रहियै.. धिया पूता सब के सबेरे खुआ पीआ क सुता देबै.. आ हम नौ दस बजे राईत में आएब…
अप्पन घरबाली रैहितय न तखन बुझितियै की कैरितय…..

स्पीकर नै बंद करबै अहाँ… भौजी लग अबैत कहलखिन पंडित जी भैया क…

उम्हर सँ फेरो आवाज एलै…
ऐँ यौ …ऐहेन दगध केना भए गेलियै. अहाँ ..
सबटा बिसैरि गेलियै नै……

बर्दाश्त के सीमा पार क गेलै पंडित जी भैया के….
चीकैर उठलाह ओ……

हई के बजै छह तू…. नँगटी… हमरहु नाँगट करै छह… दुधहा वैष्णव के माछ ठूसाबै छह…
हम पंडीत जी बजै छी… बाजह तू के आ कतय स बजै छह…हईया हम आबै छी… तोहर माछो खेबह आई

… आ तोहर……

फोन काईट देलकै उम्हर सँ….

शायद,,

रौंग नंबर छलै …..

एम्हर….
भौजी के नजैरि में पता नै किया…. संदेहक कीड़ा सहजहि देखा पैरि रहलै….. संतोषी.

भक्क बकलेलही:-(कविता) Maithili

Santosh Kumar santoshi maithili Newsviralsk

✍️संतोष कुमार संतोषी.

की बुझाईये अहाँ के –
जेना हमरा किछुओ बुझले नै छै… !
नै बाजी त ई नै बुझियौ –
जे आँखि हमर ई फुजले नै छै… !!

कोन सौतिनियाँ ई मैसेज पठबैय-
ओ माई लव-ओ माई सोना… !
की जाने गेलियै कोन डनियाही-
केलक अहाँ पर जादू टोना….!!

भक्क…..
बकलेलही….
से बात नै छै…

अहाँ रहैत के रहतै मोन में,
दोसर के पेतै स्थान….
लछ्मीनीयाँ मोर अपनहि सुन्नैरि,
अन्त:कोना के जेतै ध्यान….

उँहूँ….. नै यौ…..

नवका पर कोनो संगबैहि छी हम,
संग रहैत आब भेलहुँ पुरान…..
कोन खेल बेल में लगल रहै छी,
से सबटा अई हमरहु संग्यान……

भक्क….
बकलेलही…..
से बात नै छै…..

ओ एहिना बस कथी के खेल बेल,
झूठे के द रहल छी तान……
सख सेहन्ता सपना हम्मर,
अहीं छी हमरा मोनक चान…..

उँहूँ… नै यौ…..

परतारै छी मोन हमर आ,
चलबै छी मीठ बोलीक बाण…….
लाज नै होईये कोनो गत्तर में,
कान्ह बराबर भेल संतान……

भक्क ….
बकलेलही…..
से बात नै छै……

फ्राईण्ड छियै बस ततबहि बुझियौ,
ध पकरै छी दुनूह कान…..
गधकिच्चन में की लागल छी,
फुसियें क रहलौं बदनाम…….

उँहूँ… नै यौ……..

सप्पत पर सप्पत बरू खा ली,
बातक हम नै राखब मान ……
पहिने आ आबक रंग ढ़ंग देखिके,
हमरहु भ रहलै पहिचान …….

भक्क ….
बकलेलही…..
से बात नै छै……

पहिने सन की रंग ढ़ंग देखबै,
वयस बितल बदलल परिधान …..
कोना होयत विस्वास अहाँ के ,
कहू त हम क ली विषपान …….

उँहूँ …..नै यौ…..

कोना क एहेन बात बजै छी,
ओहिना कहलौं हे भगवान …..
एम्हर ताकू लग त आबू,
हे अहीं में बसैय हमरहु प्राण…..

भक्क…..
बकलेलही……फेर ठकेलीह……संतोषी.

काले -भीमा (खच्चरैहि प्रसंग)

Santosh Kumar santoshi maithili geet Newsviralsk

✍️ संतोष कुमार संतोषी. —————-

काले-भीमा …….

काले त नाम रहैक ओकर
मुदा,
अस्सी बरखक बूढ़ सूढ़ सँ जनमासू चिलका तक आ
दादी मईयाँ सँ नवकी कनियाँ मनियाँ तक
सबगोटे सब ठाम ओकरा एक्कहि टा नाम सँ संबोधन करैक… भीमा भईया…. !!
ओकर भीमकाय शरीर आ बलबूता पर… भीमा भईया सन नाम सटीक सेहो बैसैत रहैक….

समयक संग,
नहिं ओ देवी आ नहिं ओ कराह बला बात त एक नैsएक दिन सब संग लागू होईत छैक.. से भीमा भैया संग सेहो वर्तमान में लागू छैक…. !!

एकटा समय रहैक….
संपूर्ण ग्रामवासी के मोन में भीमा भैया प्रति एकटा अलगे छाप छपल रहैक…
सबसँ बेसी भात (भोजन) खेनिहार…
सबसँ बेसी काज केनिहार ….
भारी स भारी बोझा उठेनिहार…
भूखलहु दुखलहु में काज करैत रहनिहार…
बैसि रहल त फेर जल्दी उठल नहिं…
उठि गेल तकरा बाद काज समाप्त करने बिनु बैसत नहिं..
कतहबु, केहनहु भैरिगर काज किएक नै होऊ,
छन भैरि में उधेश पूधेश के राईख देनिहार…
योद्धा….
बाहुबली….
नाम गुणे….. नमहर पोरगर…
भारी भरकम, भीमकाय शरीर…

ककरहु स कोनो भी स्थिति में नै डेराय बला लोक….
भीमा भईया…….!!

सदिखन,
एकटा पुरान सन धोती… बिनु धोअल खीँचल गोल गला के गंजी आ धोती गंजी सँ मेल खाईत कान्ह पर एकटा गमछा…..
तहिना
शरीर हिसाबे
असाधारण सन नमहर पएर में खीपटी सन भेल चप्पल…
पीयर कपीस भेल बिनू धोअल दाँत, जाहि में
तत्कालहि कएल भोजनक किछु अंश सदैव साटल…
सिलोटहि सन हाथ आ दरैर फाटल पएर में
कतेको दिन सँ बिनू काटल कारी सियाह भेल नह…
बिनु ककबा कएल उजरल घूमरल माथक केश आ ताहि संग मेल खाईत दाढ़ी मोंछ……
रोज स्नान केनिहार लोक कहियो नहाएल सोनाएल सन नहिं…
धूरा माईट में लटाएल घोटाएल -थाल कीच सँ बहराएल सन ओकर सरूप देखि,,
धिया पूता त चित्कार माईर उठैत छलैह…… !!

धिया पूता संग संग कनियाँ बहुरिया आ चेतनो लोक सब डेरा जाई ओकरा स… मुदा ओ कहियो ककरहु अनहित नहिं केलकैह…
सबगोटे सबठाम ओकर मजाको उराबै… कचकचेबो करैह… खौंझेबो करैह… मुदा ओ ककरहु पलटवार नहिं करैह…

समाजिक भोज भतेर होऊ आकि कोनहु भी काज परोजन…
सब ठाम सब काज में सबसँ आगू…
जाबत काज संपूर्ण नै भ जाई ताबत एकहु छन बैसय कहाँ ओ…
लोभ की….
आम्दनी की…..
मोनक चाह की….
भैरि पेट भोजन……… ततबहि.
से…
बसिया भात होऊ की कँचका चूरा…
रसगुल्ला होऊ की माछ काऊछ…
भैरि दम हेबाक चाही….
हलाँकि,
ओकरा अपनहु घर में खाई पहिरै के अभाव नहिं रहैक…
मुदा ओ…
जहिना समाजक काज के अप्पन बुझैत रहय
तहिना समाजक भात के सेहो अप्पन. बुझैत रहय

ओकर गुण रहैक आ कि अवगुण से नहिं जैनि…..

डाँर में खोंसल प्लास्टिक के बरका टा चुनौटी जौं डाँर सँ निकैलि के हाथ में ल लेलक त बुझू आधा घंटा आब ओकरा फुर्सत नहिं…

कोनहु तरहक छल कपट नै रहैक ओकरा…
ऐहेन विशालकाय आ कठोर शरीर रैहितो हृदय बड कोमल रहैक ओकर….
सांसारिक भेद भाव सँ कोसो दूर…. दूएह टा बात बुझहै ओ….
खूब खटनाई आ खूब खेनाई…

कतेको ठाम कतेको काज परोजन में लोक सब ओकरा अपजस दै.. अपशब्द कहैक… हाथी.. राक्षस… पेटूआ… घोंचूआ… आ की सब नै कहैक…
मुदा ओकरा लेल… धैन सन…

रौदा बसात, बरखा बून्नी, बाईढ़ पैनि -ओकरा लेल सब बराबर..
महींसक छोहैरि पकरने कतय स कतय रमकल आबि जाईत रहै ओ….
घास पातक भोझ होई की चीनी चाऊरक बोरी, एकहि छन में कतय स कतय उठा क फेकि आबै छल भीमा भैया…

मोन परैछ…..
गामक चारू कात कोसी के पैनि भैरि गेल रहैक… ई तारा ओ तारा एक भ गेल रहैक…
आ डीलर साहेब के मटीया तेल बंटबाक रहैन…
मुदा,
ट्रेक्टर पर लोड सात ड्रम मटीया तेल त गाम स तीन किलोमीटर दूर कोसी छहर पर राखल छलैह….
गाम कोना ऐतैह….
भीमा भैया…..
भोरूका समय रहैक …भोजन त नै…
मुदा जलखैह….
डीलर साहेब सन लोक…..
डेढ़ सेर काँच चूरा में एक सेर चीनी आ आ एक पौआ दालमूठ मिला क द देलखिन भीमा भैया के…
जकरा ओ अपन गमछा के फाँफर बना क ओहि में में कहुना समावेश क लेलक…
चीनी बड्ड भ गेलैह…
एक फक्का मारैत कहलकै भीमा भैया…

त की चूड़ा और मिला देबहक… डीलर साहेब कहलखिन…

ऐँ…. हँ ध:दियौ आसेर और…. नाव खेबैत जेबैह आ फाँकैत जेबैह… बेसी दूर छैह ने… जाईत जाईत सदहा देबैह सार के…..
साँझू पहर,
मटीया तेल बँटा गेलै गाम में……..!!

