बाबा हरनेश्वर नाथ महादेव (द्वालख) पांच भव्य मंदिर: (Harneswar Nath Mahadev Dwalakh) भक्त वृंद आज का यह पोस्ट काफी खाश है।बाबा हरनेश्वर नाथ महादेव के विषय में यह छोटा पोस्ट जरूर है किंतु हमें पोस्ट के माध्यम से सभी देवी-देवताओं के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
इस पोस्ट में हम आप श्रद्धालु भक्तों के लिए पावन भूमि द्वालख में अवस्थित पांच भव्य मंदिरों के तस्वीरें शेयर करेंगे। कमेंट बॉक्स जय जय कार से भर जाना चाहिए।
बाबा हरनेश्वर नाथ महादेव (द्वालख)
अपनी तीव्र जलधारा से सबको मर्माहट कर देने वाली कोशी नदी की अनेकों उपधाराओं में बहने वाली भुतही, बलान और तिलयुगा के संगम तटीय भाग पर अवस्थित बाबा हरनेश्वर नाथ महादेव मंदिर सदियों से लोक आस्था का पवित्र स्थल रहा है।
यह मंदिर मधुबनी जिला के मधेपुर प्रखंड अंतर्गत द्वालख गांव के उत्तर पश्चिम दिशा में अवस्थित है। वैसे तो द्वालख गांव में कई मंदिर हैं जैसे पूर्व में बाबा विश्वकर्मा जी का मंदिर, पश्चिम में माता भगवती विराजमान है। दक्षिण दिशा में बाबा डीहवार का मंदिर है तो मध्य भाग में श्री लक्ष्मी नारायण जी विराजमान है।
यहां कुल पांच भव्य मंदिर है, उनमें से बाबा हरनेश्वर नाथ महादेव मंदिर काफी प्राचीन है। जो सिर्फ द्वालख ग्रामवासियों के लिए ही नहीं बल्कि आस-पास के हजारों गांव के लोगों के लिए आस्था का मुख्य केंद्र है।
बाढ़ के समय
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन दरभंगा महाराज श्री लक्ष्मेश्वर सिंह बहादुर के मुख्य कार्यवाहक श्री झूना लाल शाह के तत्वावधान में सन् 1858 से 1868 ई० के मध्य हुआ था। इस मंदिर के रखरखाव, पूजा-अर्चन,संरक्षण एवं समुचित व्यवस्था हेतु 12 एकड़ खेतिहर जमीन दान में दिया गया था। जो वर्तमान समय में कुछ लोगों का निजी संपत्ति बन कर रह गया है।
मंदिर जब बनकर तैयार हो गया तब मंदिर के पूर्व दिशा में ठीक सामने एक विशालकाय तालाब खुदवाया गया। उस तालाब के मध्य एक लंबी जाठ बनी हुई थी और तालाब में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी। उसी सीढ़ियों से उतर कर श्रद्धालु तालाब में स्नान करने जाते और उसी सीढ़ियों से मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचते थे।
ऐसी मान्यता है कि तालाब पूजन और महायज्ञ में लाखों देवी देवताओं का आवाहन कर यज्ञ संपन्न करवाया गया था। शायद लाखों देवी देवताओं के आवाहन के कारण इस गांव का नाम देवलख रखा गया। जो बाद में देवलख का अपभ्रंश रूप दुआलक और फिर बदलकर द्वालख हो गया।
इस मंदिर में लगभग 1000 साल पुराना विशिष्ट धातु और अनमोल पत्थरों के 8 शिवलिंग, नंदी, माता भगवती और श्री गणेश जी की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के मुख्य द्वार पर अष्ट धातु से निर्मित सबा 3 क्विंटल का एक विशाल घंटा लगा हुआ था। जिसकी सुमधुर ध्वनि दूर-दूर तक के गांव में स्पष्ट सुनाई पड़ता था।
