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Hindi Poem By Rajhans (अभ्यर्थना रचनाकार राजहंस)
क्या परियां सचमुच होती है
कभी सपनों में देखा करते,
कभी दादी मां से सुनते किस्सा।
परीलोक की गजब कहानी,
जीवन की बन गई है हिस्सा।।
परियों की किस्सा सुन सुन कर,
हम सब भी परियां बन जाऊं।
पंखों को उपर नीचे कर,
हम नील गगन में उड़ जाऊं।।
क्या परियां सचमुच होती है,
क्या वह इस लोक में बसी कहीं।
क्या वह भी हंसती रोती है,
क्या उनकी देखी हंसी कहीं।।
वास्तव में परियां हो न हो,
लेकिन सपनों की रानी है।
मेरे दिल में रहने वाली,
उत्सुकता भरी कहानी है।।
मानव पर उपकार
वैज्ञानिक ने किया कमाल ,
देश विदेश में किया धमाल।
लगा दिए वो कई लगाम,
चांद पे जा पहुंचा इंसान ।।
अंधे को दी आंख की ज्योति ,
बहरे को वह कान दिया।
कोई कहे ना किसी को लंगड़ा ,
चलने का अरमान दिया।।
पैर बिना अब दौड़ लगाएं ,
आंख बिना हर काम चलाएं।
बहरे भी अब सुन सकते हैं ,
हर क्षेत्र में उनको मान दिलाएं।।
हारे को वह प्यार किया,
बीमारी पर वार किया।
स्वास्थ्य मंत्र हमें देकर वह ,
मानव पर उपकार किया ।।
स्वच्छ भारत
साफ सफाई का करें अब काम हम।
स्वच्छ भारत का करे निर्माण हम।।
स्वच्छता अभियान लेकर चल पड़ें,
स्वच्छता नहीं तो ये दुनिया जले।
जिंदगी को स्वच्छता से जोड़ लें,
स्वच्छता तरफ सभी को मोड़ लें।।
अगर बनीं ये स्वच्छता जीवन आधार,
स्वच्छ भारत की होगी सपना साकार।
स्वच्छता कराती है जीवन से प्यार,
स्वच्छता गई तो होगी खिलवाड़।।
स्वच्छता है खोलती जन्नत का द्वार,
अस्वच्छता है खोलती दोजक किबाड़।
स्वच्छता अपनाओगे तो होगी जीत ,
स्वच्छता नहीं तो जाओगे हार।।
बेरोजगारी
बेटा क्या हो रहा यहां पर ,
सब के सब है दौड़े जाते।
लिए हाथ में कागज टुकड़ा,
सभी को पीछे छोड़ जाते ।।
यह कैसी भीड़ लगी है ?
कोई भाग रहा टैंपू से ,
कोई बस से दौड़ लगाते।
वाहन से भर गई सड़क है,
कोई ना सड़क पार कर पाते ।।
यह कैसी भीड़ लगी है ?
देखो तो उस विद्यालय के,
द्वार पे कितने लोग खड़े हैं।
हो रही है धक्का-मुक्की,
कितने उनके बीच पड़े हैं।।
यह कैसी भीड़ लगी है ?
पिताजी वे सब पढ़े लिखे हैं ,
लेकिन बेरोजगार बेचारा ।
रात को बच्चे भूखे सोते ,
उनका कोई नहीं सहारा ।।
ये ऐसी भीड़ लगी है !
हाथों में जो कागज टुकड़ा ,
उनका वह प्रवेश पत्र है ।
सबकी आज परीक्षा होगी,
इसीलिए सब अस्त-व्यस्त है।।
ये ऐसी भीड़ लगी है !
बेरोजगारी बढ़ गई इतनी ,
छान रहे अभ्यर्थी खाक ।
एक हजार पदों के बदले ,
आवेदक है अस्सी लाख ।।
यह ऐसी भीड़ लगी है !
ग्राम्य जीवन
जब से आया हूं शहर में ,
गांव की याद बहुत है आती ।
सुबह शाम को खालीपन में ,
हृदय नयन में वो छा जाती ।।
सुंदर सुंदर फूल की क्यारी ,
बुलबुल की स्वर लगती न्यारी ।
बच्चों का था खेल निराला ,
ठंडी में जब पड़ती पाला ।
मां की हाथ का मिलता खाना ,
नहीं किसी से सुनते ताना ।
बाबूजी जब गुस्सा करते ,
सर का बाल खुजाया करते ।।
दिन भर खेत में घूमना फिरना ,
पेड़ों के टहनियों पर चढ़ना ।
कोयल के स्वर में हम स्वर भर
सुर में ताल मिलाया करते ।।
स्कूल से जब पढ़कर आते ,
दादी मां फिर खाना लाती ।
अपने हाथों से दादी मां ,
मुझको खाना स्वयं खिलाती।।
ठंडी जब लगती थी मुझको ,
दादाजी जलवाते आग ।
आग किनारे बैठ के खाते ,
मक्का रोटी सरसों साग ।।
खाना की तो बात न पूछो ,
चावल के संग मूंग की दाल ।
गाजर मूली और टमाटर ,
सबका बनता रोज सलाद ।।
दिन भर खेलकर जब मैं आता ,
फिर पढ़ने को लैंप चलाता ।
कुछ ही समय में नींद सताती ,
नींद की साथिन झपकी आती ।।
फिर खाना की थाली आती ,
दादी मां फिर मुझे जगाती ।
दादाजी फिर कथा सुनाते ,
खाते खाते हम सो जाते ।।
एक कुत्ता
एक सुबह ऐसा भी देखा,
दरवाजे पर बूढा बैठा ।
उनके साथ था उनका बेटा ,
सामने एक कुत्ता था लेटा।।
एक बार जब बूढा पूछा ,
सामने बैठा क्या है बेटा ।
कुत्ता तरफ देख कर बोला ,
वह तो एक कुत्ता है लेटा।।
दूसरी बार जब बूढ़ा पूछा,
फिर से देख वह क्या है बेटा ।
बेटा आंख चढ़ा कर बोला ,
वह तो एक कुत्ता है लेटा।।
तीसरी बार जब बूढ़ा पूछा,
मुझे बता वह क्या है बेटा ।
बेटा गुस्से से पागल बन ,
बोला वह कुत्ता है लेटा ।।
बेटा को कुछ कहे बिना ही,
अंदर से एक डायरी लाई ।
उस डायरी की एक पन्ने की ,
लिखी हुई कुछ वाक्य दिखाइ।।
उस पन्ने पर लिखा हुआ था,
बेटा जब छोटा था उनका ।
21 बार यही पूछा था,
बूढा बता रहा था मुस्का।।
प्रेम का सागर
अपनी धुन में गाती रहती ,
अपनी धुन में बहती है।
गहराई में कितने जीवन ,
मानव से यह कहती है ।।
कितने जीव चराचर उसमें ,
अन्दर रहकर पलती है ।
एक दूजे को साथ बसा कर,
सब को संग ले चलती है।।
सब के सब निर्मल धारा में ,
खेलें खूब मचलती है ।
ऐसा हृदय बना लेती है ,
जैसे मोम पिघलती है ।।
मानव को संदेश है देती ,
प्रेम का सागर बनना है ।।
आपस में हम प्रेम बढ़ाकर,
सब को संग ले चलना है।।
पैसा
लगा रही है हर युवक यह दौड़ क्यों ?