वैवाहिक बंधन में बंधलाक बादो ओकर दिनचर्या में कोनहु टा फर्क नहिं परलैह…
ऐहि तरहेँ,
अपन मानसिकताक संग लोकक गाईर बात, हँसी मजाक, सबटा सबकिछु झेलैत गमैत बढ़ल चैलि गेल अपन जीवन पथ पर……
* * * *

एक दिन भोरे भोर बरका कका के दलान पर आबि बैसि रहलैह ओ….
सबदिनुके सन वेशभूषा रहितो आय ओकरा में एकटा बदलाव देखा पैरि रहलै..
नोर सँ भीजल आँखि में ककरहु प्रति घृणा आ तामस सहजहि बुझना जा रहलै….

की भेलह भीमा भईया…. कियो किछु कहलकह की….
बरका कका पुछलखिन ओकरा….

जबाब सुनबाक ईच्छा हमरहु जागि उठल..
चुकि,
भीमा भैया के ककरहु स कोनहु तरहक बातचीत करैत हम कहियो नै सुनने रही… आ हमरा हिसाबे त गाम समाज में कियो नै सुनने रहय….
जत्र तत्र लोक सब जखन ओकरा कचकचाबै, खौंझाबै त प्रत्युत्तर में –धूर बैंहि… देखबहक सरबे…. जो बैंहि…
एतबहि बहराई ओकरा मुँहें…..
फलस्वरूप समाज आ समाजक लोक सब ओकरा बकलेल आ मथसुन्न के संग्या सेहो देने रहैक…..

आय बरका कका संग बातचीत करैत ओकर गंभीरता,, ओकर बजबाक शैली देखि हम चकित रही..
कतेक आत्मीयता . .अपनत्व आ विचारक बात सब बाजि रहल ओ….
बकलेल आ मथसुन्न त ई समाज छैह जे कहियो ओकरा काज के सराहना नै केलकै… कहियो ओकरा समुचित स्थान नै देलकैह….
ओकर अद्भुत बल पराक्रम आ ओकर भोलापनक फायदा मात्र उठेनिहार ई समाज ओकरा बकलेल ढ़हलेल बनाबै में कोनहु टा कसैरि नै छोरलकै…..
चुपचाप खटैत आ खाईत अपन जीवन के समाजक काज आबै में लगा देने रहय ओ……
मुदा आय बरका कका के सोझाँ आर्तनाद क रहल ओ….

हौ बरका कका बचा लएह हमरा…… हम आई तक ककरहु किछु नै हारलियैह -बिगारलियैह…. कियो दू टा पाई अपना मोने नै देलक कहियो आ नै हम ककरहु स मंगलियैह….

से त सत्ते…..
ओ त सब दिन सबहक काज केनाई बुझैत छैह….
सबहक गाईर फज्जहैत आ अपजस सुननाई बुझैत छैह…
ऐहेन गाय सन लोक ककर की हैरि लेलकै…
के की कैहि देलकै ओकरा, जेकर चोट ऐहि तरहें लहुलुहान क देलकै ओकरा अन्तर्आत्मा के…

के की कहलकह… साफ साफ बाजह ने….
फेर पुछलखिन बरका कक्का…..

की कहब बरका कका ओ बारी कात में हम अपना उठै बैसय लेल कनिकबे टा एकटा घर बनेने रही. से ई बुच्चू बाबू उजाईर पुजाईर क फेक् देलक आ अपन हर बरद आनि पुरा बारी के जोईत लेलक…. कहैये हम्मर छी…..

हौ ई बुच्चू बाबू पगला त नै गेलैह…..

से हम कि जाने गेलियै बरका कका, बुझले त हेएत जे हमरा एकटा महींस पोंसियाँ देने रहै… मरै के मान रहै ओ महींस तकरा हम छह मास पालि पोसि क खुआ पीआ क भिसिण्ड बना देलियै… तकरा बाद कहलक जे महींस बेचब, पाँच हजार महींसक दाम भेलै जाहि में पाँच सय टका हमरा देह पर फेकि देलक आ महींस खोलि के ल गेल… से बात हम लोक सब के कहलियै …तकरहि तामस छैह… आब कहैये तोहरा बाप के बहुत रास कर्जा देने छलियौह से एक एक टा पाई चुकता कर… तकरा बादे बारी में पएर राखिहन …..
कतेक की सब भेल ओकरा दुआरे से त सबटा जैनतहि छीयैह अहाँ …
मोन अईछ ने
…..
ओकर छकठबा खेत जोईत नेने रहै परौनी बला सब… ओकर संपैत आ समाजक मान प्रतिष्ठा बचाबै खातिर भुखल प्यासल भैर दिन हम लाठी भैंजतहि रहलहुँ…..
कतेको लाठी हमरा देह पर टूटल आ कतेको के हड्डी पसली हमरा हाथक लाठी स टूटलैह….
आब,
हमर कोन काज छैह ककरहु….
हमरा स आब हेबे की करतैह लोकक….
अधवयसहु उमेर, दस रंगक रोग…..
आब हमरा सँ की उपकार हेतैह ककरहु…..
नहिं त……
(आखि नोरा गेलैह ओकर)..
बरका कका अहाँक बात भैरि गाम के लोक मानैत अई…
हमर माई बाप, घर दुआरि ,सर संपैति सबटा ओ बारीये छी जतय भैरि दिन हम खुट्टा जेना गारल रहैत छी….
ओहि ठाम हम जनमलहुँ ,ओहि ठाम माईक कोरा में कुदलौं फानलौं, ओहि ठाम स हमरा माई बापक लहाश उठलैह…..
हमहूँ ओत्तहि मरबै… बरका कका हमहूँ ओत्तहि मरबै…..

कहैत उठि क विदाह भ गेल ओ…..

बैसह ने….. तू शांत भ जाह, हम बात करबै न बुच्चू बाबू स जे किया एना करैत छैह…
तोहर काकी भोजन बनबैत हेथुन, खा क जाईहह…. (बरका कका कहलखिन)

काज राज किछु नै… ओहिना कोना खा लेब….
अहाँके त बुझले अई जे बिनु खटने नहिं खाईत छी हम…..
आ समाज में,
हमर खटनाई आब अखैर जाईत छैह लोक के….
काज कम आ भात बेसी भ जाईत छैह यौ बरका कका…

*********——–
बरका कका बड्ड बुझेलखिन बुच्चू बाबू के….
हौ बुच्चू… ई भीमा सन लोक समाजक लेल फल फूलक गाछ सन होईत छैह, जाहि में पैन दैत रहबहक त साले साल फल खाई लेल भेटतह…
आ एकरा जैड़े स जे उखैड़ क फेक देबहक त कि खेबह…
ओहू पगला के जीबय दहक कहुना……

मुदा बरका कका बातक कोनहु टा असैर नहिं भेलै बुच्चू बाबू पर. ..
ओ त हुनकहि स फँरबन्हीं करय लागल…
कहय लागल ,
ई गोबराहा हमरा बारे में भैरि गाम जे बेन बँटने फिरैत अई से छोरबै नै एकरा हम….. कोट कचहरी में घसीटबै एकरा हम…
देखबै जे के की करैत अई हमर….
***************————
साँझू पहर फेर बरका कका सँ भेटय एलैह भीमा भैया……
परिधान पुरनहि सन,,
कनेक बदलाव रहैक…
हाथ में एकटा मोटगरे सन लाठी आ डाँर में बान्हल गमछी में खोंसल एकटा घसकट्टा हाँसू…….
ओकर भीजल लाल टूहटूह आँखि आ ताप सँ धधकैत ललाट देखि सहजहि बुझना पैरि रहलै जे आय कोनों अपसगुन कोनों क्लेशक बादल मंडरा रहलै ओकरा उपर…
बुच्चू बाबू प्रति बदला के विष भैरि गेल रहैक ओकरा समुच्चा देह में…
अन्यायी समाजक प्रति विद्रोहक भावना जागि उठलैह ओकरा अन्तरआत्मा में…
बरका कका के किछु बाजै स पहिने बाजि उठल ओ……. …

बरका कका हम सब लग जा क हार गुहार लगेलहुँ..
मुदा हमरा कियो नै बचेलक, कियो नै जोगेलक…..
आब…..
आब जौं हमरा सँ कोनो तेहेन गलती भ जाय जे अहाँके नीक नहिं लागय त,
हमरा पर भेल अन्याय के मोन पारैत -माफ क देब हमरा….
बरका कका, हमरा लेल त……
एम्हरहु बनबासे आ ओम्हरहु बनबासे…..

(आँखिक नोर पोछि हाथक मुट्ठी के सक्कत करैत बहरा गेल ओ बरका कका के दलान पर स..)
रोष आ आवेश में मात्र एतबहि बरबराईत जा रहल ओ….
एम्हरहू बनबासे.. उम्हरहु बनबासे….
एम्हरहु……. उम्हरहु…………….
जे सुनै
सब कहै –बताह भ गेलै… बताह भ गेलैह..
किलकारी ….
पिहकारी…..
थपरी….
बतहा………
पगला………….. ओह….

आ एम्हर ई एतबहि रटनी लगेने…
हमरा लेल त,
एम्हरहु बनबासे –उम्हरहु बनबासे….

परिवार आ समाजक लोक सब –एकरा पकैरि के मोटका डोरी सँ गछाईर के खाम्ह में बैंन्ह देलकैह…..
दू दिन तक बान्हल रहलाक बादो ओ एतबहि कहैत रहलैह…
हमरा लेल त,
एम्हरहु बनबासे आ उम्हरहु बनबासे….

ओकर ऐहि बातक मतलब कियो नै बुईझ सकलैह,
आ नै कियो बुझय के कोशिश केलकैह………

धन्य समाज आ समाजक लोक
जे अपन विशेष “खच्चरैहि ” के वशीभूत भ एकटा भलमानुष के पूर्ण बताह बनेबा में कोनहु टा कसैर नहिं छोरलक…

समाजक हित केनिहार., भीमा भैया…
. बुच्चू बाबू सन लोक के सेहो कोनों अनहित नहिं क सकल…..
आ एखनहु
पूर्ण बताह बैनि,
समाज सँ अवहेलित होईतो,
समाजक लेल हँसी ठहक्का के जरिया बैनि
समाज हित क रहल….. संतोषी..

दरिद्रा. ( खिस्सा)….. !!

Santosh Kumar santoshi maithili geet Newsviralsk
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

एक बेर ,
माता पार्वती के मोन में –
एकटा ब्राह्मण के भोजन करेबाक ईच्छा भेलैन्ह…..!!
माता पार्वती अपन मोनक बात भगवान शिव के कहलखिन्ह..