इतना ही नहीं हमारे दादा जी कहा करते थे कि मंदिर के दक्षिण और पश्चिम भाग में बहुत ही रमणीय पुष्प वाटिका था जिसकी महक हमेशा वातावरण को आनंदित करता रहता था। उन्हीं के मतानुसार मंदिर के शिखर पर एक स्वर्ण त्रिशूल लगाया गया था और उन त्रिशूल से मंदिर के सामने तालाब के जाठ तक स्वर्ण कड़ी लगी हुई थी। जिससे मुगल शैली में बना इस भव्य मंदिर की नक्काशी और कलाकृति लोगों को और अचरज में डाल देता था।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार एक चोर उस स्वर्ण त्रिशूल और स्वर्ण कड़ी को चुराने के मकसद से मंदिर पर चढ़ा लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका आधी दूरी से ही गिरकर चकनाचूर हो गया। इस घटना के बाद उस स्वर्ण त्रिशूल और स्वर्ण कड़ी को उतार लिया गया और उसके स्थान पर एक अनमोल धातु की त्रिशूल वहां पर लगा दिया गया।
इस मंदिर के विषय में एक और कहानी बहुत ही प्रचलित है, कि इस मंदिर का जब निर्माण हो गया तब इसे बनाने वाले कारीगर को काफी मात्रा में धन दौलत दिया गया और फिर उनका दोनों हाथ काट लिया। जिससे वह भविष्य में इस प्रकार का दूसरा मंदिर निर्माण ना कर सके। प्रमाण के रूप में मंदिर के दक्षिणी भाग में ऊपर उस कारीगर का चित्र खुदवा दिया गया जिसे आप आज भी देख सकते हैं।
18 वीं सदी का बना यह भव्य मंदिर कोसी नदी के प्रलयकारी जलधारा से आहत सा हो गया। और मंदिर की उत्तरी और पश्चिमी भाग उसी महाविनाशक जलधारा का शिकार बन बह गया। फिर नदी उसे अपना बहाव क्षेत्र बना लिया। पूर्वी भाग जहां पर विशालकाय तालाब हुआ करता था। उसे नदी अपनी जलोढ़ रेत से भर दिया।आज उस जगह को लोगों ने अपना वासडीह बना लिया। फुलवारी वाले क्षेत्र में लोग अपना कलमबाग लगाना शुरू कर दिया।
मंदिर लगभग चारों ओर से क्षतिग्रस्त हो चुका है। और कोसी नदी मंदिर के संपूर्ण प्रांगण को अपने अधिकार में ले लिया। इतने पुराने और भव्य मंदिर का यह हाल देखा नहीं जाता। ग्रामीण के मन में इच्छा तो जरूर होती है कि इस प्राचीन मंदिर का पुनरोद्धार हो लेकिन कोई आगे नहीं आना चाहता।
कुछ समय पहले बिहार पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर के सौंदर्यीकरण, पुनरोद्धार एवं संरक्षण की बात की गई। जिसमें लगभग दो, ढाई करोड़ रूपए खर्च होने की भी बात की गई। लेकिन पता नहीं इस मंदिर का भाग्य कब उदय होगा। और ग्राम वासियों की आस्था से जुड़ा या भव्य आकर्षक अनमोल पहचान कब उभर कर सामने आएगा।
भगवान भोले शंकर ही जाने पर हम लोग भगवान भोले शंकर से प्रार्थना करें कि हे भोलेनाथ कोई ऐसा चमत्कार कर दे जिससे इस मंदिर का पुनरोद्धार हो जाय।
।जय भोलेनाथ।
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Super hot mandir
बहुत बढिया
Jai Baba visakarma
Jai Baba harnesar nath
Bahut Nik Lagal.ehi prachin dharihar Ker jarur bachewaka chahi.
कोई भी कथा लेखन में जब अतितों का वर्णन किया जाता है।तो पढने के बाद मन हर्षित हो जाता है। love u sir jee
बहुत निक।बड़ बढ़िया।
बहुत निक।
Ham Vibhesh jha
Harneshwar Nath mahadev Ker sang Dwalakh gam me panch dham Ka darshan kelau.
हर हर महादेव
Bhole Baba Ker Naman.
Bam bam bhole
Jai harneshwar Baba.
अति सुन्दर।
Bahut achha.