राजा बनने की चक्कर में होर क्यों ?
पैसा पैसा करके हम हैं दौड़ लगाते ,
पैसा हमको अपनों से है दूर भगाते।
पैसा के खातिर हम अपने आप को भूले ,
ये कहता है खुद को ना दूसरों को छू ले ।।
पैसा पैसा करते करते हम मर जाते,
लेकिन जीवन के लम्हों में चैन न पाते।
पैसा तो जीवन के हर संबंध को तोड़े ,
पैसा के खातिर जुर्म से नाता जोड़े ।।
संस्कृति सभ्यता को कोई कर मत नीचे,
पैसा के खातिर कोई ईमान ना बेचें।
पैसे जब होते सीमा ने चैन से सोए,
सीमा से जब बाहर होते आंसू रोए ।।
एक गरीब को उतने पैसे कभी ना होते ,
फिर भी हंसी खुशी चैन से वह है सोते ।
एक अमीर की नोटों वाली बिस्तर होती,
उनसे पूछो ,कभी चैन से वो है सोते ?
उनसे पूछो ,कभी चैन से वो है सोते ?
इससे अच्छा है नेक बनो
एक शराबी अपने बेटे को ,
मरते-मरते यह बात कही।
उन्हें एक शराबी बनने का ,
क्यों दुःख होता यह राज कहीं ।।
यदि एक दिन भी प्यार किया ,
तो मुझको इतना कर देना ।
मरने के अंतिम क्षण में भी,
मुख में लवनी जल भर देना।।
यदि गंगाजल तुझे मिले नहीं,
यदि जमजम का जल भी ना मिले।
तो पासी खाना के अमृत,
लवनी जल से नहला देना।।
यदि कार बोलेरो मिले नहीं,
यदि डोली ताबूत भी ना मिले।
फिर पासी भैया से कह कर ,
रिक्शा से शहर घुमा देना ।।
यदि बांस की चचरी मिले नहीं ,
दफनाने को ना थोड़ी जगह ।
तो तार की छज्जा से ढक कर,
मुझे तार तले दफना देना ।।
यदि पात्र पादरी मिले नहीं ,
यदि मिले न पंडित मौलाना।
तो पासी को बुलवाकर के,
मेरा श्राद्ध कर्म करवा देना।।
यदि मेरे जैसा बनोगे तुम ,
तो यही हाल तेरा होगा ।
इससे अच्छा है नेक बनो,
जो सारा जग तेरा होगा।।
पक्षी की अभिलाषा
मैं स्वच्छंद हूं घूमने वाली ,
मुझको बंधक नहीं बनाओ।
मेरी इस स्वच्छंद उड़ान में,
एक पल भी तुम विघ्न न डालो ।।
मानव को जब अच्छी लगती,
जीवन में स्वच्छंद घूमना ।
फिर क्यों हम पक्षी को पड़ता ,
पिंजरे के अंदर में ऊंघना।।
जैसे मानव का है जेल ,
पिंजरे का वैसा ही खेल।
मानव तो कुछ चैन से रहते,
रहती मैं नित दिन दुःख झेल।।
मुझको अच्छी नहीं लगती है,
पिंजरे का सुख और आनंद।
दिन भर यहीं सोचती रहती ,
कब होंगे स्वच्छंद ये अंग।।
सच्चा देशभक्त
फौजी जब होते सीमा पर,
नजरें होती हैं दुश्मन पर ।
दुश्मन का करता काम तमाम,
रोशन करता है देश का नाम।।
वो भी क्या जीवन जीते हैं,
फटे हुए बॉर्डर को सीते हैं।
सोते नहीं एक भी शाम,
रोशन करते हैं देश का नाम ।।
नहीं दिखाता पीठ कभी वो,
रहता है तैनात सभी वो।
उन पर हीं है देश का आन ,
रोशन करता है देश का नाम।।
दिन भर चाहे आग बरसता,
या खूब गरज कर मेघ बरसता ।
उनका वहीं है सुंदर धाम ,
रोशन करता है देश का नाम।।
देश के हर नौजवां को ,
करना चाहिए ऐसा काम।
जिससे वह कहला सके ,
धरती मां का सच्चा संतान।।
शराबी
कमर टूटती मजदूरों की,
महंगाई की चोट से।
फिर भी बोतल नहीं हटाते,
अपने-अपने होंठ से।।
जब वह पीता है शराब तो,
हो जाता है जग का राजा।
ऊंच-नीच का भेद न जाने ,
ना जाने वह गांव समाजा ।।
रहता है नाली में लेटा ,
इसका उनको फिक्र नहीं है ।
उनको तो ऐसा लगता है ,
वह जो करता वही सही है।।
उनको ना रहती यह चिंता,
बच्चे घर में भूखे बैठे ।
वह रहते सपने में खोए ,
राजा बनकर खुद ही ऐंठे।।
मीठी बोली
मीठी बोली में प्रभाव यह,
मंत्रमुग्ध कर देते सबको ।
औरन को शीतलता देते ,
आपहु को शीतल कर दे वो।।
जब बोलो तो मीठी बोली,
वचनों में मिश्री को घोल ।
सोच समझकर सुंदर बात,
हृदय तोलकर फिर मुंख खोल।।
यह बोली मानव का गहना,
धारण करो इसे हर वक्त ।
चारा चले न किसी दुष्ट का,
दुश्मन भी हो जाए भक्त।।
जिनके पास न मीठी बोली,
जीवन के हर क्षेत्र में हारा।
जग को यदि जितना हो तो,
मीठी बोली एक सहारा।।
शाहरी दोस्त
चकाचौंध रहती थी शहर वह,
जिसमें रहकर पढ़ता था।
साथी की तो कमी नहीं थी,
आस पास सब रहता था ।।
एक दिन ऐसा समय आ गया,
जाना पड़ा गांव की ओर।
सबने आकर हाथ मिलाया,
फिर बोले अब होंगे बोर।।
फिर सब मुझको गले लगा कर ,
कहा दोस्त फिर आते रहना।
तेरा दिल जब वहां लगे ना ,
कुछ दिन मेरे घर पर रहना।।
वक्त फिर ऐसा आया तो,
मुझको पड़ा शहर को जाना।
जाकर जब मैं उनको ढूंढा,
उनका ना था कोई ठिकाना।।
एक दोस्त मिला भी मुझको,
मुझको बना दिया अंजाना ।
वह बोले मैं दोस्त नहीं हूं ,
होटल जाकर खाओ खाना।।
कितने ठोकर सुबह से खाए ,
इसका कोई ठीक नहीं था ।
रह रह कर सोने की चिंता,
मुझको हर पल सता रहा था।।
सोच रहा था कैसा यूग हैं ,
कोई दोस्त ना आया काम ।
स्टेशन की ओर चला मैं,
इतने में घिर आया शाम।।
बार-बार यह सोच रहा था,
दोस्त किया क्यों ऐसा काम ।
रात कटी कैसे वह मेरी ,
शब्दों से क्या करूं बयान।।
अन्तर
सबों का पांच तत्व से ,
बना हुआ शरीर ।
किसे कहें गरीब हम ,
किसे कहें अमीर।।
बहती है सभी के रगों में ,
एक जैसा खून ।
