Achhoot par adharit karoon kavita // Rajhans
अछूत
दिन रात मैं मेहनत करता,
फिर पथिया डाला मैं गढ़ता।
लोग उसी से शुभ कार्य में
शुद्ध मानकर पूजा करता।।
फिर भी मुझको यह दुनिया,
क्यों अपवित्र अछूत समझता।
आप सभी के छोटे बच्चे ,
मेरे ही हाथों से पलता ।
तिरस्कृत होता हूं फिर भी ,
कभी शिकायत मैं ना करता ।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अछूत समझता ।
मैं ही उन्हें साफ करता हूं,
जहां-तहां जब कचरा लगता।
वैसे काम को मैं करता हूं
जिस से लोग घृणा है करता ।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अछूत समझता।
अपनी मेहनत मजदूरी से,
संस्कृति की लाज बचाता।
इसके बदले जूठी रोटी ,
पाकर भी में खुश हो जाता।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अशोक अछूत समझता।
मेहनत चलता है हर कोना,
लेकिन पानी चल नहीं पाता।
सब की सेवा करता फिर भी ,
जगह-जगह पर ठोकर खाता।।
फिर भी मुझको यह दुनिया ,
क्यों अपवित्र अछूत समझता ।
धन्यवाद
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