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दो मां (हिंदी कहानी) लेखक- राजहंस | Do Maa Hindi kahani

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दो मां (हिंदी कहानी) लेखक- राजहंस :  Do Maa Hindi kahani , Hindi story by Rajhans, Hindi kahaniyan, marmik kahaniyan, Navin Hindi kahaniyan. नमस्कार दोस्तों एजुकेशन पोर्टल में बहुत-बहुत स्वागत है। आज हम आपके बीच एक कहानी लेकर  हाजिर हैं। कहानी का  रचनाकार राजहंस कुमार है। इस कहानी के पात्र और घटनाएं काल्पनिक है। दो मां ( हिन्दी कहानी) को अंत तक पढ़े।

दो मां (हिंदी कहानी) लेखक- राजहंस :  Do Maa Hindi Kahani

रमण और सुभाष दोनों एक ही विद्यालय में पढ़ता था। दोनों में अच्छी मित्रता थी,वे दोनों एक दूसरे के दुःख दर्द को समझता था। रमण पढ़ने में इतना तेज था कि वह हमेशा वर्ग में अव्वल आता था। जिससे अन्य सहपाठी हमेशा उनसे जला करता था।

सुभाष एक गरीब परिवार का लड़का था, गरीब होते हुए भी वह नेक और ईमानदार था। उनके पिता मेहनत मजदूरी करके अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनना चाहता था।

रमन का पिता पोस्ट ऑफिस में काम करता था।

रमण इस बात को जानता था कि वर्ग में उनके सभी उनसे जलता है, लेकिन सिर्फ सुभाष हैं जो उन से बेहद प्यार करता है। सुभाष को ऐसा विश्वास था कि संगति से हीं व्यक्ति बूड़ा अथवा खराब या अच्छा बनता है। इसलिए वह दोनों मन से दोस्ती किया। ऐसी दोस्ती जिसमें एक ओर किसी वस्तु की अभाव नहीं हो तो एक और अभाव हीं अभाव।

फिर भी एक दूसरे के प्रति हीन भावना नहीं, दोनों का पढ़ाई-लिखाई अच्छा चल रहा था। रमन के पास किसी भी किताब की कभी कमी नहीं होती थी, वह जो भी किताबें चाहता उन्हें शीघ्र मिल जाता। लेकिन सुभाष के साथ कई समस्याएं होती उन्हें एक किताब खरीदने के लिए महिनों इंतजार करना पड़ता।

इसलिए वह अधिकतर किताबें अपने दोस्त रमण से लेकर लेता था, लेकिन समस्या यह थी कि जब वह किताब लेता तब विद्यालय में उस विषय का पाठ खत्म हो चुका होता था। रमण कभी भी किताब देने से मना नहीं करता। लेकिन पाठ खत्म हो जाने के कारण तैयारी में कमी हो जाती।

अपना पाठ पूरा करने के लिए वे दिन रात मेहनत करता। रात रात भर जागता। इस विपरीत परिस्थिति में भी अपने आप को तैयार कर लेता और हमेशा एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती।यह होड़ एक दूसरे को दबाने के लिए नहीं बल्कि एक दूसरे को बढ़ाने के लिए होता।

वे दोनों एक दूसरे के घर आया जाया करते था। जब सुभाष, रमण के घर जाता तो तो उनके माता-पिता उन्हें अपने पास बिठाकर चूम लेते और आगे पढ़ने का आशीर्वाद देते। रमण जब कभी सुभाष के घर जाता तो उनके माता-पिता भी उन्हें गले लगा कर आगे बढ़ने की हौसला देता।

Hindi story and poem by Rajhans

सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। लेकिन कुछ वर्षों के बाद समय ऐसा चक्कर चलाया की सब कुछ उल्टा पड़ गया। अचानक पोस्ट ऑफिस में एक दिन आग लग गई। जिसमें दोषियों ने रमण के पिता को भी फंसा दिया। जिससे उनकी नौकरी चली गई। रमण कि पढ़ाई-लिखाई बाधित हो गया।

अंतिम परीक्षा निकट था,फार्म भरने में 15 दिन शेष थे। फार्म भरने का पैसा देने से भी रमण का पिता असमर्थ हो रहा था। इसलिए रमण आज सुभाष से यह कह देना चाहता था कि आज से हम स्कूल नहीं जा पाएंगे, परीक्षा नहीं दे पाएंगे, और अब तुम दूसरा साथी तलाश लें। अब मैं तुम्हारा मदद नहीं कर सकता अब मेरे पास कुछ भी नहीं रहा।