सबकी धड़कती है हृदय,
ले एक सा जुनून।।
प्रभु दिए हैं एक जैसी,
देखने को आंख।
सबकी बनी है काया,
ले एक जैसी खाक।।
फिर लोग क्यों झगड़ते,
यह जानते हुए।
कोई नहीं है छोटे ,
कोई नहीं बड़े।।
ये जानते हैं लोग,
मेरा अंत क्या होगा।
वह सभी था प्रभु का,
जो मैं आज तक भोगा।।
भारत मां की शोभा सुंदर
भारत मां की शोभा सुंदर,
आकर्षण का क्या कहना।
इनके कितने हीरे मोती ,
कितने सोने की गहना ।।
गंगा यमुना सरस्वती में,
हीरे जैसी पावन गंगा।
भारत मां की शीश मुकुट का,
मोती जैसी कंचनजंगा ।।
प्यारी बुलबुल तोता कोयल ,
सब की मीठी बोल निराली।
मोर मोरनी नाच दिखाते,
बादल जब घिरती हैं काली ।।
बेला जूही और चमेली ,
सुंदर-सुंदर हार यहां के ।
फसल खेत में झुमा करते ,
हरी भरी है बाग यहां के।।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,
सभी जात में भाईचारा ।
कोई किसी से द्वेष न करते ,
भारत मां को सब है प्यार।।
भारत भूमि
आओ सब मिल जाय गान करें,
भारत भूमि महान की।
इनकी मिट्टी को नमन करें ,
जय बोलो हिंदुस्तान की।।
इनकी मिट्टी में उर्वरता ,
रसपान करें अमृत जल की।
इनके कण कण में कोमलता,
सम्मान करें हम सब इनकी ।।
दुश्मन को भगाने वालों में ,
सबसे आगे थे बापू जी।
भगत सुभाष और जयप्रकाश ,
सब मिलकर इनकी सेवा की।।
पुत्रों की चिंता रहती है ,
मां होकर वीर जवान की।।
इनके चरणों में मस्तक रख ,
जय बोलो हिंदुस्तान की।।
बदला माफ ना होता
एक बूढ़ा व्यक्ति के घर में ,
उनका था एक बेटा।
बेटे के संग बहू थी घर में,
था उनका एक पोता।।
वृद्ध पिता को उनका बेटा ,
भोजन संग कराते ।
एक मेज आगे में रखकर ,
उनको साथ बिठाते ।।
कितनी बार वह बूढ़ा व्यक्ति,
भोजन कर नहीं पाते ।
हाथ में जब भी कंपन होता,
भोजन सब गिर जाते।।
रोज रोज भोजन का गिरना,
बहू के मन न भायी।
अपने पति को रोज डांटती,
जब भी अवसर पायी।।
पत्नी रोज पति से कहती,
मिट्टी बर्तन ला दो ।
बूढ़े को दो उनमें खाना ,
नीचे उसे बिठा दो ।।
मिट्टी के बर्तन लाकर वो,
अपने प्यार से जुदा किया।
खाने को दी उस बर्तन में ,
नीचे उनको बिठा दिया।।
ज्योंही बूढा पीने को कुछ ,
उस बर्तन में घूंट लिया ।
हाथ हिला उसी क्षण उनका,
गिरकर बर्तन टूट गया।।
बर्तन ज्योंही टूटा उनका,
बेटा जोर से चिल्लाया ।
चल दिया बाजार उसी क्षण ,
प्लास्टिक बर्तन ले आया।।
उनका एक पोता था घर में ,
सब कुछ देख रहा था ।
उनको क्या करना है आगे,
यह वह सोच रहा था।।
घर में कई प्लास्टिक वाले ,
डब्बा पड़ा हुआ था।
उस डब्बे को लाकर लड़का,
झटपट काट रहा था ।।
उस लड़के का बापू बोले ,
यह तुम क्या करते हो।
यह डब्बे हैं कितने मैले ,
इसपर क्यों मरते हो।।
बेटा बोले इसे काट कर ,
थाली बना रहा हूं ।
घर में यह बेकार पड़े थे,
पैसे बचा रहा हूं ।।
प्यारे बेटे इस थाली का ,
क्या उपयोग करोगे।
बेटा बोला खाने दूंगा ,
जब तुम वृद्ध बनोगे ।।
बेटा की यह बात सुनकर ,
पिता बहुत घबराया।
अपने पिता से माफी मांगी ,
आगे शीश झुकाया ।।
अपने पोता को वह बूढा ,
आकर गले लगाया ।
बेटा को वह पास बुलाकर ,
प्यार से वह समझाया ।।
जो संतान किया न करते,
सेवा मात पिता की ।
उनके पुत्र कभी न कहते ,
मेरे आप पिता जी।।
सुंदर सपने
मैं बिस्तर पर सोई सोई ,
देख रही थी सुंदर सपने।
बापू नेता और भगत सिंह ,
लाए हैं संदेशा अपने।।
बापू कहते सत्य अहिंसा,
मानव जाति का आधार ।
हो सकती है परेशान वह ,
लेकिन होती कभी न हार ।।
नेता कहते खून के बदले ,
दूंगा आजादी सौगात ।
नेताजी के इन शब्दों से ,
अंग्रेजों खायी थी मात।।
भगत सिंह की बात न पूछो ,
कैसा था वह वीर जवान ।
हंसते-हंसते फांसी चढ़कर ,
बचा लिया था मां का मान ।।
मातृभूमि दिखलाकर सपने,
बच्चों को देती संदेश ।
उठो संभल कर वीर बनो अब ,
खतरे में आए न देश ।।
गरीबी
गरीबी से यह देश ,
अभी तक उबर न पाया ।
बीत गए है कई दशक ,
पासा पलट न पाया ।।
तन पर कोई वस्त्र नहीं ,
रहने को ना थोड़ी छाया ।
सबके मुख में इतनी बातें ,
कब पलटेगी अपनी काया ।।
मंदिर मस्जिद और चौराहे ,
सभी जगह वह घूमा करते ।
लिए कटोरी हाथ में बैठे ,
दयावान को ढूंढा करते ।।
पेट के कारण लोग यहां के ,
एक किए हैं एड़ी चोटी ।
फिर भी उनको मिल नहीं पाते ,
दो वक्त की सूखी रोटी ।।
किसी दिन कुछ मिल जाता तो ,
किसी दिन घर आते रोते ।
किसी शाम भोजन करते तो ,
किसी शाम सो जाते भूखे ।।
अभी भी घर घर की ,
रुदन है हृदय हिलाती ।
दूध के बदले मां ,
बच्चे को नीर पिलाती ।।
बचपन
सारी खुशियां लेकर भी ,
मुझे मिल जाए बचपन का पल ।
वह कागज की छोटी किश्ती ,
रिमझिम बरसा का वह जल।।
धमाचौकड़ी बच्चों के संग ,
वह बचपन कितना आला था ।
कभी हंसाते कभी रुलाते ,
बचपन का खेल निराला था ।।
हंसते-हंसते कभी-कभार ,
होती थी आपस में कुश्ती ।
छुड़ा दिया करते जब लोग ,
फिर कहते अब मिट गई सुस्ती ।।
पढ़ने का न कोई बंधन ,
