उम्मीद की पराजय ( हिन्दी कहानी) लेखक- राजहंस कुमार: Hindi kahani ummid ki parajay, Hindi story by Rajhans, Hindi kahaniyan, marmik kahaniyan, Navin Hindi kahaniyan. नमस्कार दोस्तों एजुकेशन पोर्टल में बहुत-बहुत स्वागत है। आज हम आपके बीच एक कहानी लेकर हाजिर हैं।
कहानी के रचनाकार राजहंस कुमार है। इस कहानी के पात्र और घटनाएं काल्पनिक है। उम्मीद की पराजय ( हिंदी कहानी) को अंत तक पढ़े। आशा है यह हमारे समाज में सकारात्मक सोच पैदा करेगी।
उम्मीद की पराजय( हिन्दी कहानी), लेखक- राजहंस कुमार
रामपुर गरीबों की बस्ती, जहां गन्नू नामक एक व्यक्ति रहता था। वह काफी गरीब था। उसे भगवान की कृपा से 2 पुत्र की प्राप्ति हुआ था एक पुत्र का नाम सरोज जो बड़ा था, और छोटे पुत्र का नाम गोपाल।
एक दिन उस गांव में एक फकीर आया वह गन्नू के दरवाजे पर आकर अल्लाह के नाम पर कुछ मांगने लगा। गन्नू की पत्नी सुधीरा बड़े प्यार से उसे खाने को दिया। खाने के बाद वह फकीर सुधीरा के गोद में एक छोटा लड़का को देखा जिसका नाम गोपाल था। फकीर ने गोपाल के माथे पर हाथ रखते हुए कहा बेटी तुम बहुत भाग्यशाली हो, क्योंकि तुम्हारा यह बेटा बहुत बड़ा अफसर बनेगा। इतना कह कर फकीर चला गया।
अब सुधीरा और उसका पति गन्नू हर्ष और विषाद लिए सोच में पड़ गया। कि जहां गरीबी ही गरीबी है, जहां शिक्षा का लेश मात्र जगह नहीं है, वहां का बच्चा एक अफसर ही नहीं बल्कि बहुत बड़ा अफसर बनेगा यह आश्चर्य की बात है। फिर भी होनी को कौन टाल सकता है हो ना हो फकीर के भेष में मेरे यहां भगवान आए हो। फिर दोनों पति-पत्नी आपस में विचार किया कि हम लोग मेहनत मजदूरी करके दोनों बेटे को जरूर पढ़ाएंगे। दोनों दिन रात मेहनत करके कुछ कुछ पैसा इकट्ठा करने लगे। जब दोनों बेटा बड़ा हो गया तो दोनों को पाठशाला में नामांकन करवा दिया।
गन्नू दोनों बेटे को सातवीं कक्षा तक किसी प्रकार पढ़ाया। लेकिन अब दोनों को पढ़ाना कठिन हो रहा था, क्योंकि खर्च बढ़ रही थी। पारिवारिक बोझ भी अधिक हो रहा था। जो पैसा कमाते उसमें से अधिकतर पैसे परिवार में ही खर्च हो जाया करता था। उस पर से किसी माह यदि घर में कोई बीमार पड़ जाता तो उस माह थोड़ी बहुत कर्जा ही हो जाया करता था।
इस प्रकार अब गन्नू और उनकी पत्नी का सपना धूमिल पड़ती नजर आ रही थी। अब वह दोनों हमेशा चिंतित रहने लगी। एक दिन उनका बड़ा लड़का सरोज अपने पिता से चिंता का कारण पूछा पिताजी सारी बात बता दी।
इस पर सरोज बड़े प्यार से अपने पिता को समझाया कि अपना गोपाल पढ़ने में काफी तेज है और मैं आपसे ही सुना हूं कि गोपाल को एक फकीर का आशीर्वाद भी है कि वह एक बड़ा अफसर बनेगा। इसलिए चिंता त्याग कर गोपाल को पढ़ाओ। वह जब कुछ बन जाएगा तो हम लोगों का दुख वैसे ही दूर हो जाएगा।
हम भी आप लोग के साथ खेती में हाथ बताऊंगा, मैं खेती का काम मन लगा कर करूंगा और अधिक से अधिक फसल उपजाऊंगा। जिससे गोपाल की पढ़ाई पूरा हो सके।
फिर पिताजी बोले यह तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा क्योंकि तुम भी मेरे बेटे हो एक से मैं खेती कराऊं और एक को पढ़ाऊं हम से नहीं होगा। इतने में गोपाल आ गया वह सरोज से पूछा क्या बात है भैया? आज आप सभी बड़े गंभीर मुद्रा में हैं।