महादेव सेहो प्रसन्न होईत कहलखिन्ह जे ई त नीक बात अई…
से हम कोनो गरीब ब्राह्मण के नोतने आबैत छी,
ताबत अहाँ तैयारी करू…

माता पार्वती कहलखिन्ह.. दोसर किनका तकने घुरब… परमपिता ब्रम्हा जी के निमंत्रण द आबियौन ने…

महादेव मुस्काईत कहलखिन्ह जेहेन ईच्छा अहाँके…
…………

परमपिता ब्रम्हा जी… आसन ग्रहण कएलैन्हि..
माता पार्वती हुनका भोजन करबय लगलखिन्ह… !!

माता पार्वती जतेक भोजनक तैयारी कएने छलीह से सबटा ब्रम्हा जी खतम क देलखिन्ह… तदुपरांतो… पूर्ण भेलै -से नहिं कहथिन ब्रम्हा जी… !!
माता पार्वती कनेक सशंकित भ गेलीह जे आब की हेतैह…
ब्राम्हण देवता भुखले नहिं उठि जाइथ….
माया सँ तैयार कएल भोजन त खूआ नै सकैत छलखिन ब्राह्मण देवता के…
आब,,
महादेव के निहोरा करय लगलीह माता….

महादेव, माता पार्वती के धैर्य बन्हाबैत कहलखिन जे ताबत किछु समय औरो ब्रह्मा जी के किछु किछु खुआबैत समय निकालू… हम किछु व्यवस्था करैत छी….!!

महादेव,
पृथ्वी लोक पर दौरल एलाह…
एकटा गरीब -महादरिद्र ब्राहमण देखा परलैन हुनका…!!

चट सँ ओहि ब्राह्मण के नोत आ बिझोह करा क अपना संगहि ल विदाह भेलाह….

ब्रह्मा जी के बगल में आसन लगा क ओहि भुखल दुखल ब्राम्हण के बैसा देलखिन….

नियमत:
ब्राम्हण भोज में जौं एकटा ब्राम्हण हाथ रोकि देलैन वा पूर्ण भ गेलैह– से कैहि देलैन तकरा बाद ओहि पाँत में बैसल कियो भी ब्राम्हण कअर(हाथ) नै उठा सकैत छैथि…
(आबक परिवेश में नै भेटत से)
हँ,
त ओ ब्राम्हण चटपट भोजन क लेलाह चुकि माता पार्वती खुआ रहलीह… साक्षात भगवान शिव लग में ठार छैथि…
प्रसन्न चित्त भेल ओ गरीब ब्राह्मण चोट्टहि कहलखिन– आब नहिं.. बस बस माता… पुर्ण भ गेलैह…!

एतेक कैहिते ……देरि ,,
ब्रम्हा जी के हाथ सेहो रूकि गेलैन्ह…
हँ हँ… पूर्ण भ गेलैह…… !!हुनकहु कहै परलैन्ह….!!

माता पार्वती ओहि गरीब ब्राह्मण पर बड्ड प्रसन्न भेलिह…
हे ब्राम्हण…
अहाँ के जे इच्छा हुअय से बाजू….
अहाँ के मनोवांछित फल प्राप्त होएत….
हम वचन दैत छी,
अहाँ के मोन में जे भी लालसा होएत सब पूर्ण होएत…
से हे ब्राम्हण… मांगू…. की चाही अहाँके….

गरीब ब्राह्मण कनेक विचार केलाक बाद,
मोनहिं मोन किछु निर्णय लैत
बाजि उठलाह….
हे माता,
जौं सत्ते अपने हमरा स प्रसन्न छी त…
हमरा प्रत्यक्ष रूप में दरिद्रा देल जाऊ…

हे ब्राम्हण.. ई की मंगैत छी अहाँ..
कदाचित् अहाँक मोन भटैक गेल अई…
मोन चित्त शांत करू…
अहाँ त कतेको पिढ़ी दर पिढ़ी सँ महादरिद्र होईत आबि रहल छी….
हे ब्राम्हण अन्न धन लक्ष्मी मांगू……..

हे माता अपने त वचन देने छी… से अपन वचनक मान राखैत हमरा साकार रूप में दरिद्रा देल जाऊ…..

हे ब्राह्मण…
अहाँ नै मानब त हमरा अपन वचनक मान राखैत दरिद्रा देबै परत अहाँके….
दरिद्रा उपस्थित होऊ…

माताक कहिते ओ भीमकाय शरीर, कारी धूथूर, राक्षस सन रूप… दरिद्रा प्रकट भेल!

ओकर रूप देखि ओ ब्राम्हण डेरा गेलाह ….कहय लागलाह..
हे माता,
दरिद्रा के एहेन वेश भुशा में हम अपना संग कोना ल जाएब.. ऐकरा देखिते हमर घर परिवार आ गाम घरक लोक सब त मुर्छिते भ जेतैह…..
से हे माता… कृपा क के एकरा भेंड़ी बना दियौह…. जै स हम भेड़ी बनल दरिद्रा के सहजहिं ल जा सकी….

माता स्वीकार करैत कहलखिन… हे दरिद्रा अहाँ भेड़ी भ जाऊ….

भेड़ी बनल दरिद्रा के अपन गमछा सँ बैंन्ह के घीचने तीरने अपना घर पर आबि गेल ओ ब्राम्हण…
घर पर आबिते,
मोटका डोरी स एकटा खुट्टा में गतैन के बैन्ह देलकै दरिद्रा के….
आ, मोटे सन मुसदण्ड लाठी उठा क चाईर लाठी ध देलकै भेड़ी के…. .

नित्य कर्म भ गेल रहै ब्राम्हण के….जेम्हर स आबय भूखल प्यासल बान्हल ओहि भेड़ी के चाईर लाठी ध दैत रहैक….

कतेको लोक सब आबै… कतेको बात बुझाबै जे ऐहि निर्बोध भेड़ी के कोन गलती छै… जे एना कसाई बैनि गेल छीयै अहाँ…. पतिया प्रायश्चित लाइग जाएत……
मुदा एहि ब्राम्हण पर ककरहु बातक कोनो असर नै होई….
ओहि भेड़ी के अन्न जल वंचित क देने रहैक….
भोर दुपहर साँझ राईत…. गानल चाईर लाठी…..!!

भेड़ी बनल दरिद्रा के आर्तनाद ओकर कानबाक अवाज जहन माता लक्ष्मी के कान में पहुँचलैन्हि…
माता लक्ष्मी आ दरिद्रा… दुनू भाई बहिन छथिन से जगजाहीर छै…
त माता लक्ष्मी सबटा बुझिते दौरलीह माता पार्वती लग….

माता पार्वती सेहो चिंतित भ गेलीह…. कहय लगलीह…
ब्राम्हण के विचार त बुझिये नै सकलियैह…
सातों पुस्त स ऐहि ब्राम्हण के घर में दरिद्रा के बास छैह…
तैं ई ब्राम्हण त दरिद्रा पर आमील पीने छैह…
आ आब एकरा चंगूल में दरिद्रा फैंसि गेल छै… छोरतै नहिं ई ब्राम्हण….. खतम क देतैह…

आ तै सँ त श्रृष्टि में असमानता पैदा भ जेतैह… सब अमीरे भ जेतैह… गरीब कियो रहबे नै करतैह…
ककरहु कियो सुननिहार नै रहतै…
कोनों
काज नै हेतैह……. ओह…

महादेव स्वयं दौरल एलाह….
ब्राम्हण के बुझा सुझा क….
हुनका घर में लक्ष्मी के वास द के….
दरिद्रा के मुक्त करबौलन्हिं ब्राम्हण सँ….

जाइतहु काल उठाना बला चाईर लाठी देनाई नै विसरलाह ओ ब्राम्हण…..

जखन दरिद्रा अपन रूप में आयल…. सुखा क सनटीटही भ गेल छल बेचारा…..
( हँसी ठिठोली मात्र) –संतोषी.

करवा चौठ……

maithili poem Story Santosh Kumar santoshi Newsviralsk

(उन्टा पून्टा)…..
✍️ संतोष कुमार संतोषी.
#…यौ….सुनै छियै… एम्हर ताकियौ ने….

#….की… बाजू ने…. कान फूजले अई हमर.

#….धौर …कने काल टीवी के बन्द न क दियौ.. एकटा बात करबाक अई हमरा. ..

#…कहू न.. की बात.. सुनि रहल छी हम…

#..काईल्ह कथी छियै से बुझहल अई. .???

#…हँ… इंडिया पाकिस्तान के क्रिकेट मैच छियै…

#…उँ….जे नै से….. अहाँके त एतबहि रहैत अई हरदम….

#…त. .कथी छै काईल्ह….

#…काईल्ह.. करवा चौठ पाबैन छीयै…

#…हँ त से…. से की…

#..हमहूँ करबै. .

#…धू..कथी लेल. . अपना मैथिल संस्कारक पाबैन नै छिकै करवा चौठ…

#…हम जनैत रहियै.. अहाँ ईयेह बात कहबै.. एतेक जे हंगामा लोक सब करै छै से सब पागल छै.. नै..

#..अरे हम से नै कहै छी… कोनो बूढ़ पुरान लोक सब के कहियो देखबो केलियै… गाम घर में ई पाबैन करैत. ..

#…सबटा बुझहै छी हम. . हमर कोन बात कहिया मानलौं जे आय मानब अहाँ… रूपम के मम्मी सब कैहते रहय जे अहाँक घरबला नै करय देत अहाँके.. बड बिच्छी छोराबै बला लोक छैथ अहाँके बर..
.
#…ओ. . त से कहू ने.. जे लोकक देखौंस करब अहाँ..
.
#…ऐहि में देखौंस के कोन गप छै… सब मिल जुलि करै छै त और न नीक होईछै… हमर त कपारे जरल छै… हम मरबै त सबटा कपार पर उठेने जेबै… लोक अपने लोक बेद लेल पाबैन करै छै कि अनका लेल…

#…जखन एतेक लोल लागल अई त करू ने… हमरा पुछबाके कोन काज….

#…एतेक पाबैन आ उपास तिहार त कैरते छी हम… कहिया कथी लेल पुछलौं अहाँके… कहियो बुझबो करै छियै जे कोना क की होई छै.. ओ त.. ऐ पाबैन में अहूँ के रहनाई जरूरी छै.. तैं …नै त कथी के खुशामद रहितय हमरा यौ….

#…देखू,, अहाँके जे करबाक अई से करू. . सबटा व्यवस्था हम क देब…
मुदा हमरा जे कहब ऐ घूर धूँआ में लागल रहू से नै होएत…. हमरा ततेक फुर्सत नै य…. करबा चौठ करै छैथ…..