न थी कोई काम की चिंता ।
अपनी धुन में खूब मस्त थे ,
क्या जानूं प्रशंसा निंदा ।।
कभी नखरे खूब दिखाता था ,
कभी टुंग टुंग कर खाता था ।
कभी बापू गुस्सा करते तो,
मां आंचल में छुप जाता था ।।
ईश्वर से विनती करता हूं ,
मुझको वापस बचपन कर दे ।
मेरे विनती के बदले में ,
बचपन हीं झोली में भर दे ।।
वह टूट गई जंजीर
वह टूट गई जंजीर ,
सब मिल खुशी मनाएं ।
मारी है बाजी वीर ,
हम सब नाचे गाए ।।
अब खुल गई है तकदीर ,
सब मिल लुफ्त उठाएं ।
अब देंगे ना जागीर ,
हम सब धूम मचाए ।।
हम जब तक थे गंभीर ,
तब तक गए सताए ।
जब वीर चलाए तीर ,
उन्हें नानी याद आए ।।
जिसका हर बेटा है पीर ,
उन्हें क्या ज्ञान सिखाएं ।
जहां का बच्चा-बच्चा वीर ,
उन्हें क्या दाव पढ़ाएं।।
भारत मां का यह तस्वीर ,
सब मिल पुष्प चढ़ाएं ।
मारी है बाजी वीर ,
हम सब नाचे गाए ।।
मोती राज
बचपन की छोटी सी किस्सा ,
मैं कहता हूं सबको आज ।
एक था नटखट काला कुत्ता ,
जिसका नाम था मोतीराज ।।
नटखट होकर भी था ऐसा ,
कोई बुलाते संग हो जाते ।
कोई प्यार उन्हें देते तो ,
प्यार के बदले प्यार जताते ।।
एक बार उनके नटखटपन से ,
गांव के लोग हुए नाराज ।
गली गली में घूम घूम कर ,
काम को करते वह हरमाज ।।
कर दी उसने खड़ी समस्या ,
सब का जीना किया हराम ।
विवश किया सोचने पर वह ,
कौन दिलाएगा आराम ।।
सिंटू नाम का छोटा लड़का ,
वो सोचा कैसे हो काम ।
यदि इसे भगा पाया तो ,
हो जाएगा मेरा नाम ।।
दीपावली की धूम मची थी ,
छोड़ रहे थे सभी पटाखे ।
एक उपाय सूझी सिंटू को ,
खुल गई उनकी तीसरी आंखें ।।
उसने बीस पटाखें लाए ,
बांध दिए सबको धागे से ।
फिर वह मोती राज को ढूंढा ,
रोटी दिया उन्हें आगे से ।।
मोती राज को फिर पुचकारा ,
अपने अंग से उन्हें लगाया ।
एक साथी को कह कर उसने ,
लच्छा पूछ में वह बंधवाया ।।
दियासलाई लाकर उसने ,
फिर लच्छा में आग लगाया ।
क्या है आगे होने वाला ,
मोती राज ये समझ न पाया ।।
एक पटाखा ज्योंही छूटी ,
लगा भागने मोती राज ।
छूट रही पटाखें पीछे ,
बार-बार हो रही आवाज ।।
मोती तो बेचैन हो गया ,
छोड़ दिया वह गांव समाज ।
जब भी देखे अब वह किसी को ,
मैदान छोड़कर जाते भाग ।।
जीवन का लक्ष्य
यह जीवन एक चक्र के भांति ,
चलना ही पथ पे चलना ।
हो उबड़-खाबड़ पथ फिर भी ,
चलते रहना चलते जाना ।।
जैसे नदियों की जलधारा ,
पर्वत से निकलकर बढ़ती है ।
राहों में पड़ने वालों को ,
अपने आंचल में भरती हैं ।।
पत्थर के सीने पर चढ़कर ,
घाटी से होकर बहती है ।
चाहे जंगल हो या हो पर्वत ,
वह राह बनाती चलती है ।।
सागर को लक्ष्य बनाती है ,
जब वह समतल में आती है ।
बढ़ती है फिर तन्मयता से ,
जा सागर में मिल जाती है ।।
वैसे ही जीवन का पथ है ,
इसमें भी केवल चलना है ।
मस्ती पानी जैसा लेकर ,
सुख-दुःख के मध्य मचलना है ।।
हो लक्ष्य हीं जीवन का ऐसा ,
जो मानव को कुछ सीखलाए।
मानव जीवन तो यह कहता ,
चलना हीं है चलते जाएं ।।
हिमालय से शिक्षा
देती है सीख हिमालय मुझको ,
अविचल होकर खड़े रहो ।
आंधी आए तूफां आए ,
अपने भू पर हीं अड़े रहो।।
जैसे देकर वह जलधारा ,
धरती को करती हैं उर्वर ।
वैसे हीं मुख से निकसे जो ,
वो हो विनम्र और हो सुंदर ।।
वो जाते बादल को रोके ,
फिर करवाते हैं जल वर्षा ।
उस जल के अमृत बूंदों से ,
एक-एक पल्लव जाते हर्षा ।।
सरहद की रक्षा करते हैं ,
अविचल होकर वह शान से ।
भारत मां की सर ऊंचा है ,
हिमालय के हर काम से ।।
हम सब मिलकर वह काम करें ,
जो देश का मान बढ़ाएंगा ।
हिमालय से कुछ शिक्षा लें,
जो आगे देश चलाएगा ।।
कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
डिजिटल भारत का रह रह कर ,
बज रही डंका ।
लेकिन मेरे मन में ,
है ये आशंका ।।
कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
इंटरनेट की सेवा ,
घर घर में आएगी ।
मुफ्त में वाईफाई ,
की सेवा भी लाएगी ।।
पर कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
डिजिटल इंडिया आने से ,
हर मुश्किल होगी छोटी ।
हर काम घर बैठे होंगे ,
रकम मिलेगी मोटी ।।
पर कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
एक क्लिक पर ,
सारी बातें खुल जाएगी ।
लगती थी जिस काम में भर दीन ,
मिनटों में वह हो जाएगी ।।
पर कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
कितने करोड़ लोग ,
खुले में जाते शौंच ।
आएगी क्या डी शौचालय ,
जिसमें जाएंगे वो शौंच ।।
सोचो ,कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
कितने व्यक्ति भूख से ,
कर ली जीवन छोटी ।
क्या उनके लिए भी ,
आ सकती हैं डीजल रोटी ।।
सोचो ,कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
सब के सब पश्चिम के देश में ,
इंटरनेट की जितनी सर्वर ।
होगी लगाम उन्हीं के हाथ में ,
हो ना जाए कोई गरबर।।
सोचो ,कितना डिजिटल हो पाएगा अपना देश ?