आज सुभाष स्कूल विदा हुआ तो रास्ते में ही बिना वस्ता के रमण से भेंट हुआ। रमन सजल आंखों से सुभाष को अपने दिल का सारा हाल कह सुनाया, और यह भी कहा कि अब मैं तुम्हारे दोस्ती के लायक नहीं। अब मैं विद्यालय कभी नहीं जा पाऊंगा। मेरे पढ़ाई का यही अंत था दोस्त, इतना सुनते ही सुभाष की आंखों से गंगा जमुना की धार निकल पड़ी।

इस घटना से सुभाष को काफी सदमा पहुंचा, वह अपने मां को सारी बात बताई और फफक कर रोने लगा। मां को भी बहुत दुःख हुआ, वह सुभाष को ढाढस बंधाया की तुम चिन्ता मत कर, कल से रमण भी तुम्हारे साथ स्कूल जाएगा। तुम्हारे पिताजी के साथ साथ मैं भी मेहनत करूंगी और पैसा इकट्ठा कर रमण का भी फॉर्म जरूर भरवाऊंगी।

उन्हें अपनी मंजिल हासिल करना होगा। तुम रोना बंद करो मैं आज ही जाकर रमण की मां से मिलती हूं। उस दिन शाम को सुभाष कि मां जब रमण कि मां से मिली तो रमण की मां जोर जोर से रोने लगी। सुभाष की मां उसे गले लगा कर बोली बहन रो मत, तुम्हारा बेटा होनहार है। रमन के पिता का नौकरी चला गया तो क्या हुआ, रमन तो है।

रमन की मां अपने आंचल से आंसू पूछते हुए धीरे से बोली रमन तो है लेकिन उनके जीवन का क्या होगा ? हम दोनों तो किसी तरह जीवन जीविका चला लेंगे, लेकिन रमन का पढ़ाई-लिखाई सब खत्म हो गया सुभाष की मां। सुभाष की मां बोली बहन आज मैं तुमसे कुछ मांगू तो मुझे दोगी।

रमन की मां और भी अधिक उदास होकर बोली, अब मेरे पास है हीं क्या जो मैं तुम्हें दूं फिर भी बोल क्या चाहिए मुझे? सुभाष की मां बोली मुझे अपना रमण दे दो। रमण की मां और अधिक उदास हो गई और बोली यह तुम यह क्या कह रही है बहन। एक तो मेरा सब कुछ चला गया और अब रमण भी मैं तुझे दे दूं यह नहीं हो सकता ।

सुभाष की मां फिर प्यार से उन्हें समझाया कि मैं तुमसे जिंदगी भर के लिए रमण को थोड़े हीं मांग रही हूं। मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिए मांग रही हूं। इस महीने के बाद उनका अंतिम परीक्षा है, मैं उनका सारा इंतजाम कर लिया हूं। सुभाष के साथ रमण भी परीक्षा में जरुर शामिल होगा।

उन्हें परीक्षा देना हीं होगा। अचानक रमण कि मां की आंखें नम हो गई और सुभाष की मां से लिपट गई। दोनों ही मां अश्रूधार से नहा रही थी। फिर रमण की मां अपने पुत्र रमण को बुलाकर सुभाष की मां के हाथ में सौंप दिया, और बोली सुभाष की मां, मैं भी अपने पति के साथ दिन-रात मेहनत करूंगी, लेकिन आज मैं भी यदि तुमसे कुछ मांगू तो तुम दोगी? सुभाष की मां हंस कर बोली मैं समझ गई तुम मुझसे क्या मांगना चाहती हो, अपना बेटा सुभाष इतना कहते हीं दोनों की आंखों से खुशी के आंसू झलक पड़े।

रमन फिर से स्कूल जाने लगा और अधिक परिश्रम से पढ़ने लगा। अंतिम परीक्षा में दोनों पूरे उच्च विद्यालय में प्रथम आए, दोनों को अच्छी नौकरी मिली, आब दोनों के परिवार खुश हैं। अब जब भी वे दोनों घर आते हैं तो दोनों का रहना, सोना,घूमना- फिराना यहां तक खाना भी साथ होता हैं।

 

दोनों की मां एक दूसरे में अंतर नहीं समझ पाती, कुछ ऐसा हो चुका है, जिससे दोनों पुत्र के मन में यह पहेली सुलझ नहीं रही है कि उनकी अपनी मां कौन है? इतना ही नहीं दोनों माताओं के लिए भी यह पहेली अनसुलझी हीं है कि मेरा अपना बेटा कौन है?

दोस्तों यह छोटा सा Story आपको कैसा लगा, हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं।

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