#…बुझहै छलियै हम… हमर बात त ऐहिना लेश देत अहाँ के… कहिया सोहेलौं अहाँके जे आय हम सोहाएब…

# ..बातक बतंगर नै बनाऊ… बिनु सोहेने दू दू टा चिलका अई काँख तर…..

#…जरल पर और नै जराऊ हमरा…. टेबूल पर दुध राखल अई… पीबाक मोन हुअय त उठि क पीबि लेब… हम सुतै छी….

#…आब ऐहि लेल रूसू फूलू नै.. .

#…ककरा पर रूसब हम… हमरा के अछि बौंसनाहर जे रूसब हम….
क्रमश:……
……
……..
(अधिरैतिया पहर..)

#…कैह देलौं न…… हमरा देह पर हाथ नै राईख सकै छी अहाँ…

#…अरे,सुनू त सही…

#…किछु नै सुनबाक अई हमरा…… चूपचाप सुतय दिय हमरा. ..

#…अछ: ई कहू… की सब होईछै… एहि करवा चौठ में….

#…हमरा नै अई बुझल… अहाँ बुईझियो क की करबै….

#..अछ: हमर की सब काज परत एहि में……… तखन टीबी देखैत काल मोन अशांत रहबे करय.. तै पर अहाँ……. खैर कहू ने…

#,…अहाँके जेना बुझले नै य…. दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएगें फिल्म में…काजोल आ साहरूख खान के नै देखने छियै…….

#…ओ… चालैन में मुँह देखै बला…… अरे से त बहुतो फिल्म में देखेने छै….

#…हँ त…. सेह पाबैन छियै की….

#..और…….

#…ओर हम त सबटा व्यव्स्था कए नेने छी… अहाँ खाली पुजा प्रशाद लेल फल फूल आ मिठाई आनि लेब….

#…और………

#…और की… तामस तेख नै करब…. तुरन्ते जे तमसा लगै छी….

#…औऱ……….

#…हे…… सबटा बुझहै छी अहाँके हम…. और किछु नै… करवा चौठ काईल्ह छीयै….
शुभकामना…………(संतोषी)

बिलाईर के सम्मान.…!!

maithili poem Santosh Kumar santoshi

✍️संतोष कुमार संतोषी

बिलाईरक गरदैन में घंटी बन्हबाक समस्या सब दिनहिं स बनल अछि,
आब ओ समय आबि गेल अछि जे कोनहुँ भी उपाय क के बिलाईरक गरदैन में घंटी बान्हल जाय…
मुसक हुजूम के संबोधन करैत,हौसला बढ़ाबैत युवा मुस बाजल।

ततबहि में,
युवा मुस के बात कटैत एकटा बुढ़बा मुस अपन अनुभव देखबैत बाजि उठल जे-
ई अपना मुस जातिक लेल जीवन-मरनक समस्या छी,
और एहि समस्या के कतेको दिन सँ अपना सब ऐहिना बर्दाश्त करैत आबि रहल छी…
अपना सब सँ पहिनो कतेको मुस-मुसियैन ऐहि संदर्भ में डेग बढ़ौलक -मुदा सब के सब असफल रहल!
कदाचित,
जौं कोनों मुस के कहियो सफलतो भेटलैह त ई बिलाईर सब बेसी दिन ओहि घंटी के गरदैनि में बैन्ह क नहिं राखलक..!
तैं, बिलाईरक गरदैन में घंटी बन्हबाक योजना छोरि देल जाय..

युवा मुस पुन: अपन बात आगू बढ़ाबैत बाजल-
बहुत सहलौं ऐहि बिलाईर सबहक धौजैन.. एकरा सबहक मनमानी आ एकरा सबहक अत्याचार…
सब दिन एकरैहि सबहक राज चलतैह से आब मुस जातिक लोक नहिं बर्दाश्त करत!
ऐहि बिलाईर सबहक गरदैन में घंटी बन्हबाक एकटा सुन्दर उपाय अछि हमर लग….
आ,
युवा मुस ओ उपाय सब मुस के बुझा देलकैह…

युवा मुसक बात सुनितैहि मुसक हुजूम थपड़ी पीटय लागल -आ सर्व सम्मति सँ युवा मुसक बतावल उपाय पर काजो शुरू क देल गेलैह….!!

जोर-शोर सँ तैयारी शुरू भ गेलैह-

मंच तैयार भ गेलैह,
आसन सँ सिंहासन तक मंच पर राखल गेल,
बिलाईरक सम्मान करबाक हेतु -सब बिलाईर के आमंत्रण पत्र पठा देल गेलैह..
स्वादिष्ट खीर आ विविध प्रकार के व्यंजन सब तैयार कयल गेल…

ससमय बिलाईर सब सेहो अपन सम्मान लेल उपस्थित भ गेलैह…
विशिष्ट श्रेणी में मंच पर मोटगर डँटगर बिलाईर सब के बैसावल गेल आ बाकि बिलाईर के पंक्ति बद्ध मंचक आगू में …
सब बिलाईर के फुल माला आ तिलक लगा क स्वागत कयल गेल…
तत्पश्चात,
आब युवा मुस मंच पर आबि बिलाईर सबहक स्वागतार्थ स्वागत गान करैत अपन बात आगू बढ़ौलक
……………………
ई एकैसवीं सदी शांति आ मित्रता के शताब्दी छी ।
आब शत्रु के मारि क खेनाई आ अपन पेट भरनाई बला जमाना खतम भ गेलैह..
एकहि घर में रहितो मुस आ बिलाईर सदैव आपस में शत्रुता करैत आबि रहल..
आब मुस आ बिलाईर क सेहो अपन पुश्तैनी शत्रुता के बिसैरि क मित्रवत व्यवहार राखबाक चाही..
तैं
आय हम सब मुसा जाति- उपस्थित भेल बिलाईर भाई सब के अपन परम मित्र आ अपन हितैषी बुझि हुनका सबहक सम्मान करबाक आयोजन राखने छी ।

हिनका सबहक सम्मान हम सब मुस जातिक सभ्यता संस्कृति, बोली भाषा सँ जुरल अपन प्रतीक चिन्ह घंटी पहिरा क करय चाहैत छी–
और ई घंटी हिनका सब के पहिराबैक लेल हम मंच पर
युवती मुसनी सब के बजाबय चाहब –
आशा अछि जे युवती मुसनी सबहक हाथे गरदैनि में पहिरावल ऐहि घंटी के जीवन पर्यन्त बिलाईर भाई सब एकरा धारण कयने रहताह..
जाहि सँ मुस आ बिलाईर जातिक मित्रता सदैव बनल रहत….
त आब-
युवती मुसनी सब मंच पर आबैथि आ अपना सुकोमल हाथ सँ अतिथि बिलाईर भाई सबहक गरदैनि में घंटि बैन्हि क हिनका सब के उचित सम्मान करैथि….

तत्पश्चात :-
सजल-धजल युवती मुसनी सब मंच पर आबि एक-एक क के सब बिलाईर के गरदैनि में घंटी बैन्ह देलकैह..
**** ****
मुख्य अतिथि झपट्टू बिलाईर ठार भ भाषण देमय लागल-
मित्र मुस भाई सब जे भावना व्यक्त केलैन से सुनि क हमरहु सबहक आँखि फुजि गेल अछि-
आब मित्रता के युग शुरू भ गेल अछि से बुझि हम बहुत खुशी छी..
मुस भाई सबहक देल ऐहि उपहार आ सम्मान के हम सबगोटे सब तरहें कदर करब…
मुस आ बिलाईरक मित्रता के स्वीकार करैत, ऐहि घंटी के जीवन पर्यन्त हम सब अपना गरदैन में धारण करब…
…….
चहुँदिश ताली बाजय लागल….
कार्यक्रमक समापन संगहि खीर आ मधुर मिठाई परोसल गेल-
सब भैरि छाक भोजन केलक आ अपना-अपना घर विदाह भेल–!!

शंका…
शंका धैरि रहिये गेलैह बुढ़बा मुस के मोन में –
ई बिलाईर कहिं वैष्णव भेलै हन..
आ ई घंटी कतेक दिन मुसक रक्षार्थ बिलाईर के गरदैन में बान्हल रहत…
मौका लैगिते ई सम्मानित बिलाईर सब गरदैन सँ घंटी फोलि क फेकि देत आ पुनः अपन ओरियान में लागि जायत…
मित्रवत कखन शत्रुवत में तब्दील भ जेतैह आ एक्कहि झपट्टा में कखन मुसक ईहलीला समाप्त भ जेतैह से के कहत….

पाछु सँ युवा मुस आबि क झकझोरैत कहलकै बुढ़बा मुस क –
हौ बुढ़बा तोरा मोनक शंका हम बुझि रहलियह…
शांति राखह मोन में….
आ-
(बुढ़बा मुसक कान में फुसफुसा क कहलकै युवा मुस)
ई सम्मान समारोह समय-समय पर आब चैलते रहतैह…..संतोषी

 दहेज……

✍️ संतोष कुमार संतोषी

कहलौं न – हम दोसर लोक छी…..!!

कहलौं न- हम दोसर
छी….!!
एलौंह त बैसू कल कुशल सँ, हेबैह करतैह सब रंग बात,
कन्यागत बैनि आयल छी अपनहिं, स्वागत में हम बरक बाप,
लियह न शरबत, अपनहिं गाछक नेबो ऐहि में गारल अई,
ओ कोल्ड ड्रिंक्स हमरहु नै भाबय, ई सब पिनुहार त पागल अई,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी…..!!

लोकक खगता हमरहु घर में, तैं करबै बौआ के वियाह,
कन्यागत त ढ़ेरी आबैथि, मुदा बुझू सब दगध सियाह,
अरे हमरा भल किछुओ नै चाही, पुतहु चाही बस लक्ष्मी जोग, देब लेब जे करबैह अहाँ, अपनहिं बेटी न करतीह भोग,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

लक्ष्मी बास बसै छैथि निज घर, दुख संताप पराएलै रहतीह,
घर आंगन त देखिये रहलौं, पुतहु हमर त हराएलै रहतीह,
नै-जथा जमीन नै बेसी हमरा, फुसियौं कहू हमरैह भैरि गाम,
ओ बड़का छहर जे देखनै हेबै, ओ बीस बिगहा धैरि हमरै नाम,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी…!!