आज के नेता
किस नेता की छवि निराली ,
किस नेता की सुंदर बोल ।
किस नेता की चेहरा काली ,
किस नेता की खोलूं पोल ।।
जिस पर जनता करें भरोसा ,
जिसे वोट देते अनमोल ।
जिसको समझे सरस सुधारस ,
वो नेता है कड़वी ओल ।।
जिसे बनाया हम जनता मिल ,
वोट दिए जिनको दिल खोल ।
वैसे नेता काम न करते ,
सदन की हालत डामाडोल ।।
जिस थाली में खाते हैं वो,
उन पेंदी में करते होल ।
ऐसे ऐसे नेताओं के ,
मुख पर मल दो चूना कोल।।
प्रदूषण
जल अब पीने योग्य नहीं है ,
सांस के योग्य रहा न वायु ।
बीमारी से ग्रसित हो रहे ,
लोगों की घट रही है आयू ।।
प्रदूषित हो गए पीने का जल ,
इसका बहुत बड़ा यह कारण ।
सड़े गले और कूड़ा करकट ,
जल में ही करते निस्तारण ।।
चिमनी कारखाना और वाहन ,
जिससे प्रदूषित हो रही वायु ।
लोग वृक्ष को काट रहे पर ,
काट रहे हैं अपनी आयु ।।
ध्वनि विस्तारक यंत्र के कारण ,
कैसा बना शहर का वेश ।
हल्ला गुल्ला और कोलाहल ,
रहा न शांति का लवलेश ।।
रासायनिक खादों के कारण ,
बंजर हो रही धरती आज ।
जिसे चाव से भोजन करते ,
सब के सब विष युक्त अनाज ।।
प्रदूषण उन्मूलन का ,
हम सब मिला ऐसा करें प्रयास ।
पर्यावरण को रखे स्वच्छ ,
बीमारी न आए पास ।।
स्वाधीनता
देश है स्वाधीन हमारा ,
फिर भी हम पराधीन हैं ।
परंपरा की हाल क्या पूछें ,
हालत शिक्षा का संगीन है ।।
ज्ञानी को अब कौन पूछता ,
अज्ञानी का सम्मान है ,
भ्रष्टाचार की बढ़ी है ताकत ,
उनका ही अब मान है ।।
नोटों पर अब डिग्री मिलती ,
रिश्वत पर सब काम है ।
भ्रष्टाचार के इस ज्वाला में ,
झुलस रही समाज हैं ।।
अगर ये हालत बनी रही तो ,
क्या होगा इस देश का ।
जहां हमें और हर किसी को ,
गर्व है स्वदेश का ।।
हम सफल होंगे तभी ,
जब देशवासी जागेंगे ।
तब कहीं जाकर हम सब ,
स्वाधीन भारत पाएंगे ।।
बेटा बेटी
बेटा को मां तुम प्यार किया ,
बेटी के ऊपर वार किया ।
तुम अपने ह्रदय काटारों से ,
मेरे दिल पर आघात किया ।।
तुम मानवता को न देखी ,
तुम कैसी मां हो जगजननी ।
तुम जग का पालक होकर भी ,
इस जग पर अत्याचार किया ।।
मां की आंखों के दो तारे ,
एक बेटा है एक बेटी है ।
क्यों उन्हें देखकर हंसती हो,
क्यों इन्हें देखकर रोती हो।।
बेटा बेटी है दो पहिया ,
संसार रूपी रथ के नीचे ।
क्यों बेटा को तुम प्यार किया ,
बेटी को क्यों कर दी पीछे ।।
बेटा जो कुछ कर सकता है ,
बेटी भी वह कर सकती है ।
मां याद दिलाती हूं तुझको ,
बेटी हीं दुर्गा शक्ति है ।।
बेटी की पहिया रुकी जहां ,
बेटा भी वहीं रुक जाएगा ।
रुक जाएगी घूर्णन भूतल की ,
फिर महाप्रलय हो जाएगा ।।
बाल मजदूर
मैं था जब माता के गर्भ में ,
बापू मां से हुआ बिराना ।
मां की दुःख का अंत नहीं था ,
लगता था विषधार जमाना ।।
जन्म लिया था जिस घर में मैं ,
उस घर की हालत थी ऐसी ।
मां सोई थी घास फूस पर ,
बछड़ा संग गौमाता जैसी ।।
किसी तरह वह मुझे पालती ,
किसी तरह ला देती खाना ।
मुश्किल हो रही थी उनको ,
मां बेटे का पेट चलाना ।।
मेरी मां थी इतनी भोली ,
कुछ भी समझ न पाई ।
मेरे जीवन में एक युवक ,
आंधी तूफां लाई ।।
लिखा पढ़ा दूंगा बेटा को ,
साथ में दूंगा पैसा तुझको ।
झांसा देकर मेरी मां को ,
मां से जुदा किया वो मुझको ।।
एक बड़ा सा घर में मुझको ,
ले जाकर वह बंद कर दिया ।
मुझको बोला चिंता मत कर ,
ताला जड़कर कैद कर लिया ।।
उस अंदर में कितने बच्चे ,
अपने आंसू बहा रहे हैं ।
दिन रात मेहनत करके वह ,
अश्रु धार से नहा रहे है ।।
काम में थोड़ी गड़बड़ होती ,
हंटर से पीटी जाती हैं ।
सदा आंख से बहने वाली ,
आंसू ही अपना साथी है ।।
सब के सिर का बाल उड़ गए ,
भठ्ठे की उस गर्म आग से ।
रोज प्रभु से आशा करता ,
मुक्त करेंगे इस समाज से ।।
रोज देखता एक हीं सपना ,
देवदूत आए हैं घर को ।
सोने की चाबी लाकर वह ,
आजादी दे दी हम सबको ।।
खुश होकर सब झूम रहे हैं ,
खुली आसमान के नीचे ।
खेल रहा हूं चोर नूकैय्या ,
भाग रहे सब आगे पीछे ।।
कदमों की आहट को सुनकर ,
सपनों से जब बाहर आया ।
उसी जगह और उसी जेल में ,
फिर रोने को खुद को पाया ।।
मानवता
क्यों ये दुनिया खो बैठी है,
मानवता का सुंदर रंग।
बदल गई है सारी नीतियां,
चलने का भी बदला ढंग।।
लूट खसोट और बेईमानी,
नियत का भी खोटा रंग।
किसे कहें हम भाईचारा ,
आपस में हीं हो रही जंग।।