सरोज अपने छोटे भाई गोपाल को सारी बात बताई, गोपाल साफ मना कर दिया। वे कहा नहीं भैया यदि आप नहीं पढेंगे तो मैं भी नहीं पढ़ूंगा। इस पर सरोज जोर से बोले गोपाल तुम पर हम सभी का पूरा भरोसा है, तुम से हम लोगों का उम्मीदें जुड़ी हुई है। कि तुम एक दिन बड़ा आदमी बनोगे। यदि तुम पढ़ने से इन्कार किया तो मैं आज ही तुम्हें और इस घर को छोड़ कर चला जाऊंगा।
इसीलिए तुझे पढ़ना ही होगा गोपाल की आंखों में आंसू छलक पड़े और अपने भाई और अपने पिता के कदमों में सर रखकर बोले पिताजी, भैया, मैं आप लोगों का यह एहसान और त्याग कभी नहीं भूल सकता। मैं आपको वचन देता हूं कि जिस दिन में सफल होकर बड़ा अफसर बनूंगा उस दिन के बाद आप लोगों की सारी जिम्मेदारी मेरी होगी। और आप सभी हमारे पलकों पर होंगे। आप हमें जो रास्ता दिखाएंगे मैं उसी रास्ता को ग्रहण करूंगा।
इतना ही नहीं हम आप सभी को लेकर शहर में अपने पास रखूंगा। सभी की आंखों से आंसू के मोती झड़ने लगे। गोपाल मन लगाकर पढ़ने लगा। गोपाल के माता-पिता और उनका बड़ा भाई कठिन परिश्रम करने लगे। जिससे गोपाल की पढ़ाई में कोई कमी ना पाए।
गोपाल जो कुछ भी मांगता उसे पूरा किया जाता उनकी हर जरूरत को प्राथमिकता दी जाती।जरूरत पड़ने पर घर के सभी सदस्य कभी कभार भूखे सो जाते, लेकिन गोपाल को कभी भी भूखा नहीं सुनाते। इस बार गोपाल अच्छे रेंक से B.P.S.C. परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। और बेगूसराय में कलेक्टर बना दिए गए।
गोपाल को कलेक्टर बनते ही उनके माता-पिता और भाई खुशी से झूम उठे। सारा गांव गोपाल की कामयाबी पर गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। गोपाल उस समाज का प्रेरणास्रोत बन गया था। अब सभी ग्रामवासी के मन में अपने बच्चों को पढ़ाने की उत्सुकता बढ़ रही थी कुछ दिन तक कार्य करने के बाद गोपाल अपने पिता को चिट्ठी लिखा कि मैं आप लोगों से मिलने अगले महीने आ रहा हूं मेरे मित्र भी मेरे साथ आएंगे।
गोपाल के पिता माता और भाई के मन में हर्ष की लहर दौड़ रही थी। जिस दिन गोपाल आता उस दिन घर आंगन मानो जैसे हंस रहा हो। गोपाल का भाई सरोज अपने दरवाजे पर रखी चौकी को पानी से धो कर उस पर एक चादर बिछा दिए थे और अपने भाई गोपाल के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उधर मां अपने बेटे के आने की खुशी में खीर बना रही थी। गांव के कुछ लोग भी गोपाल को देखने के लिए गन्नू के दरवाजे के निकट खड़े थे।
गोपाल एक सूटकेस लिए घर पहुंचा और अपने माता-पिता और भाई का पांव छू कर प्रणाम किया। फिर गांव के लोगों से गले मिले। और बातचीत करने लगे। गोपाल के आने से जैसे घर आंगन में चार चांद लग गई हो। कुछ दिन के बाद गोपाल की छुट्टी खत्म हो गई गोपाल फिर अपने ड्यूटी पर चला गया।
इस बार बेगूसराय जाने के बाद हालात बिल्कुल बदल गया। गोपाल के ऑफिस में एक गीता नाम की लड़की आई। वह लड़की अमीर घराने की थी उनका पिता धन्ना राय एक बहुत बड़ा सेठ था। रीता उस समय से गोपाल को जानती थी जिस समय गोपाल दरभंगा में रहकर एल. एम. एन. यू. मैं पढ़ा करता था। वहीं पर रह कर गीता भी पढ़ती थी।