आबक धिया पुता के पढ़ाई में, बुझितैह छी होई छैह बाप स भेंट,
बौआ हमर दैबक किरपा सँ, कोनों सीए तीए लग भ गेल सेट,
भैरि दिन ओएह कंपूटरक खेला, आब नै छैह ओकरा किछु टेंशन,
कहैये पप्पा घरे बैसू, हमहीं देब आब अहाँके पेंशन,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

हँ- बर कनियाँ के देखा सुनी, फोटू फाटू बस दियौह देखाय,
नै-हम नै छी पाय के भूखल, जे देबैह से दियौह सुनाय,
अपनहु मोन में सख हेएत न, से सबटा धैरि लेब पुराय,
गाड़ी घोड़ा कपड़ा लत्ता, गहना जेबर मधुर मिठाय,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी…!!

सांकेतिक गप एकटा बुझियौह- बरिआती रहता सब गिनले चुन्नल,
पीबैये खाई लेल बरिआती न-बात रहय बस मुनले मुन्नल,
टेंट साउन्ड कने भैरिगर राखब-नीक लगै छैह नाचो गान,
दुरागमन हम करबा लेब संगहि- तकरहु पहिने क लेब ओरियान,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

बरका घर कहाई छी हम सब-चौदह भाई आठ बहिनीक परिवार,
लेन देन अई सब संग हमरा- ताहु लेल रहय परत तैयार,
वियाह बुझू हेतैह धमगीज्जर-दसकोसी में झंडा टांगब,
नै बाबू हम कल जोड़ैत छी-अपना मुहें हम किछु नै मांगब,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

हम्मर बच्चा हमरैह सन के-कनियाँ ल के नहिं उड़त उड़ान,
पुतहु एतीह साउसक सेवा में -रसतीह बसतीह भैरि जीवने गाम,
की मजाल जे घोघ उठेतीह-तै सब में हमर कनियाँ बर टाईट,
काजे की छैह भानस बर्तन-चुल्हा चेकी आ गोबर माईट,
कहलौं न -हम दोसर लोक छी….!!

हे चाह सरायल होउ पाबू पीबू-हेबेह करतैह आब समैधि मिलान,
एम्हरूका बस फैनल भ जाय-सुरू हेतैह फेर खान पियान,
सगरहु सब गप किया पसारब-हम अहाँ कोनों निपट अकान,
समाजक कोन छैह एक पेट भोजन-खाएत पीयत आ करत बखान,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी……!!

(कन्यागतक जबाब… )
बुझलौं हम -अहाँ दोसर लोक छी….!!
बुझलौंह हम अहाँके मोनक सब गप-बेटाक बाप तैं फान फनै छी,
भले जनक हम धिया के पप्पा -मुदा आब नै हकन कनै छी,
पढ़ल लिखल सज्जन बेटी अई-तकरहि उपर अई हमर गुमान,
ऐहि मोनें अहाँ जौं बेटा बियाहब-सारे तअर में होयत चुमान,
बुझलौं हम-अहाँ दोसर लोक छी…..!!

सह-सह करैछ दहेजिया अजगर-मिथिला लेल अभिषापे छी,
हाटे बाटे बेटा बेचै छी-यौ बाप अहाँ सन त पापे छी,
दहेज मुक्त अभियान चलल छैह-तरघुसकी अहाँ करी सुतार,
डाँर में रस्सा बैन्हि अहाँ के-बीच्चहि चौक में करत उघार,
बुझलौं हम -अहाँ दोसर लोक छी…..!!

हाथ जोड़ि मिनती जन जन सँ-दहेज प्रथा करै जाऊ बंद,
बेटीक बाप सेहो भलमानुष-छुटय हिनकहु गरदैनि सँ फंद,
प्रथा नै ई सब कुप्रथा छी-संतोषी हृदय बीच उठय उदवेग,
दहेज मुक्त मिथिला अभियानक-संगहि आब बढ़य ई डेग, कहलौं न – हम दोसर लोक छी……!!
संतोषी

मरणोपरांत…. लीला..!!

✍ संतोष कुमार संतोषी

ओह् मधु बाबू के मृत्यु शोक में-शोकाकुल अछि आई भैरि गाम !
आह् लोक हुअय त हिनका सनके-हिनकहि सन सब पाबैथि सनमान!
गाम भैरि बस हिनकहि चर्चा -सब तिर हिनकर होईछ बराई!
ककरहु सँ नै मुँहाठूट्ठी- देखल नै कहियो लड़ैत लड़ाई!

धू-हम्मर त बुझू नाश भेल सबटा-कक्का मुईलाह बिच्चहि ठाम!
कौल्हका टीकट बनल अई हम्मर-सोधलक हमरा ऐहि बेर गाम!
धुर मरदे त जाय नै होईत छह-तोहरा लेल की परल रहतैह!
बेटो बिनु त होई छैह सबटा- भातिज लेल की मुर्दा सरतैह!

कतय गेलौंह यै सुनै छियैह न-दियाद अपन छी केश कटिया!
बौआ के पठा दियौह कठीयारी-चढ़ा एतैह धैरि पचकठीया!
उँ-बड़ सपरतीब चैलि जाउ अपनहिं -एही लेल जनमेलौंह पूत!
कैल्हीये ओकरा जन्तर देलियैह-आईयेह करेबैह छुआ छूत!
अपन बेटा सब बाटे में छैह-अहाँ के किया धेने अई खौंत!
अहाँक दिआदी अहीं निमाहू-जा बाँटू भैरि गामें ब्योंत!

आरौह बैंहि आबो फेकू न -की राखने छी रौतुका माछ!
कतहु सँ कियो देखतैह सुनतैह-हेतैह फेरि भैरि गामें नाच!
हे चूप करू अहाँ अपन चपलता-हमहूँ नै एलियैह हन आय!
रसल बसल हमहूँ ऐहि गामें- जनैत छी अहाँक दियादी ढ़ाय!

मुर्दा परल रहैत छैह घर में-आ भोकसै जाईये माछे काउछ!
ऐहेन दिआदी अईछ पियरगर-जा करियौ ग आउग आ पाउछ!
अपना बुढ़िया बेर देखल अई हमरा-सुधिया माई आ ओई हेहरी के सौस !
बिच्चहि अंगना में उसैन रहल छल – भैरि कठौत डोका के माउस!

चलैह चलू यौ बेर भेलैह आब-एलैह बेटा सब उठलैह टाटी!
रै छौड़ा सब जाई न जाही- चढ़ा न आ बाबा के काठी!
धू: मोने अईछ बुढ़बा बाबा बेर -कुरहैरि भाँजैत भेलौंह हरान!
कान पकैरि क सप्पत खेलौंह -घुरि नै जायब फेर समसान!

हमसब जायब भल एक्कहि शर्ते-केश नै कियो कटायब!
कानी बरू छटा लेब कहुना-आ अॉडर नै कियो फरमायब!
धुर बूरबक जे मोन होउ करिहें-आब की होई छैह से सब बात!
चलै न चल सब हेतैह रमणगर-कठीआरीक भोज त लगतौह हाथ!

पोखरीक पईने देह नोचै छैह-हम नै जेबह नहाई लेल धार!
कsलहि तर में देबैन तिलांजलि -आगि पैनि लोह पाथड़क
व्यवहार!
रै चुनमा की मुँह तकै छेँ-जोन बैनि एलही अई समसान!
आब कतौह किछु बाँचल नै छैह-पचकठीया के कर ओरियान!
***********——-
हौ बुच्चू भैरि गाम छ बैसल-बाजह आब अपन मोनक विचार!
भोज भात सब तोहरे मोने-तोहरे पर छै सब दार मदार!
तीनहिं गामक सौजनियाँ छह-अपना गामक कोन छैह बात!
जेना भेटैत छै सबके सब ठाम- तोहरो भेटतह समाजक साथ!

अरे किया नै करतैह मोन पैघ छै-बापक श्राद्ध की फेर सँ करतैह!
आ बुढ़हा के अरजल छैन बहुतो -ओ की राखले राखल सरतैह!
सर्वे श्राद्ध भेबो नै केलैह-बहुतो दिन सँ अपना गाम !
हौ महराज की सोचि रहल छह-एहि लाथे क लैह किछु नाम!

सौजनियाँ में अपना सब पर-रसगुल्ला के भोज चढ़ल छैह!
सेहो भोज उतारि न दियौह-ओहि गौवाँ के मोन बढ़ल छैह!
ओही मोटका हलुआई के राखिह-बनबै छैह ओ मधुर बेजोड़!
ओकरा हाथक डलना ओह ओह-दसकोसी में नाम छै शोर !

बारीक सब के टाईट राखिह-अपनहिं मोनहिं सुतरतैह काज!
छौरा सब के टंच क दिहक- ओकरहि सब पर छै सबटा नाज!
चाह पान पर लोक राखि दिहक-सौजनी में ई चलल छै रीत!
दू चैरि टा झाबा गुटखा के बस -कार्यकर्ता में बढतैह प्रीत!

बाबूजी के आत्मशांति लेल-समुचित में हम छी तैयार!
पैसा के हम भागी छी बस -सब मिलि हमरा उतारू पार!
भोज में कनेक कटौती क के-बाबूजी के राखैत नाम!
पोखैरि जौं खुनबा दी एकटा-बुझब ई पाई लागल सुठाम!

से जे मोन होउ करैत न रहिह-ओ सब भेलैह बादक बात!
सर समाज त एखनहिं देखतह-केहेन भेलै मधु बाबूक श्राद्ध!

बेस त आब हमरहु किछु सुनी-अलाप प्रलाप करै जाउ बन्द!
गरदनि में उतरी अईछ टांगल-कहुना आब छुटय ई फंद!
बाबूजी के परम शांति लेल-करब कर्म जे मात्र प्रधान !
अपनेहु सबहक मान राखैत हम- करब उचित ब्राम्हण सनमान!
✏……. संतोषी…..!!

भांग (कविता)

✍️ संतोष कुमार संतोषी

बारी झारी खेत पथाड़ी,
जट्टा लागल भांग तकै ओ…!
तरहत्थी बीच रगैड़ि के सुँघय,
असली के पहिचान करै ओ….!!

ताईक तुईक क -चाईख चुईख क,
कसगर सन ओ बोझ बनौलक….!
चोटगर रौदक धाह पर ओकरा,
धैरि पन्द्रहिया में खूब सुखौलक….!!

झाईर झुईर आ ओसा पोसा क,
कसलक बड़का बोरी में….!
एखन त किछु दिन पुरने चलतैह,
देखल जेतैह फेर होरी में….!!

कनियाँ कहैथि एतेक जतन सँ,
कैरितौंह दोसरहु काज… !
रानी बैनि हम बैसल रैहितौंह,
रहितय अहूँ के राज….. !!

