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Kaisi ho janani Hindi Kavita By Rajhans

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Kaisi ho janani Hindi Kavita By Rajhans

Kaisi Ho Janani Hindi Kavita By Rajhans

 

Kaisi ho janani Hindi Kavita By Rajhans

 

कैसी हो जननी

माॅ॒॑ – मैं थी जब गर्भस्थ रूप में ,
पिता तुम्हारी जांच करवाएं ।
पता चला कि मैं हूं बेटी,
 आंसू नैनों में भर आए ।।
 
तुमसे कहे वह चुपके चुपके,
 मेरे भाग्य की खेल निराली,
 इतना जप और ध्यान कराया,
 फिर भी हिस्से बेटी आई ।।
 
चिकित्सक को बुलवाकर उसने ,
अपने मन की बात बताई।
 ईश्वर को मेरा सुख ना भायी,
 मेरे घर फिर बेटी आई।।
 
 चिकित्सक थे कुछ सहमे सहमे ,
फिर वह ऐसी राज बताई।
 पिताजी थे जो दुःख में डूबे,
 चेहरे पर फिर खुशियाॅ॑ आई।।
 
 माता जी को शैल्य कक्ष में,
 ले जाकर कुछ दवा सुॅ॑घाई।
 फिर क्या था मेरे जीवन का ,
पल भर में अस्तित्व मिटाई ।।
 
कैसी ह्रदय तुम्हारी माता,
 अपनी रूप को समझ न पायी ।
एक बेटी बेटी को मारे ,
तुम्हें जरा सी दया न आई ।।
 
मुझको माॅ॑ तुम मार हीं डाली,
 लेकिन ऐसा फिर मत करना ।
बेटी यदि नहीं रहती तो,
 खुद की कल्पना भी मत करना।।
 
 सुन लो एक बेटी की याचना,
 जिसने जीवन चक्र चलाया ।
जीवन में माॅ॑ हर दुःख सहना,
 ऐसा पाप कभी मत करना।।
 
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