धरती माॅ॑ का दु:खरा
देखो मुझको आॅ॑ख खोलकर,
किया मुझे तुम टुकड़ा टुकड़ा।
किन लोगों पर करुं भरोसा,
किसे कहूं मैं अपना दु:खरा।।
मेरे नाम का हाथ उठाकर,
एक तरफ करते हो जाय।
एक तरफ तुम मुझे काट कर ,
मुझ पर करते हो अन्याय ।।
मुझको काट रहे हो ऐसे ,
जैसे कोई फल को काटे।
बंदर बांट किया सब मिलकर,
तोड़ के मुझसे रिश्ते नाते।।
सब हो एक जमीं के बालक,
इन्हीं जमीं से सब हो तगड़ा।
आज उसी को बांट- बांट कर ,
आपस में करते हो झगड़ा।।
मुझको टुकड़ा-टुकड़ा करके,
महादेश से देश बनाया।
उन देशों को टुकड़ा करके ,
फिर कितने प्रदेश बनाया ।।
क्यों आपस में लड़ते हो तुम,
तनिक तो सुन लो मेरी वाणी।
जरा सोच कर यह देखो तो,
कोई मरा तो किसकी हानि।।
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