कनियाँ बातक मोजर कोन छैह,
लागल ओ अपनहिं सुर ताल…!
बुझि रहल ओ एकरैहि टोपे,
निश्चिन्त रहत भैरि साल….!!

दुपहरिया कनिके अस्तायल,
उठि चलल ठेकानल ठाम…!
भैरि बकुट्टा भांग निकालैत,
जयकार केलक शिव नाम…!!

बरका सूप में छिरिया देलकैह,
शुरू केलक पुनि बिध बिधान….!
कटकी कुटकी बिछ बना क,
फटकन द के रखल सुठाम…!!

दौड़ि अछिंजल भैरि लेल लोटा,
ताहि बीच भांग के देलक डुमाय…!
एक पहर चित्त स्थिर क के,
भैरि मोन ओकरा देलक फुलाय…!!

अझुका सुरूजक अंतिम दर्शन,
अनायास ओ हैंसि रहल….!
सबटा सब ओरियानक संगहि,
पल्थीया के बैसि रहल…!!

पात छैनि मुठीयाबय लागल,
मुठिये पैनि के देलकैह गाईर…!
सीलबट्टा के दू पाटन बीच,
कोमलता सँ देलकैह पाईर….!!

आब रगड़धस शुरू भेलैह,
बड़ जतने भांग पिसेलैह…!
दू टा दैछिनी-मरीच गोटेक दस,
गम गम खूब गमकेलैह….!!

लोरही संगहि उठय लगलैह,
भाँग पिसल अलबत्ते…!
आब मिजाज़ त बनबे करतैह,
झूठो सब लगतैह सत्ते…..!!

भैरि पोख गरहाज कयल अपने,
बचलैह पाँच सात टा गोली….!
ओरियाने राखल गेल तकरहु,
खेतैह आब संगतुरिया के टोली..!!

मीठगर चाहक चुस्की संगहि,
ओ फकरा छैह संग्याने…!
भांग पेट में -लोटा खेत में ,
तकर कएल सनमाने…..!!

निवृत्त होईते कियो कहलकैह,
कीर्तन छियैह आई बाबाक थान..!
चलू न जमतैह-फेर आय मचतैह,
सुन्न हेतैह फेर गौंवा के कान…!!

श्री गणेश भगवतीक बन्दना,
भजन आ कहुना भेल जय हनुमान..!
शिव नचारीक अन्त नै रहलैह,
एक सँ एक करैह गुणगान….!!

फेर गबबाईस आई लगलैह एकरा,
भांग गबाबैह हर शिव हर…!
त्राहिमाम् शिव स्वयं करै छैथि,
कहैथि रौ बाबू जाई जो घर….!!

अंगना आबिते कतय गेलौंह यै,
आय साँझे लागल सुतान अहाँ के…!
कनियाँ उठितै की भेल यौ,
अधिरैतिया करब चुमान अहाँ के…!!

ठाउँ पिरही पर बैसि रहल ओ,
आगू में आब लागल सचार…..!
भोजन होईत रहल बलात्कृत,
रूदन ठहक्का अछार पछार…!!

ओछौनिक बीच बेमत परल ओ,
उड़ैह मेघ में -खसैह पताल….!
खन मुस्की खन कोंढ़ फटै छैह,
जेना धेने होऊ भूत बेताल…..!!

यै-भांग छियैह राजा रजबारक,
भांग छियैह शिव के आहार….!
नपुंसकता दूर करै छैह भांगे,
आयुर्वेद करैह परचार….!!

केंसर के एक मात्र दबाई छी,
भांग में नहिं छैह कोन्नहुँ दोख….!
आँखि पसाईर देखियौह भैरि गामें,
छुटल छैह भल एकहु टा लोक….!!

आब एकर मोन अन्तहि गेलैह,
तकरैहि पाछु उठौलक डेग….!
आय अंतिम बस कैहि निर्लज्जा,
पूर्ण कएल कामक उदवेग…!!

कैल्ह हेतैह फेर अझुकै लीला,
फेर भंगिया करतैह उत्पात….
भांगक भंगिमा भंगिये बुझत,
लिखि सकत के भांगक बात….!!
“संतोषी”

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सोरह आना सत्ते….!!

✍️ संतोष कुमार संतोषी

थैह-थैह नै, थू-थू जोगरक अई,
अपनहु ओ- आ ओकर कलम !
सबके भाँरैह में लागल अई,
कोनों गत्तर में -नै लाज शरम!!

कहू त केहेन हीन बात छैह,
गामक मर्यादा डूमा रहल!
किदैन कहाँदैन लिखि पैढ़ि के,
ईत उत सबके घुमा रहल!!

बरका लेखनहार बनैत अई,
देखलौंह ओकर फेर नवका लेख!
केहेन सपरतीब-कतेक अपरतीब,
के नहिं सनकत ई सब देख!!

भल ककरहु उपर किछु लिखि बैसत,
के देलकैह ओकरा अधिकार!
रैचि-रैचि लुत्ती, पसाही लगबय,
आ बनैये बरका रचनाकार!!

अपना के की बुझि रहल ओ,
कवि, कलमक बड़का विद्वान!
ओहि कलमक स्याही में डूबत ओ,
अपटी खेत में जेतैह परान!!

मास्टर डाक्टर मुखिया डीलर,
केकरा छोरलक ओ कहू त नाम!
आबो जौं नहिं हाथ समेटत,
हेतैेह भयंकर फेर परिणाम!!

सहरक हवा में उड़ि रहल ओ,
बुझि रहल नै गामक बात!
जोरू जड़ जमीन एतहि छैह,
देखबैह कोना क लगतैह घात!!

आम सभा आब करहै परतैह,
ताहि बीच एकरो करब उघार!
आ की कहै छैह-शोशल मीडिया,
ओही में एकरहु करब प्रचार!!

जाबत माफी नहिं माँगत ओ,
ताबत कहाँ ओकर कल्याण!
जनहीत में ओ ग्यान बँटैये,
अपनहिं बनत ओ निपट अकान!!

जुलूम बात छैह हौ बुच्चू,
गप सप त छह अलबत्ते!
ओहि बुरबकहा के लिखल पढ़ल हम,
सब सोरह आना सत्ते!!
✏ “संतोषी”

मोन

✍️ संतोष कुमार संतोषी

भल केहनहु किएक नैs होउ, मोनक मोने-
आवाश एकटा बनाबैह परत…
दूर कतबहु किएक नैs उगतैह सुरूज-
घर एबाक बाट देखाबैह परत…

ताहि घरक कोनहु कोन में, एकटा ठाम –
ठहक्का मारैह लेल राखैह परत…
हँस्सी नैsभ जाए कठहँस्सी कहीं-
तैं, संगबैहि सेहो त ओरियाबैह परत…

बैसि छत पर तरेगन गिनबाक आस!
निज हाथे चन्ना के छुबक प्रयास !!

फेर बरखा में स्वयं के आय भीजय दियौह,,
फेर आँगन के माईट आय गीजय दियौह!
आय फेर ओ फतिंगा डूबल जा रहल,
ओ कागज के नाव फेर चला त दियौह!!

चलू फुरसत में मांजा -पतंग बना,
मेघ में फेर एकबेर उराबै छी आय!
बाल्य कालक रंग ढ़ंग, ओएह मुस्की के संग,
छोट छीन एकटा पेंच लराबै छी आय!!

बाट केहनो कठीन होई, ओ नेनपन सनक,
अपन डेग समधल उठा न दियौह!
उमेरक तकाजा के तक्का पर राखि,
सबठाम हलचल मचा न दियौह!!!

भल केहनहु किएक नैs होउ, मोनक मोने-
आवाश एकटा बनाबैह परत…..
दूर कतबहु कियाक नैs, उगतैह सुरूज,
घर एेबाक बाट देखाबै परत………
……”संतोषी”

बाढ़ि एलैह…..!!

maithili poem Santosh Kumar santoshi

✍️ संतोष कुमार संतोषी

आरौ कसैया ,बाढ़ि एलैह
बुझाईये जेना साइर एलैह…..

सुतले पहर सपना सन एलैह,
हँसैत बजैत अपना सन एलैह,
भोरहरिये धैरि सगरहु पसरल,
खन उप्पर खन निच्चा ससरल,
आरौ तोरि के, ई की भेलैह
बुझाईये जेना साइर एलैह
आरौ कसैया, बाढ़ि एलैह…..!!!

गीज्जल माथल घोर मट्ठा सन
भीजल तीतल हँसी ठट्ठा सन
भैरि पेट खाई लगैह भुखले सन
उगडूब नाव लगै सुखले सन
एलैह कतय -कत भेलैह निपत्ता
धार सुखेलैह -भरलैह खत्ता
अफसियाँत मोन कतय हेरेलै
बुझाईये जेना साइर एलैह
आरौ कसैया बाढ़ि एलैह….!!!

डुबलैह कतेक -कतेक भसिएलैह
रसगर लोक -कतेक रसिएलैह
ककरहु मुईर बुझू भेल सुन्ना
ककरहु सुईद बढ़ल भेल दुन्ना
ककरहु घर घरारी चैलि गेल
ककरहु काल कष्ट सब हैरि लेल
किछु पैनहिं किछु सोगहि मरलैह
बुझाईये जेना साइर एलैह
आरौ कसैया बाढ़ि एलैह…….!!!

जे डुबल से- धन्य बुझैये
जे बाँचल से हकन कनैये
हे हई बाढ़ि हमरहु घर आबह
कनि राहत हमरहु पहुँचाबह
डुबी हम -तू और डुबाबह
सनकल मोन के और सनकाबह
छन में छनाक की सब कए गेलैह
बुझाईये जेना साइर एलैह
आरौ कसैया बाढ़ि एलैह……!!!

सरलहु संठी लाठी बैनि गेल
जीबितो कतेको टाटी चैढ़ि गेल
अपनहुँ लोक आन सन लागय
मुँहक सोनित पान सन लागय
सब अपनहिं दिश तैनि रहल अई
कतेक सम्हारत गैनि रहल अई
“संतोषी”मोन की कैहि गेलैह
लागैईये जेना साइर एलैह
आरौ कसैया बाढ़ि एलैह …..!!!”संतोषी”

मिथिला राज्य चाही(व्यंग्य)

maithili poem Santosh Kumar santoshi

✍️ संतोष कुमार संतोषी

नव निर्माण आ सत्ता के नाम पर,
बलिदान त करहै परतैह!
गरीब गोईर टुटपूजिया के,
निज प्राण त देबहै परतैह!!
सुतौह की जागौह-मरौह की मारौह…
उजरल के भल और उजारौह…
विनु काजी लोक के कूनहुँ त ,
केहनौ सन एकटा काज चाही….. !
मैथिल नहिं –बस मिथिला राज चाही…..!!