जब गीता को पता चला कि गोपाल बेगूसराय में कलेक्टर के पद पर न्यूक्त हुए है तो वह भी अपने घर बेगूसराय आ गई। लेकिन गोपाल गीता के विषय में कुछ नहीं जानता था। क्योंकि गोपाल अपने परिवार की हालत देखी थी इसलिए वह कभी भी पढ़ाई के अलावा अपना समय दूसरे व्यक्ति साथ गुजारने में बर्बाद नहीं किया करते थे। हमेशा पढ़ाई में लगा रहता था।
लेकिन गीता गोपाल की लगन से प्रभावित थी वह गोपाल से कुछ कहे बिना ही मन ही मन उसे बहुत चाहती थी। इसलिए वह बेगूसराय आने के बाद वह बिना काम के भी गोपाल के ऑफिस में पहुंच जाती थी। कुछ दिन के बाद गोपाल को शक होने लगा कि यह लड़की कौन है जो बिना काम के मेरे ऑफिस में आती हैं और फिर चली जाती हैं। उसने एक दिन गीता से पूछा तुम कौन हो और मेरे ऑफिस में तुम्हें क्या काम रहता है? गीता बोली साहब मैं गीता हूं और मैं आपके ऑफिस में किसी काम से नहीं बल्कि आपके दर्शन को आती हूं। आपके दर्शन मिलते ही मैं खुश हो जाती हूं और चली जाती हूं।
गोपाल गंभीर भाव से पूछा आप का मतलब समझ नहीं पाया। गीता बोली मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मैं आपको बहुत चाहती हूं। मैं आपके बिना जी नहीं सकती। यदि आप मुझे ठुकरा देंगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। गोपाल का दिमाग जैसे शन्न सा रह गया। वह गीता से बोला गीता, पर मैं तो तुम्हें नहीं जानता और प्यार भी नहीं करता, तो मैं तुझे कैसे अपना लूं। गीता बोली आप मुझे जाने ना जाने लेकिन मैं आपको बहुत दिनों से जानती हूं। जब एक दिन आप कॉलेज में अपनी बेहतरीन भाषण और वक्तव्य से संपूर्ण कॉलेज के छात्र छात्राओं का दिल जीत लिया था, मैं उसी दिन यह प्रण ले लिया कि मेरे सपनों का राजकुमार सिर्फ तुम हो सकते हो।
इतना ही नहीं मेरे पिता धन्ना राय के पास करोड़ों की संपत्ति है। और मैं अपने पिता की इकलौती बेटी हूं। मुझसे शादी के बाद तुम भी करोड़पति बन जाओगे, खुशी खुशी जीवन जिओगे। गोपाल असमंजस में पड़ गया, एक तरफ उन्हें मां बाप और भाई का प्यार का चलचित्र मन: पटल पर चल रहा था और एक तरफ सेठ बन जाने की सपना। उनके मन में हलचल मच रही थी।
आखिरकार उनके मन की तराजू में एक सेठ बनने का सपना मां बाप और भाई के प्यार से भारी पड़ गया। वह फैसला कर लिया कि हमें सेठ बनना है। मैं गीता से शादी कर बहुत खुश रहूंगा। और गीता से शादी के लिए हां कर दिया। वह अपने परिवार को बिना बताए ही गीता से शादी कर लिया। और गीता के घर आनंद पूर्वक रहने लगा।
गीता के प्यार ने गोपाल के मन से उनके परिवार का स्वप्न देखना भी मिटा दिया। इधर माता पिता अपने बेटे की कामयाबी पर खुश हो रहे थे और भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि उनका बेटा पुनः उन सब से मिलने आए। इधर गोपाल सब को भुला कर अपनी अलग दुनिया बसा लिया।
4 महीने बीत गए एक भी चिट्ठी पत्री घर नहीं भेजा। इससे उनके परिवार को चिंता होने लगी कि गोपाल तो हर महीना चिट्ठी लिखता था लेकिन 4 महीने बीत गए एक भी चिट्ठी नहीं आई। क्या गोपाल किसी मुसीबत में तो नहीं। सुधीरा बार-बार अपनी पति गन्नू से रोते हुए कहती मुझे गोपाल को ला दो। उसे क्या हो गया है जो अभी तक कोई चिट्ठी नहीं भेजा।
