Shahar Ki Niyat by Rajhans
शहर की नीयत ।। राजहंस
शहर की नीयत
शरीर कपकपा रहा,
बारिश की कहर में।
कोई नहीं है देखता,
किसी को भी शहर में।।
वो छतरी वाले बाबा,
मुझे भी जरा ढकले ।
हंसकर मुझे वह कहते ,
मैं भीग जाऊं पगले ।।
करती हृदय को कम्पित,
बादल की गड़गड़ाहट।
पल -पल मुझे डराती,
बिजली की कड़कड़ाहट।।
शरीर को शिथिल करें,
हवा की सरसराहट।
दरबार दरवाजा बंद होते,
सुनकर किसी की आहट।।
कोई नहीं तुम्हारा ,
कोई नहीं हमारा ।
देखो शहर की नियत,
कोई नहीं सहारा ।।
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