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ऋण पर कविता | Hindi Poem By राजहंस

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Rin vishay par Kavita By Rajhans
ऋण पर कविता राजहंस

 

ऋण

बीत गए गुलामी के दिन ,
फिर भी भारत संभल न पाया।
 भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नीतियां,
 सब के मन में अभी भी छाया।।
 भूल गए उनके कष्टों को ,
जीवन जिसने दांव लगाया‌।
 घृणा और द्वेषो॑ का साया ,
सबके मन में अभी भी छाया।।
 झेलता रहा पूर्वजों ने दुःख,
 खुल कर सांस कभी ना पाया ।
लूट का खसोट और बेईमानी ,
सबके मन में अभी भी छाया।।
 जिसने अपनी संतानों को,
 इतना दृढ़ और सबल बनाया।
 अब तुम मुझको यह बतला दो,
 क्या तुम उनका ऋण चुकाया?

 

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