सरोज भी चिंतित हो गया। सरोज बोले पिताजी हो सकता है गोपाल किसी काम में बहुत व्यस्त हो, काम का भार हो जाने के कारण चिट्ठी नहीं लिख पाए हो या चिट्ठी लिखने की फुर्सत नहीं मिली हो। इसीलिए आप खुद जाकर उससे मिल आइए कुशल समाचार जान लीजिए। और उनको लेकर कम से कम एक दिन के लिए भी घर आइए।
जिससे सबके मन में संतोष हो जाएगा। गोपाल के पिता तैयार हो गया और उसी दिन बेगूसराय रवाना हो गया। बेगूसराय पहुंचने के बाद उसे पता चला कि गोपाल किसी धनी सेठ की बेटी गीता से शादी कर वे वहीं मजे में रह रहे हैं।
गन्नू को आश्चर्य के साथ साथ बहुत खेद भी हुआ। वह सोचने लगा कि मेरा गोपाल तो ऐसा नहीं था वह तो मेरा एक आदर्श बेटा था। वह मुझसे पूछे बगैर तो ऐसा नहीं कर सकता था। फिर भी उस सेठ के घर पर पहुंच कर पता करना होगा हो सकता है कि मेरा बेटा गीता से प्यार करता हो। और किसी परिस्थिति वश गीता से शादी करनी पड़ी हो।अवसर न मिलने के कारण खत ना लिख पाया हो।
वह धीरे-धीरे धन्ना सेठ के बंगला के निकट पहुंच गया, बंगला देख कर उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका बेटा इस बंगला में होगा। वह ज्यों हीं दरवाजे में प्रवेश करना चाहा गेटमैन उसे रोका। कौन हो तुम किधर जाते हो? तुम्हें यहां क्या काम है ?
गंभीर भाव से गन्नू बोला यहां कोई गोपाल रहता है वह मेरा बेटा है मैं उससे मिलने आया हूं मुझे उस से मिलवा दो। आपकी बड़ी कृपा होगी । दोनों गेटमैन ठहाका मारकर हंसने लगे मानो जैसे उनका उपहास कर रहा हो। गेटमैन बोला तुम पागल तो नहीं हो गए हो गोपाल सेठ को गोपाल कहता है। और अपना बेटा कहता है अपना मुंह दर्पण में देखा है क्या? वह यहां के सेठ हैं उससे कोई पागल भिखारी या फकीर नहीं मिल सकते। भागो यहां से, कैसे-कैसे गंदे -मैले पागल चले आते हैं ।
गन्नू का पांव धीरे-धीरे जैसे जमीन में धंसता जा रहा था। फिर भी हिम्मत जुटा कर उसने गेटमैन से प्रार्थना किया, गेटमैन साहब आप उसे बुला नहीं सकते तो कम से कम उसे जाकर इतना कह दीजिए कि आपका पिता गन्नू आपसे मिलने आया है। एक गेटमैन ने कहा अच्छा ठीक है यदि तुम इतना कहते हो तो मैं साहब को यह कह देता हूं लेकिन इसका अंजाम क्या होगा वह तुम सोच लो।
गेटमैन जाकर गोपाल से सारी बात बता देते है। गोपाल का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है वह सीधे दरवाजा के सामने आता है पीछे पीछे उनकी पत्नी गीता भी आती है। गोपाल के मन में डर है कि कहीं गीता को इस बात का पता ना चल जाए कि उसका परिवार इतना गरीब है और इस फटे हाल में गुजर वसर करता है। इस भिखमंगे बाप का यदि वह पांव छूता है तो उनकी हंसारात होगी।
इसलिए वह अपने चेहरे के गुस्से को और भयानक बना कर गन्नू से पूछता है तुम कौन हो? यहां किसलिए आए हो? गन्नू अवाक रह जाता है, और बोल पड़ता है बेटा मैं गन्नू तुम्हारा पिता मुझे नहीं पहचानते। गोपाल बोला मेरा पिता तुम पागल तो नहीं हो गए हो मेरा पिता तुम जैसा फकीर थोड़े हैं ।