किलकारी -चित्कार बनल,
जत धिया बनल अभिषापे !
पाबै लेल लुटबय त परतैह,
लोक बुझय भल पापे !!
भल अस्मिता होउ तार -तार….
टूटौ लहठी -चूड़ी -गलहार …
विनु साजिन्दा सुर साधि रहल,
ताहू लेल त एकटा साज चाही !
मैॆथिल नहिं–बस मिथिला राज चाही….!!

राक्षस रूपी दहेजिया अजगर,
भोकैसि रहल मैथिल सनमान!
हुकैरि रहल अई जनकक जन -जन,
दशरथ माईर रहल मुस्कान!!
गन्हाएल सन निति भभैकि रहल….
हृदय बीच ज्वाला धधैकि रहल….
शांति दूत परेवा नहिं ऐहि ठाम ,
झपट्टा मारैत बाज चाही!
मैथिल नहिं–बस मिथिला राज चाही…!!

उपाधि वितरण केन्द्र फुजल छैह,
जत टका पुरस्कृत होईत रहल!
दोसराक पैंति चोरा क विभूति,
निज पाँति के धोईत रहल!!
जनहित में बस निज हित चाही…..
ढ़ेरी -ढ़ाकी होईत उगाही………
मान हानि बरू कतबहु भ जाय,
बस अपन ठेकानल ताज चाही!
मैथिल नहिं—बस मिथिला राज चाही….!!

पागक मान शीष धैरि सीमित,
ताहि सीषक त हुअय यशगान!
मैथिल एकता बनत त तखनहिं,
जौं -धन विनु जन के भेटत सम्मान !
मधुरागी -मधुपानक मैथिल …..
मृदुभाषी गुणगानक मैथिल….
“संतोषी” निज गत्तर में आबो,
कोनहुँ विधि कनेकटा लाज चाही!
मैथिल -मैथिली संगहि मिथिला राज चाही…!! “संतोषी”

 

भितरका बात (कहानी)

maithili poem Santosh Kumar santoshi

✍️ संतोष कुमार संतोषी

आय बरका कका के रस्ता कातक दलान पर- वर्तमानक मुखिया आ पंचायत समिति सेहो बैसल छैथि… !

बाट धेने जाईत -आबैत लोक सब कन्खियाईत देखि मुस्कियैत आगू बैढ़ि जाईत अई…
कतेक गोटे त आश्चर्य चकित भ जाईत अई ई नजारा देखि..
कारण ई मुखिया आ समिति त अपने भैरि गाम लुत्ती लगौने अई जे –
बरका कका त विरोधी छथि हमरा सबहक…
तहन फेर…
हेतैह कोनहु,
“भितरका बात” !!

देखू बरका कका.,
भले ही अहाँक विरोधक बावजूद हम मुखिया बैनि गेलौंह …मुदा अहाँके सब दिन अपन गुरूजी मानैत एलहुँ आ मानैत रहब….

तहिना हमरहु बात.. हम पंचायत समिति पद पर भले हि अहाँके आशिर्वाद बिनु आसीन भेलहुँ ..
मुदा हमर मनोभाव अहाँक विचार स बाहर नै…

अरे, तोहरा दुनू गोटे के हम नीक स चिन्हैत छियह…
बात की छै से त कह….

की कहू सबटा त जैनिते छी अहाँ..
पंचायत में विकास करबाक लेल
हमसब -सब संग वादा के ने छी..
लोक सब के, बिस्वास सेहो छै हमरा पर में….
मुदा ,
विकास त तहने न हेतैह जहन कोनहु काजक लेल जे भी कोनों आवंटित धन राशि छै से मुखिया के अकाउन्ट में एतैह …

घौंर काज हेतै…
अछह ई कहू जे आवंटित पाई
जौं पंचायत समिति के अकाउन्ट में एतै त की दिक्कत….

अरे किछो नै न बाजि दियैह-कतेक पाई खर्च क के हम मुखिया बनल छी तकर अनुभव त छह की नै तोरा…
“मुखिया संघ” बनलै हन से बुझल छह की नै…

अरे “मुखिया संघ”बनलै त “समिति संघ” सेहो बैनि जेतैह…
ओहू में कोनों कोदैर चलबै परैत छैह…..

जे भी होई मुदा बुझै छहक ने जे सबटा मुखिया एक्कहि टा अरान पर अरल छै -जे कोनो भी आवंटित पाई वार्ड विकास समिति के अकाउन्ट में पंचायत के खाता स हस्तांतरण नै हेबाक चाही… आ आब त उच्च न्यायालय सेहो राशि निकासी पर रोक लगा देने छैह…

से त मुखिया सब एहि दुआरे अरान पर अरल छै जे ईलेक्सन में जे पाई खर्च केलकै तकर असूली कोना हेतैह आ अगिला ईलेक्शन लरबाक लेल पाई कतय स जम्मा हेतैह..

अरे चुप रहअ तू दुनू गोटे-
बड्ड बजै छह….
पंचायत भैरक लोक जे अपन वोट द के तोहरा सबके अपन जन प्रतिनिधि बनेलकह से कथी लेल…
जौं सत्ते पंचायत में काज करबाक मंशा छह त पाई कतहु भी ककरहु भी अकाउन्ट में आबै त की दिक्कत.. काज हेबाक चाही ….विकास हेबाक चाही…

से बात नै न छैह यौ…. हमर कतेक पाई नुकसान भेल अई से त जैनतहि छी न अहूँ…
आ हमरा कोनों फ्री में वोट देलक कियो.. सबके कोनों नै कोनों माध्यम स पैसा ठुसेने छियैह….. तैं के बाजत हमरा लग कहियौ त… एक साल त भ गेल हमरा मुखिया बनला… सब गोटे अपन निजी काजक लेल त टोकैतो अई मुदा पंचायत विकास के बात करबाक साहस ककरहु लग नै छैह… किया की सबहक मुँह हम पहिने बंद क देने छियैह…

तकर की मतलब सबटा तु असगरे गीर लेबहक… हम जे पंचायत समिति बनल छियैह से अहिना, मुँह ताकैत रहै लेल.. आ पंचायत के नौ टा वार्ड सदस्य ओहिना चुप रैह जेतह से बुझैत छहक….

अरे फेर शुरू भ गेलह तु दूनूह गोटे…. तोहरा दुनू गोटे के बात स एकटा बात त साफ बुईझ गेलियैह जे एहु पंचवर्षीय में कतेक विकास हेतै पंचायतक…….

यौ बरका कका किछु “भितरका बात”कहू ने….

भितरका बात त सोझें में छह… जकरहि खाता में पाई आबैत छैह से आबय दहक…. पंचायत भैरि में मुँहपूरूख सबके त तू पहिने ठुसेने छहक तैं कियो किछु रोक टोक सबाल जबाब करबे नै करतह… कने मने वार्ड सदस्य सब के सेहो सुँघा दिहक आ तु दुनूह गोटे बैस के आपसी समझदारी में अपन अपन लगानी के हिसाब स बैंटि लिअह…..!!

आ काज…. विकास…. सेहो न हेबाक चाही… हम समिति पद पर छियैह लोक हमरहु कहैत अई न यौ….

अरे मुखिया त हम न छियैह ,त तू किया डेराईत छह… तोरा जे कहतह तकरा कहिहक मुखियाजी स बात करू….
बचलै काज आ विकास त से-कागज आ फेसबुक पर धारा प्रवाह चैलते न रहतै…….

हईय्याह…….. असल में ई न भेलह “भितरका बात”
“संतोषी”

बौआ रै……. कौआ. (कहानी)

✍️ संतोष कुमार संतोषी.

बुढबा बाबा,
दलान पर बैसल…
चुपचाप…
शांत….
अपन जीवनक नीक बेजाय,
मोन पारैत…
काँपैत हाथे,
तमाकु रगरैत….
असगरूआ. भेल बैसल छलाह….

तखने….
कियो आगन्तुक,
धरफराएल आँगन प्रवेश कएलनि..
आ…
किछु काल बाद,
सुपुत्र…
संखु बाबु,
आगन्तुक के बाहर छोरि
दलान दिस अयलनि…

बुढबा बाबा पुछि देलखिन…
बौआ…
के छलै….
चिन्हलियै नै……..?

कोन काज छ चिन्हबाक…
के छलै…?
किया छलै…..?
कोना छलै….?
बुढ भेलह…….. चुपचाप बैसबह से नै….
फुदकी पारैत रहैत छ….
संखु बाबु तामसक संख फुकय लगलाह…

स्तब्ध….
आर्तनाद करैत बुढबा बाबा..
संखु बाबु के
नेनपनक बात मोन पारैत कहलैनि..

तोहरा कोरा में नेने हम आँगन में बैसल रही
कि चार पर एकटा कौआ आबि बैसल….
तु………
आँगुरक ईशारा सँ एक सय बेर पुछलेँ….
बा… बू……. ऊ..
हम एक सय बेर हँसि के कहैत रहलियौ…..
बौआ रै…… कौआ……..

आय तोरा सँ एक बेर कोनो बात पुछबाक अधिकार नै हमरा…..

संखु बाबु निरूत्तर…..
आँगन दिस ससैरि गेलाह…..

बुढबा बाबा पुण:
अपन जीवनक बितल दिनक हिसाब करय लगलाह……

हाथक तमाकु भीजी गेल छलैन….
बुढबा बाबा के अश्रु धार सँ…..

मोन राखी ई बात…..

बौआ रै……… कौआ.
संतोषी.

सहोदरा

maithili poem Santosh Kumar santoshi

बरकू-छोटकू……. (कहानी)
✍️ संतोष कुमार संतोषी.

बाहर पैरि रहल सिम-सिम बरखाक बुन्न…. !!

देखिते ओकरा अैँखि में बितलाहा पुरान अतीत सब जेना नाचय लगलैह…..

अस्पतालक ईमरजेन्सी बेड नं. 104
में ओकर बीमार माई सात दिन बाद निनाएल सन लागि रहलै…

सात दिन सँ बीमार माईक संग अस्पताल में रहैत रहैत ओ स्वयं थाकल -हारल सन महसूस क रहल अई… !!

चाहक तलब जोर क देने रहै ओकरा,
मुदा बाहर बरखा के सीमसीमी देखि चुपचाप माईक पएर लग बैसि गेल रहय ओ…. ,!!

