बाल विवाह
समाज धकेल रहे मुझको,
क्यों नर्क के दरवाजे में।
मेरी बचपन हो रही नष्ट,
तासे और बाजे गाजे में।।
सात साल की आयु में हीं,
रची गई थी मेरी शादी ।
सबके नैनों में थी खुशियां ,
देख-देख मेरी बर्बादी ।।
जो आयु थी खेलकूद की ,
वज्र प्रहार हुआ था उन पर ।
ढ़ोल नगाड़े बाजे के संग,
अत्याचार हुआ था मुझ पर ।।
स्वास्थ्य कभी न रहती ठीक,
जीवन जीने का न ढंग।
बाल विवाह के कुप्रभाव से ,
कोमल जीवन हो रही तंग ।।
मेरे बचपन के नैनों से ,
झड़ते हैं जो दुःख के मोती ।
बन जाएगी वह एटम बम,
दुनिया को कर देगी छोटी।।
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