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पढ़ी समझे कि समझ पढ़े, अहो कहो द्वीजराज – कबीर साहब के प्रश्न padhi samajhe ki samajh pade

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पढ़ी समझे कि समझ पढ़े, अहो कहो द्वीजराज – कबीर साहब के प्रश्न padhi samajhe ki samajh pade

नमस्कार एजुकेशनल पोर्टल में आपका बहुत-बहुत स्वागत है। आज का यह लेख धर्म से संबंधित है। कबीर साहब के बारे में आप लोग जानते ही होंगे। वह कभी स्कूल नहीं गए, किंतु उनका विचार आदरणीय है। वे भगवान के अनन्य भक्त में से एक थे।

आज उनके द्वारा पूछे गए पद्मनाथ जी से इस प्रश्न के विषय में आपको बताने वाले हैं।

पद्मनाथ जी बहुत ज्ञानी व्यक्ति थे किंतु वह अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों को नीचा दिखाने के लिए करते। वह दूसरे दूसरे संतो के पास जाकर उनसे शास्त्रार्थ करके नीचे दिखाते थे।

यह बात सच है कि भगवान को इस प्रकार की भक्ति पसंद नहीं, भगवान सरल भाव वाले व्यक्ति को ही सबसे अधिक पसंद करते हैं।

देश के कोने कोने घूम कर पद्मनाथ जी संतों का अपमान करते, यह भगवान को पसंद नहीं था।
पद्मनाथ जी से किसी ने कहा जब आप काशी में जाकर शास्त्रार्थ करोगे और वहां जीत जाओगे फिर समझेंगे आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं।

वे शास्त्रार्थ करने के लिए काशी पहुंच गए। काशी के सभी पंडितों को पद्मनाथ जी के बारे में जानकारी मिलते हैं होश उड़ गए। अब क्या होगा सभी पंडित भगवान शंकर जी के मंदिर में पहुंचकर भगवान शंकर से पद्मनाथ जी से बचने का उपाय पूछने लगे।

रात्रि में भगवान भोले दानी पंडितों को स्वप्न में बताया कि हमारा एक प्रिय भक्त कबीर है। उनके पास पद्मनाथ जी को भेज दो। सुबह होते ही सभी पंडित बैठक किया। जब भोले दानी खुद ही कबीर साहब के पास भेजना चाहते हैं तो निश्चित रूप से वह भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं।

हमें कबीरदास के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। हम सभी पंडितों को उनसे जरूर मिलना चाहिए और क्षमा याचना करना चाहिए। बहुत दयालु है वह जरूर माफ करेंगे

सभी पंडित कबीरदास के पास जाकर प्रणाम किए, कबीर दास जी सब को प्रणाम करते हुए पूछे भाइयों कैसे आना हुआ?
पंडितों ने कहा काशी में एक पद्मनाथ जी नाम का पंडित आया है वह शास्त्रार्थ करना चाहता है भगवान शिव शास्त्रार्थ करने के लिए आपको नियुक्त किए हैं।

कबीरदास बोले जब भगवान शिव हमे शास्त्रार्थ करने के लिए नियुक्त किए हैं तो शास्त्रार्थ भी वही करेंगे।

पंडित पद्मनाथ जी को कबीर दास के पास भेज दिए गए। पंडित बोले हम आपसे शास्त्रार्थ करना चाहते हैं।

कबीरदास बोले हम तो जीवन में कागज कलम पकरे भी नहीं, शास्त्रार्थ क्या होता है पता नहीं..

पद्मनाथ जी समझे कि हमें किसी मूर्ख के पास ये पंडित लोग भेज दिया। अच्छा आपको शास्त्रार्थ के विषय में पता नहीं है कोई बात नहीं आप मुझसे प्रश्न पूछो…

कबीर साहब उस पंडित से पूछते हैं–

पढ़ी समझे कि समझ पढ़े, अहो कहो द्वीजराज

हे पंडित आप पढ़कर समझें कि समझ कर पढ़ें है बताने का प्रयास करें।

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पद्मनाथ जी को इस प्रकार का प्रश्न जीवन में कोई नहीं पूछा था। अब वह सोच में पड़ गया कि इसका जवाब क्या होगा। क्योंकि दोनों तरफ से उत्तर देने पर गलत होने की संभावना बढ़ जाती है।

यहां विद्वान होते हुए भी पद्मनाथ जी वह काम कर रहे थे जो भगवान को प्रिय नहीं था।

पद्मनाथ जी कबीर साहब के चरणो में गिर गए उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया। वास्तव में यदि हम समझकर पड़े रहते तो भगवान का भजन करते इधर-उधर के चक्कर में नहीं पड़ते, या फिर पढ़कर समझते फिर भी भगवान का ही भजन करते हम तो दोनों तरफ से गलत कर रहे हैं।

दूसरों को नीचा दिखाना यह विधाता का पहचान नहीं है। हमें माफ कर दीजिए कभी साहब साहब

 

इस कहानी में आपको यह सीखने को मिलता है कि भगवान अपने अनन्य भक्तों को झुकने नहीं देता है। कबीर साहब भगवान के अनन्य भक्त हैं। इसे सिद्ध कर दिया है।

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