बरखाक सिमसिमी देखिते ओकरा हृदय में वेदना के लहैरि उठि जाईत छैह .
आ पश्चाताप के आईग में जरय लागैछ ओ….. !!
कारण ,,
आई सँ लगभग सत्ताईस बरख पहिने….
सावनक महिना…
माई- बाबूजी आ दूनू सहोदर भाई… (बरकू -छोटकू) !!

दुनूह भाई में दू बरखक अंतर रैहितो छोटकू एकरा सँ एक क्लास सीनियर छलैह.. !
छोटकू हमेशा फस्ट आबै आ ई लगातार चौथी में दू बेर आ पाँचबी में एक बेर फेल भ गेलाक कारणें अपने छोट भाई सँ एक क्लास जुनियर भ गेल रहैक…. !!

छोटकू के तीव्र बुद्धि सँ प्रभावित भ स्कूल के मास्टर आ गाम भैरिक लोकक सिनेह सदैव ओकरा भेटैत रहैक… !!
तकर त कोनों बेसी दुख नै रहैक एकरा मोन में,
मुदा…
घरहु में माई बाबू के लार प्यार- छोटकू के बेसी भेटैत देखि एकर मोन बेकल भ जाईत रहैक… !!

ओहि दिन बाबूजी पाँच टा कापी आ तीन टा पेन छोटकू लेल आ दू टा कापी एकटा पेन एकरहु लेल बजार सँ किन के आनि देने रहथिन….. !!
बाबूजी के सोझाँ त एकर बोलीयो नै बहराई, मुदा माई पर अपन तामसक लहैरि झारि क चित्त बुझा लैत रहय ई…!!

गै बुढ़िया .. तोहरा सबके त छोटके बेटा अपन छियौह….
हम त कियो नै न छियौह… !
देखलही न बुढ़िया……. .बाबू ओकरा लेल पाँच टा कापी तीन टा पेन आ हमरा लेल दू टा कापी एक टा पेन…. नै पढ़बौ हम से बुईझ लिही… !!

रौ बाबू तहूँ छोटकू जेना मोन चित लगा क पढ़ न…. अछह ऐहि बेर तू फस्ट करबिही त तूहूँ जे सब कहबिही से बाबूजी आनि देथून तोहरो लेल……. भेलै न आब..!!

माईक बात के अनसुना करैत बाहर दलान पर लपैक के चैल गेल रहय ई…. !!

बरखाक बुन्न दलानक चार सँ टप टप चुअैत रहैय जकरा अपना हाथ में लोकैत छोटकू मुस्काईत मगन रहय अपना में….

ईहो चुपचाप मिझाएल घूर में सँ एकटा जरलाहा खोरनाठी उठा क दलानक दवाल पर चींछ सब पारय लागल….

छोटकू एकर हरकत देखि कहलकै भैया दवाल पर कोयला स चींछ नै न पारही… माई कहैत छैह कोयला सँ चींछ पारनाई दोख होईत छैह…..

तूँ चुपचाप रह…. हम किछो करी तोरा की मतलब…
बाबू जे तोरा पाँच टा कापी आ तीन टा पेन किन देलकौह तकर जोश दखबै छीही हमरा… चल तै में स एकटा कापी एकटा पेन हमरा दे…. ला… तोरा पाँच टा हमरा तीने टा….

हमरा की मतलब… बाबूजी स तहूँ ले न… हमरा की कहै छीही…

एकर मतलब नै देबही तू….. लग में राखल बाँसक करची उठा क छोटकू के पएर पर सटाक माईर देलकै ओ… आ जोर सँ धकेल क खसा देलकै ओकरा….

कानेत उठल छोटकू.. लग में इँटाक अध्धा टूकरा परल देखि उठा क बजैर देलकै एकरा देह पर…..

हलाँकि दलानक कोन में सोन्हिया क स्वयं के बचा लेलक ओ इंटाक चोट सँ… आ बहन्ना बाजी शुरू क देलकै…
एकबेर चिचीया क शांत भ गेल ओ… तेना निशबद्ध सन पैरि रहल जेना कोनो जाने नै रैहि गेल होई ओकरा में…..

डेरा गेल छोटकू….
लग आबि स्थिर सँ उठेबाक प्रयास करय लागल अपना सहोदर के…. भैया…. भैया….. रै भैया…..

कोनो प्रतिकृृया नहिं देख घबरा गेलै बच्चाक मोन… !!

बेर बेर छोटकू एकरा नाक लग हाथ राखि साँस गनबाक प्रयास करैक… मुदा नाक लग हाथ आबिते ई अपन सांस लेनाई बन्द क दैत रहैक…

कखनो काल पिपनी के तअरे स छोटकू के हदाश उरल मुँह देखि भीतरे भीतर आनन्दित होईत रहय ई….

बुईझ गेलै छोटकू…
जे हमरा हाथे बरकू भैयाक मृत्यु भ गेलैह… !!

धिरे धिरे उठि क ठार भेल छोटकू…

बाहर बरखाक बुन्न नमहर भ गेल रहैक…

दलान स बहराईते समुच्चा भिजि गेल..छोटकू…
छोट डेग नम्हर होमय लगलैह….
जल्दिये ओकर डेग दौरै में तब्दील भ गेलैह…
दौड़य लागल ओ.. दिशा विहीन…. भागल जा रहल छोटकू…. !!

छोटकू के एना भागल जाईत देखि,
एम्हर,
एकरहु मोन भितरक आनन्द निपत्ता भ गेलैह…

ई हो दलान स बहरा क छोटकू के एम्हर उम्हर ताकय लागल….
मुदा छोटकू कतौह नै भेटलैह एकरा…

साँझ पैरि गेलैह…
कनैत खीजैत ई घर पर आबि गेल रहय…
आबिते, बाबूजी पुछलकै एकरा…
की भेलौ रौ…
ककरा स लैरि के एलें फेर….
के मारलकौह… !!

एकर कानब सुईन माई सेहो घर स बाहर आबि गेल रहैक….

रौ बाबू ऐ बरखा बुन्नी में कतय बौआईत रही.. .
देखियौ त कोना हाथ पएर ठिठुरि गेलै हन एकर ….
चल झट स कपरा बदैल ले…
माई कहलकै ओकरा.. !!
की..
दौड़ि क माई के भैरि पाँज में पकैर लेलकै ओ…
माई गै -छोटकू नै भेटै छौ कतहु…
हिचकैत कहलकै माई के ओ…

दुनू भाई त संगहि रही न… कतय चैल गेलैह ओ तू नै देखलही…

सब बात सत्त सत्त माई बाबू के सुना देलकैह ओ….

तकरा बाद त….. समुच्चा गाम, धार पोखैर ईनार जंगल झार सौंसे तक्का हेरी सुरू भ गेलैह… मुदा छोटकू के कोनोंहु टा पत्ता नै चैलि सकलैह…..

माई त कानैत कानैत बताह भ गेल रहैक…

एक दिन दू दिन पाँच दिन पन्द्रह दिन…. महिना साल भ गेलैह मुदा छोटकू के कोनों खोज खबैरि नै चललैह….

बाबूजी के मरलाक बाद त ओकर माई जेना पाथड़ भ गेल रहै…
हरदम बिमाड़े…..
गैलि क कांटो कांट भ गेल रहैक ओकर माई…
तै पर बतहपनी…
कोनो भी नव लोक के देखिते ओकरा छोटकू… छोटकू…..
हमर बेटा…. हमर बेटा…
कहैत भैरि पाँज में पकैरि लैत छलैह…. बुढ़िया….

ओ भईया…….
नर्स के आवाज ओकरा अतीत स बाहर आनि देलकैह….

ऐँ…

अरे कभी तो मरीज को अकेला छोर दो….
आराम करने दो… चलो निकलो बाहर….
बरे डाक्टर साहब के आने का टाईम हो गया….
चलो बाहर….. !!

ताबत बरका डाक्टर आबि गेलैक….
रहने दो -रहने दो….
ई बरका डाक्टर साहब पहिले बेर आयल छैह आय…
लग आबि नर्सक हाथ सँ कागज पत्तर ल क उलटाबैत पुलटाबैत पुछलकै ओकरा..
.अभी क्या दिक्कत है ईनको….

धिरही सँ माई के उठाबैत ई कहलकै … माई गै बरका डाक्टर साहेब आयल छथिन..
की होई छौ कहिन त… अपने…

ऐँ,,,
कनेकबे आँखि खोलि देखलकै डाक्टर के ओकर माई… देखिते कहैत छै….
बेटा… हम्मर बेटा….. हम्मर बेटा….. !!

गै माई..
मोन क स्थिर कर न…. ई डाक्टर साहब छथिन….
की होईत छौह से कहून न….

किछु नै बुझैत छी बाबू….
बरबराईत कहलकै माई…
आब हमरा गाम ल चलू…
ओहि ठाम अपनहिं आंगनक तुलसी चौरा लग चैन स मरब हम…..
ल चलू बा… बू… ल… च.. लू…

डाक्टर साहेब चेक जाँचक दौरान कने सिहैरि सन उठलाह…
मरीजक पेट पर एकटा निशान तेहेन रहैक जे निशान डाक्टर साहब अपना माईक पेट पर सेहो देखने रहैथि….

एमहर एकर माई फेर बरबराय लगलैह…..
हम्मर बेटा…. हम्म… र… बे… टा…….. बरकू……. छोट… कू….

बरकू… छोटकू…. सुनिते…

डाक्टर साहेब भैरि पाँज में पकैरि लेलकै बुढ़िया के….
चिचीया लगलैह डाक्टर…
गै माई…..
हम छोटकू छियौह …
गै माई….
तोहर बेटा छोटकू…… तोहर बेटा….. तोहरे बेटा…… !!

गंगा जमुना बहय लगलैह सबहक आँखि स….

बरकू के गला सँ लागाबैत डाक्टर छोटकू कनैत कहलकै ऐकरा कान में….
भैया रै ….मरलिही नै तू…… !!
दुनू भाई एक दोसर के पकैर झौहैरि करय लगलैह…..

छोटकू के देखि जल्दिये माई ठीक भ गेलैह…
सारा वृतांत सुनेलकै छोटकू जे कोना दू दू दिन भुखले सहरक सड़क पर दौरैत रहल ओ… आ कोना एकटा व्यापारी ओकरा अपना घर ल गेलैह… कोना ओकरा पढ़ेलकै लिखेलकै… आ कोना, डाक्टर बनल ओ…….!!

आय ईहो पश्चाताप के आईग सँ बाहर भेल महसूस क रहल…… संतोषी.

? जय मिथिला ——- जय मैथिल ?

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