Bhukhmari poem by Rajhans
भूखमरी
तड़प रहे हैं कितने बच्चे,
व्याकुल होकर भूख से।
अपनी व्यथा को कह नहीं पाती,
मां भी अपनी पूत से।।
माता की कैसी मजबूरी ,
बेटा से वह कह नहीं पाती ।
बेटा जब व्याकुल हो जाते ,
अन्न के बदले नीर पिलाती ।।
कभी किसी से विनती करते,
कभी कहीं पर हाथ फैलाते।
दया के बदले कड़वी बोली,
कोमल हृदय में आग लगाते।।
मकड़ी जाल से बनी गरीब,
लोग फंसे हैं किडे़ जैसे ।
चारों तरफ से घिरे हुए हैं ,
कोई उनमें बचेंगे कैसे ।।
दिन रात है भूख सताते,
समय की मार को झेल न पाते।
तड़प तड़प कर लाखों बच्चे,
मृत्यु को जा गले लगाते।।
कितनी सूनी कर दी आंचल,
कितने सुंदर बाग उजाड़ ।
भूखमरी है भीषण ज्वाला,
इस ज्वाला से कौन उबारे।।
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