किसका किससे करूं शिकायत,
ज्यों देखूं तो खुद ही नायक।
हम मानव ही इसका दोषी ,
चेहरा दिखाने के न लायक ।।
मानवता को मिलकर आज ,
हम सब करे पुनः निर्माण।
नहीं तो यह एक दिन कर देंगे,
मानव जीवन को नाकाम।।
कोशी
अपनी तूफानी ताकत से,
तुम आगे बढ़ती जाती है।
अपने आगोश में ले सबको,
तुम हाहाकार मचाती है।।
अपनी चंचल जलधारा से ,
कभी फसलों को नहलाती हैं ।
कभी अजगर सा मुंह खोल के तुम,
कितने घर को खा जाती है।।
कहीं टीला बुर्ज बनाती हैं ,
कहीं मिट्टी को सरकारी हैं।
कहीं झोपड़ियां को चट करके,
लोगों को खूब रुलाती है ।।
मंदिर मस्जिद को लक्ष्य बना,
अपने में उसे समा॑ लेती ।
उत्तेजित हो फिर राह बदल,
कितने ही राह बना लेती।।
तेरी तूफानी ताकत से,
पत्थर दिल भी डर जाते हैं।
कितने जीवन है मिट जाते ,
कितने मानव है मर जाते।।
नदियों में सबसे ताकतवर,
मां काली जैसी रोषी है।
कहलाती हैं तुम शोक नदी,
बिहार प्रांत की कोशी है ।।
पानी
पानी को हम जीवन कहते,
निर्मलता इसका स्वभाव ।
पानी के बारे में सोचो ,
बच्चों इसका बड़ा प्रभाव।।
पानी से ही भरी है दुनिया,
धरती से लेकर आकाश ।
पानी से हीं पाते हैं हम ,
इस जीवन में नई उल्लास ।।
पानी से मिलती है जीवन ,
पानी से ही मिलती आश।
पानी से बुझती है प्यास,
पानी से बुझती आग।।
पानी से ये तृप्त है दुनिया,
पानी जीवन की है सांस।
पानी को यदि बचा न रक्खा,
गर्दन में लग जाए फांस।।
तितली
तितली के सुंदर दो पंख ,
रंग बिरंगे कोमल पंख ।
तितली जब लहराते पंख ,
बच्चों के मन भाते पंख।।
तितली की ऊंची उड़ान,
जहां वो रहती नहीं विरान।
सुंदरता विखराते पंख,
बच्चों के मन भाते पंख ।।
तितली की है गजब कहानी ,
पंखों से करती मनमानी ।
सपनों में भी आते पंख,
बच्चों के मन भाते पंख।।
बादल जब घिरते रहते हैं,
तितलियां उड़ती रहती है ।
उसे पकड़ने की कोशिश में ,
बच्चे सब गिरते रहते हैं।।
फूलों पर इठलाते पंख ,
बच्चों के मन भाते पंख।
सड़क
सड़क पार करते हो जब तुम ,
ध्यान में रखना इतनी बात।
एक बार यदि भूल हुई तो,
पल भर में रुक सकती सांस।।
दाएं बाएं नजर घुमाओ,
फिर देखो तुम पीछे आगे।
वैसे समय पार मत करना,
आसपास जब गाड़ी भागे।।
जब भी सुनना घंटी भोंपू,
रुकने से तुम ना कतराना।
बीच सड़क पर कभी न चलना,
पगडंडी को ही अपनाना ।।
सड़कों पर मनमानी करना ,
कभी नहीं होता है अच्छा ।
जो बच्चे इस मंत्र को जाने,
कभी नहीं वह खाते धक्का।।
अछूत
दिन रात मैं मेहनत करता,
फिर पथिया डाला मैं गढ़ता।
लोग उसी से शुभ कार्य में
शुद्ध मानकर पूजा करता।।
फिर भी मुझको यह दुनिया,
क्यों अपवित्र अछूत समझता।
आप सभी के छोटे बच्चे ,
मेरे ही हाथों से पलता ।
तिरस्कृत होता हूं फिर भी ,
कभी शिकायत मैं ना करता ।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अछूत समझता ।
मैं ही उन्हें साफ करता हूं,
जहां-तहां जब कचरा लगता।
वैसे काम को मैं करता हूं
जिस से लोग घृणा है करता ।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अछूत समझता।
अपनी मेहनत मजदूरी से,
संस्कृति की लाज बचाता।
इसके बदले जूठी रोटी ,
पाकर भी में खुश हो जाता।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अशोक अछूत समझता।
मेहनत चलता है हर कोना,
लेकिन पानी चल नहीं पाता।
सब की सेवा करता फिर भी ,
जगह-जगह पर ठोकर खाता।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अछूत समझता ।
शिक्षा
शिक्षा का स्तर गिरा जा रहा,
इसका कोई फिक्र नहीं है।
कैसी होगी भावी पीढ़ी,
किसी जुवाॅ पर जिक्र नहीं है।।
राजनीति हो रही वोट की
भ्रष्ट नीति की हवा चली है ।
शिक्षा किसी को नजर ना आती,
जनता में भी बड़ी कमी है।।
जनता को बहला-फुसलाकर ,
नेता देश चलाते आज ।
जिसे भविष्य की तनिक न चिंता,
उसे पूजते गांव समाज ।।
अभिभावक भी बच्चे को,
इसलिए विद्यालय भेजा करते।
शिक्षा दीक्षा मिले न मिले ,
भोजन तो मिल जाया करते।।
छात्रवृत्ति पोशाक और साइकिल ,
सब मुद्दे पर खड़ी सवाल।
यह सारे मुद्दे करवाते,
शिक्षक जनता बीच बवाल।।
आगे देश चलाएगा जो ,
खतरे में है उनकी शिक्षा।
शिक्षा हासिल यदि किया न,
उन्हें माॅ॑गने पड़ेंगे भिक्षा।।
दीप ज्ञान का जल नहीं पाए,
भावी बच्चे मांगे भिक्षा।
करे देश यह पुनः गुलामी,
क्या युवा वर्ग की यही है इच्छा?