गीता बोली गोपाल तुम मुझे धोखा दे रहे हो, हो सकता है यह तुम्हारा पिता हो। गोपाल बोला नहीं गीता मैं इसे जानता तक नहीं। गीता बोली गोपाल, तो फिर यह गन्नू कौन है? गोपाल थोड़ी देर के लिए आंख बंद कर लेता है और कहता है हां याद आया आज से लगभग 6 वर्ष पहले गन्नू नाम का एक नौकर हमारे यहां काम करता था किसी कारण से पिता जी उसे काम से निकाल दिया था। हो सकता है उसी का बदला लेने के लिए और मेरा उपहास उड़ाने यहां तक पहुंच गया है।
गोपाल गेटमैन को आदेश दिया, किसे घसीटते हुए सड़क के उस पार जाकर छोड़ दो। जेब में फूटी कौड़ी नहीं और मेरा बाप बनने चला है। भुनभूनाता हुआ गीता के संग गोपाल अंदर चला गया।गन्नू के हृदय पर मानो वज्रप्रहार हो गया । सहसा वह जोर से चिल्लाया विश्वासघात बहुत बड़ा विश्वासघात। तूने अपनों का विश्वास तोड़ा है मेरे लाल।
फिर वह असहाय हो गया, उनके आंखों के आगे अंधेरा छा गया। अचानक बेहोश होकर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। गेटमैन उसे उठाकर सड़क के उस पार ले जाकर छोड़ दिया। जब गन्नू की बेहोशी टूटी तो उनका शरीर शिथिल हो गया था। उनका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था, चेतना शून्य हो गया था। एक जिंदा लाश बन चुका था।
उधर मां और सरोज काफी चिंतित थे। क्योंकि उनके पिता को गए भी कई दिन हो चुके थे। वह अपने पिता और गोपाल की आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। किसी तरह गन्नू 6 दिनों तक भटकता हुआ रामपुर पहुंचा। सरोज और उनकी मां सुधीरा आंगन में बैठी थी। अचानक दरवाजा पर किसी को आने की आहट सुन दोनों दौड़ कर बाहर आए। और दृश्य देखकर उनका दिमाग सन्न रह गया।
सरोज आगे बढ़कर अपने पिता को संभाला सुधीरा भी उसे सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया।,और फफक फफक कर रोने लगी। फिर सुधीरा पूछी प्राणनाथ अपना गोपाल कैसा है? वह क्यों नहीं आए? और आपका यह हाल किसने किया? एक साथ लगातार कई प्रश्न पूछ डाली।
गन्नू कुछ भी बोल नहीं सका। वह टकटकी लगाकर उन दिनों की आंखों में देखता ही रह गया। जैसे उनकी चेतना सुन्न हो गई हो। फिर सरोज गरज कर बोला मेरे पिता का किसने यह हाल किया है। उसे पता नहीं कि मेरा भाई कलेक्टर है। आज ही मैं अपने भाई से मिलकर उसे नानी याद दिलाता हूं।
पिताजी आप सिर्फ उस आदमी के बारे में कहिए जिसने आपको यह दर्द दिया है। मैं उसे छोरुंगा नहीं। और यह बताइए की गोपाल कहां रहता है। मुझे उम्मीद है कि मेरा भाई गोपाल उसे अवश्य दंड देंगे। मुझे गोपाल का पता बताइए पिताजी। सहसा गन्नू की आंखों से अश्रु धार बहने लगी और फफक फफक कर रोने लगा और सिर्फ इतना ही कह पाया बेटा अब किसी से उम्मीद न करना।
आज उम्मीद की पराजय हो गई। क्योंकि जो यह दर्द मुझे दिया है उसका नाम मैं कह नहीं सकता। और जिससे मिलने के लिए तुम इतने व्याकुल हो वह तुमसे मिल नहीं सकता। अर्थात जिससे मैं मिलने में गया था वह मुझे मिला ही नहीं वह अपना गोपाल नहीं था, वह अपना गोपाल नहीं था, वह अपना गोपाल नहीं……….। फिर गन्नू अपनी आंखें सदा के लिए बंद कर लिया।
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बहुत सुंदर
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एना समाज में होयत अति। बहुत-बहुत शुभकामना।
Bahut Sundar.