दहेज
जो बेटी है पतित -पावनी,
सौदा उनका किया जा रहा।
दहेज प्रथा रूपी ज्वाला में,
धक्का उनको दिया जा रहा।।
कैसी है यह प्रथा राक्षसी,
सुंदर समाज बर्बाद किया है।
बहुऐ॑ को कठपुतली बनाकर ,
उनके संग खिलवाड़ किया है ।।
इस प्रथा के परम वेग में,
बहती जा रही नारी जाति।
पैसे के बदले में देखो,
तौली जाती बहुएॅ॑ आज।।
जब से घर में आती बहुऐ॑,
ताना देती उनकी सास।
जला दिए जाते हैं उनको,
पैसा जब न आती हाथ।।
इतना ही दुःख दर्द नहीं है ,
दुःख का लगा हुआ अम्बार।
त्याग किया करते दुल्हन की,
तृष्णा करने को साकार।।
धरती माॅ॑ का दु:खरा
देखो मुझको आॅ॑ख खोलकर,
किया मुझे तुम टुकड़ा टुकड़ा।
किन लोगों पर करुं भरोसा,
किसे कहूं मैं अपना दु:खरा।।
मेरे नाम का हाथ उठाकर,
एक तरफ करते हो जाय।
एक तरफ तुम मुझे काट कर ,
मुझ पर करते हो अन्याय ।।
मुझको काट रहे हो ऐसे ,
जैसे कोई फल को काटे।
बंदर बांट किया सब मिलकर,
तोड़ के मुझसे रिश्ते नाते।।
सब हो एक जमीं के बालक,
इन्हीं जमीं से सब हो तगड़ा।
आज उसी को बांट- बांट कर ,
आपस में करते हो झगड़ा।।
मुझको टुकड़ा-टुकड़ा करके,
महादेश से देश बनाया।
उन देशों को टुकड़ा करके ,
फिर कितने प्रदेश बनाया ।।
क्यों आपस में लड़ते हो तुम,
तनिक तो सुन लो मेरी वाणी।
जरा सोच कर यह देखो तो,
कोई मरा तो किसकी हानि।।
कैसी हो जननी
माॅ॒॑ – मैं थी जब गर्भस्थ रूप में ,
पिता तुम्हारी जांच करवाएं ।
पता चला कि मैं हूं बेटी,
आंसू नैनों में भर आए ।।
तुमसे कहे वह चुपके चुपके,
मेरे भाग्य की खेल निराली,
इतना जप और ध्यान कराया,
फिर भी हिस्से बेटी आई ।।
चिकित्सक को बुलवाकर उसने ,
अपने मन की बात बताई।
ईश्वर को मेरा सुख ना भायी,
मेरे घर फिर बेटी आई।।
चिकित्सक थे कुछ सहमे सहमे ,
फिर वह ऐसी राज बताई।
पिताजी थे जो दुःख में डूबे,
चेहरे पर फिर खुशियाॅ॑ आई।।
माता जी को शैल्य कक्ष में,
ले जाकर कुछ दवा सुॅ॑घाई।
फिर क्या था मेरे जीवन का ,
पल भर में अस्तित्व मिटाई ।।
कैसी ह्रदय तुम्हारी माता,
अपनी रूप को समझ न पायी ।
एक बेटी बेटी को मारे ,
तुम्हें जरा सी दया न आई ।।
मुझको माॅ॑ तुम मार हीं डाली,
लेकिन ऐसा फिर मत करना ।
बेटी यदि नहीं रहती तो,
खुद की कल्पना भी मत करना।।
सुन लो एक बेटी की याचना,
जिसने जीवन चक्र चलाया ।
जीवन में माॅ॑ हर दुःख सहना,
ऐसा पाप कभी मत करना।।
माता
आज समझ में आया मुझको,
कितनी प्यारी हो तुम माता।
मेरा कितना ख्याल है रखती,
आंसू नयनोऺ में क्यों आता।।
मुझे प्राप्त करने को तुम माॅ॑,
पत्थर को भगवान बनाया।
कहीं नारियल और बताशा,
कहीं पर अपना शीश झुकाया।।
कितने कष्टों को तुम सहकर,
अपनी गर्भ में रखी मुझको।
पीड़ा कितनी होती होगी ,
मुझे जन्म देने में तुझको ।।
जब मैं आया इस दुनियाॅ॑ में ,
अ॑जान जगह में खुद को पाया ।
ऐसी घड़ी में तुम ही॑ माता ,
अपने सीने से चिपकाया।।
इस दुनियाॅ॑ में हर चीजों की ,
मुझको तुम पहचान कराई ।
जब भी मैं रुदन करता तो,
काम छोड़ कर दौड़ी आई।।
मुख से था जो गूंगा बालक,
मेरे अंदर से स्वर लायी।
उठ कर बिस्तर से चलने का,
तुम ही॑ माॅ॑ अभ्यास करायी।।
किसी से जब झगड़ा होती तो,
पक्ष ले मेरा मुझे दुलारा।
विचलित होकर दौड़ी आई,
जब भी तुझको कभी पुकारा।।
सोते समय लोरियाॅ॑ गाकर,
आॅ॑चल पर तुम मुझे सुलाया ।
बाबूजी के गुस्से से माॅ॑,
कई बार तुम मुझे बचाया ।।
मैं सबका प्यारा बन जाऊॅ॑,
ऐसा तुम संस्कार दिया माॅ॑।
मैं बनूॅ॑ एक बड़ा आदमी,
इसका आशीर्वाद दिया माॅ॑।।
मैं तुझको कभी भूल न पाऊॅ॑,
ऐसा तुम वरदान मुझे दे ।
करता हूॅ॑ ईश्वर से विनती,
दुनियाॅ॑ की हर खुशी तुझे दे।।
बाल विवाह
समाज धकेल रहे मुझको,
क्यों नर्क के दरवाजे में।
मेरी बचपन हो रही नष्ट,
तासे और बाजे गाजे में।।
सात साल की आयु में हीं,
रची गई थी मेरी शादी ।
सबके नैनों में थी खुशियां ,
देख-देख मेरी बर्बादी ।।
जो आयु थी खेलकूद की ,
वज्र प्रहार हुआ था उन पर ।
ढ़ोल नगाड़े बाजे के संग,
अत्याचार हुआ था मुझ पर ।।
स्वास्थ्य कभी न रहती ठीक,
जीवन जीने का न ढंग।
बाल विवाह के कुप्रभाव से ,
कोमल जीवन हो रही तंग ।।
मेरे बचपन के नैनों से ,
झड़ते हैं जो दुःख के मोती ।
बन जाएगी वह एटम बम,
दुनिया को कर देगी छोटी।।
किसान
दिन भर मेहनत करते हैं वह,
दुनिया को सुख देते हैं ।
खुद में रखते हैं ईमान,
खेतों को सी॑चे किसान।।
दिन भर काम किया वह करते,
जीवों में जीवन रस भरते।
फिर भी जीवन के लम्हों में ,
पाते कभी न वह सम्मान।।
खेतों कोशिशें किसान ।
जिनका अन्य खाए जग सारा,
जीवन है जिससे उजियारा।
कभी चैन से सो नहीं पाते,
कभी न करते वह आराम।।
खेतों को सी॑चे किसान ।
कितने को वह आंसू पोछे,
फिर भी उनके कपड़े ओछे ।
भगवान समझते धरती को ,
कभी न करते हैं गुमान ।।
खेतों को सी॑चे किसान।
क्या परियाॅ॑ सचमुच होती है
कभी सपनों में देखा करते ,
कभी दादी मां से सुनते किस्सा।
परी लोक की गजब कहानी ,
जीवन की बन गई है हिस्सा।।
परियों की किस्सा सुन सुन कर ,
हम सब भी परियाॅ॑ बन जाऊं।
पंखों को ऊपर नीचे कर,
हम नील गगन में उड़ जाऊं।।
क्या परियाॅ॑ सचमुच होती है ,
क्या वह इस लोक में बसी कहीं।
क्या वह भी हंसती रोती हैं,
क्या उनकी देखी हंसी कहीं ।।
वास्तव में परियाॅ॑ हो ना हो,
लेकिन सपनों की रानी है ।
मेरे दिल में रहने वाली,
उत्सुकता भरी कहानी है ।।
उठो सवेरे
उठो सवेरे उठकर बच्चों,
ईश्वर का तुम ध्यान करो।
सभी काम छोड़कर पहले,
मात पिता को प्रणाम करो।।
नित्य क्रिया से निवृत्त होकर,
निर्मल जल स्नान करो ।
अल्पाहार थोड़ी सी लेकर,
पढ़ने का फिर काम करो।।
जब भी पढ़ो तो ध्यान लगाकर ,
पढ़ लिखकर कुछ काम करो ।
काम करो तुम ऐसा जग में ,
देश का रोशन नाम करो।।
देश की रक्षा करने को तुम,
तरकस तीर कमान धरो।
जाति पाति का भेद मिटाकर ,
सबका तुम सम्मान करो।।
शहर की नीयत
शरीर कपकपा रहा,
बारिश की कहर में।
कोई नहीं है देखता,
किसी को भी शहर में।।
वो छतरी वाले बाबा,
मुझे भी जरा ढकले ।
हंसकर मुझे वह कहते ,
मैं भीग जाऊं पगले ।।
करती हृदय को कम्पित,
बादल की गड़गड़ाहट।
पल -पल मुझे डराती,
बिजली की कड़कड़ाहट।।
शरीर को शिथिल करें,
हवा की सरसराहट।
दरबार दरवाजा बंद होते,
सुनकर किसी की आहट।।
कोई नहीं तुम्हारा ,
कोई नहीं हमारा ।
देखो शहर की नियत,
कोई नहीं सहारा ।।
पुष्प की विनती
एक पुष्प माली से कहा,
तुम मुझे कहां ले जाती हो ।
पड़ती है वीर की चरण जहां,
वह धरती मुझे बुलाती है ।।
चढ़ जाऊं राजा के शव पर ,
गहनों की शोभा बनू कहीं।
प्रेमी माला में गुथ जाना,
मेरे मन की यह भाव नहीं ।।
चढ़ता हूं देवों के सिर पर,
इसका मुझको अभिमान नहीं।
बन जाऊं प्रेमी की माला,
इसका मुझको अरमान नहीं।।
वीरों के दर्शन जब होते,
मैं धन्य बहुत हो जाता हूं।
हे माली मैं पुलकित होता ,
जब वीर कदम रज पाता हूं ।।
मातृभूमि की रक्षा को ,
जाते हैं लाखों वीर जहां।
मैं तुमसे करता हूं विनती,
मुझको केवल ले चलो वहां।।
है अभिलाषा मेरी इतनी
है अभिलाषा मेरी इतनी,
सूरज सा चमका दूं धरती ।
चंदा सा शीतल मैं कर दूं ,
उपवन सा महका दूं धरती ।।
बादल से मैं वर्षा लेकर,
निर्मल स्वर्ग बना दूं धरती।
फूलों से मैं खुशबू लेकर ,
खुशबूदार बना दूं धरती।।
नील गगन से तारों लेकर,
दुल्हनिया सी सजा दूं धरती ।
आसमान से बिजली लेकर ,
चकाचौंध बना दूं धरती ।।
अपने ध्वज का हरा रंग ले ,
हरियाली से भर दूं धरती ।
ईश्वर से पद बंधन करके,
पूजा योग बना दूं धरती ।।
ऋण
बीत गए गुलामी के दिन ,
फिर भी भारत संभल न पाया।
भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नीतियां,
सब के मन में अभी भी छाया।।
भूल गए उनके कष्टों को ,
जीवन जिसने दांव लगाया।
घृणा और द्वेषो॑ का साया ,
सबके मन में अभी भी छाया।।
झेलता रहा पूर्वजों ने दुःख,
खुल कर सांस कभी ना पाया ।
लूट का खसोट और बेईमानी ,
सबके मन में अभी भी छाया।।
जिसने अपनी संतानों को,
इतना दृढ़ और सबल बनाया।
अब तुम मुझको यह बतला दो,
क्या तुम उनका ऋण चुकाया?
भूखमरी
तड़प रहे हैं कितने बच्चे,
व्याकुल होकर भूख से।
अपनी व्यथा को कह नहीं पाती,
मां भी अपनी पूत से।।
माता की कैसी मजबूरी ,
बेटा से वह कह नहीं पाती ।
बेटा जब व्याकुल हो जाते ,
अन्न के बदले नीर पिलाती ।।
कभी किसी से विनती करते,
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